नई दिल्ली: भूजल संसाधन,भारतीय कृषि की जीवन रेखा है और 135 करोड़ लोगों की पेयजल जरूरतों को पूरा करने की कुंजी है। यह हमारे पैरों के नीचे एक छिपा हुआ खजाना है, जिसे देखा नहीं जा सकता है, लेकिन इसका हमारे जीवन में अत्यधिक महत्व है। भारत भूजल संसाधनों का सबसे अधिक दोहन करने वाला देश है। बढ़ती आबादी के साथ पानी की बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए, पिछले कुछ वर्षों में भूजल दोहन में हुई वृद्धि से देश के कई हिस्सों में जल व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। कई क्षेत्रों में अति-दोहन हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप जल स्तर नीचे जाने जैसी समस्याएँ सामने आयीं हैं। बढ़ते मानवजनित संदूषण के कारण कई क्षेत्रों में भूजल संसाधनों की पहले से ही गंभीर स्थिति और भी चिंताजनक हो गई है। दूसरी तरफ, भूजल संसाधनों का कम दोहन करने वाले कई क्षेत्र हैं, जहां स्थिति में सुधार करने की संभावनाएँ मौजूद हैं। यह भूजल प्रबंधन के सामने एक विशेष तरह की चुनौती पेश करता है, जिसके लिए साक्ष्य-आधारित पहल की आवश्यकता है।
तदनुसार, ‘सतत भूजल प्रबंधन’ पर 12वीं योजना के कार्य-समूह ने भारत के जलभृत या भूजल भण्डार व प्रवाह संरचना के व्यापक मानचित्रण की आवश्यकता को रेखांकित किया है, जो किसी भी भूजल प्रबंधन कार्यक्रम को अंतिम रूप देने के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध होगा। इसके साथ ही, विभिन्न जल-भूविज्ञान स्थितियों के तहत भूजल के विकास के लिए वैज्ञानिक योजना तैयार की जाती है और बेहतर भूजल प्रशासन के लिए समुदाय की भागीदारी के साथ प्रभावी प्रबंधन प्रथाओं को विकसित किया जाता है। इसलिए जल संसाधन मंत्रालय (वर्तमान में जल शक्ति मंत्रालय) ने 2012 में राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण और प्रबंधन कार्यक्रम (एनएक्यूयूआईएम) की शुरुआत की थी। एनएक्यूयूआईएम, देश में भूजल संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन में सहायता के लिए जलभृत प्रबंधन के सन्दर्भ में दुनिया का सबसे बड़ा कार्यक्रम है। यह जल प्रबंधन रणनीति विकसित करने के लिए जलभृतों के वैज्ञानिक चित्रण, उनका मानचित्रण करने और एक व्यावहारिक जल प्रबंधन रणनीति विकसित करने के क्रम में मुद्दों का मूल्यांकन करने के लिए बहु-विषयक अध्ययनों पर ध्यान केंद्रित करता है। जलभृत मानचित्रण, उचित पैमाने पर मजबूत भूजल प्रबंधन योजनाओं को सक्षम बनाएगा और इन साझा संसाधनों के लिए योजनाओं के बारे में परामर्श देगा और उन्हें कार्यान्वित भी करेगा।
एनएक्यूयूआईएम जलभृत के वैज्ञानिक प्रबंधन के लिए एक अग्रणी कार्यक्रम है, जिसमें बड़े पैमाने पर डेटा एकत्र और विश्लेषित किये जाते हैं। एनएक्यूयूआईएम अध्ययनों के आधार पर तैयार किये गए 3-डी जलभृत मॉडल, भूजल संसाधनों के सटीक मूल्यांकन और प्रबंधन के लिए नई जानकारी प्रदान करते हैं। इस कार्यक्रम के तहत विकसित किए गए जलभृत मानचित्र और प्रबंधन योजनाओं को केंद्रीय भूजल बोर्ड के पेशेवर जल-भूवैज्ञानिकों द्वारा किये गए व्यापक क्षेत्र सर्वेक्षण का समर्थन मिला है। इसके अलावा, जलभृत मानचित्र तैयार करने के क्रम में भूवैज्ञानिक, भूभौतिकीय, जल विज्ञान और जल गुणवत्ता सर्वेक्षण, जैसे विभिन्न क्षेत्रों पर ध्यान दिया जाता है। एनएक्यूयूआईएम की अवधारणा केवल मानचित्रण से जुड़ी नहीं है, बल्कि यह लक्ष्य – सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से भूजल प्रबंधन – तक पहुँचने का साधन है। प्रबंधन योजनाओं को अंतिम रूप देने से पहले तीन स्तर पर समीक्षा की जाती है, जिसमें राष्ट्रीय स्तर की विशेषज्ञ समिति (एनएलईसी) द्वारा की जाने वाली समीक्षा भी शामिल है। योजनाओं में कृत्रिम तरीके से पुनर्भरण के लिए संभावित क्षेत्र एवं जल संचयन के लिए निर्मित की जाने वाली उपयुक्त अवसंरचनाओं का उल्लेख किया जाता है। पूरे देश के लगभग 33 लाख वर्ग किमी के कुल भौगोलिक क्षेत्र में से, लगभग 25 लाख वर्ग किमी क्षेत्र की पहचान की गयी है, जिसे एनएक्यूयूआईएम कार्यक्रम के तहत विभिन्न चरणों में कवर किया जायेगा। मानचित्रण के योग्य कुल क्षेत्र के 88 प्रतिशत से अधिक भू-भाग को पहले ही जलभृत मानचित्रण कार्यक्रम के तहत कवर किया जा चुका है और शेष क्षेत्र को मार्च, 2023 तक कवर कर लिया जायेगा। यह कार्यक्रम, हमारे समुदायों को बहुमूल्य भूजल संसाधनों का वैज्ञानिक रूप से प्रबंधन करने और इनका जिम्मेदारी से उपयोग करने के लिए ठोस आधार प्रदान करता है। एनएक्यूयूआईएम की मुख्य बातों के प्रभावी प्रसार के लिए, इन्हें राज्य सरकार के साथ विभिन्न स्तरों पर नियमित रूप से साझा किया जा रहा है। इसके अलावा, आउटरीच में सुधार के लिए, विभिन्न क्षेत्रों में लोगों के साथ बातचीत के कार्यक्रम (पीआईपी) आयोजित किए जा रहे हैं, जिनमें हितधारक सीधे भाग लेते हैं। इसी प्रकार राजीव गांधी राष्ट्रीय भूजल प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान, रायपुर के तत्वावधान में प्रखंड स्तरीय (टियर III) प्रशिक्षण भी आयोजित किये जाते हैं, जिनमें भूजल और जल संरक्षण से संबंधित मुद्दों के बारे में भूजल उपयोगकर्ताओं को जानकारी प्रदान की जाती है।
अब तक के अध्ययनों से भूजल परिदृश्य और प्रबंधन विकल्पों के बारे में विभिन्न प्रकार की नई जानकारी व अंतर्दृष्टि मिली है। संकटग्रस्त जलभृतों में अति-दोहन को कम करने के लिए आपूर्ति और मांग आधारित उपायों समेत साक्ष्य-आधारित प्रबंधन कार्यक्रमों की सिफारिश की गयी है। कई क्षेत्रों में संदूषण से सुरक्षित, वैकल्पिक जलभृतों का चित्रण किया गया है, जहां भूजल के दूषित होने की सूचना मिली थी। अध्ययनों से पता चलता है कि बड़े जलभृत प्रणालियों को एकीकृत तरीके से रिचार्ज किया जा सकता है, ताकि भूजल उपलब्धता में सुधार हो सके एवं बड़े क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा दी जा सके। रिचार्ज संवर्द्धन, अब तक देश में भूजल प्रबंधन का प्रमुख उपाय रहा है। एनएक्यूयूआईएम अध्ययनों से पता चलता है कि आपूर्ति-पक्ष से जुड़े उपायों की तुलना में मांग-पक्ष प्रबंधन का भूजल परिदृश्य में सुधार पर अधिक प्रभाव पड़ता है।
एनएक्यूयूआईएम से प्राप्त वैज्ञानिक जानकारी, भूजल प्रणाली को स्पष्ट रूप से समझने में मदद करती है, जैसे – धरातल के नीचे जल से भरी संरचनाएं कैसे क्षैतिज और लंबवत रूप में फैल रही हैं, विभिन्न चट्टानों की जल धारण क्षमता की मात्रा का निर्धारण कैसे किया जाता है और विभिन्न स्तरों में भूजल की गुणवत्ता की समझ किस प्रकार बेहतर होती है। सतह के नीचे मौजूद और हमारी आंखों से छिपी अनमोल प्राकृतिक संसाधन की इस विस्तृत समझ से प्रशासकों को अपने जिलों और राज्यों के लिए बेहतर योजनाएँ बनाने में मदद मिलेगी। वर्तमान में, जल शक्ति मंत्रालय स्थानीय स्तर पर विशिष्ट मुद्दों के समाधान के लिए एनएक्यूयूआईएम अध्ययन को सूक्ष्म पैमाने पर लागू करने की योजना बना रहा है। ये अध्ययन भूजल के मुद्दों का सामना करने वाले महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करेंगे और तदनुसार समस्याओं के लिए सटीक समाधान प्रस्तुत करने का लक्ष्य निर्धारित करेंगे। एनएक्यूयूआईएम के इस नए चरण के तहत शामिल किए जाने वाले क्षेत्रों को; भूजल संकट, भूजल संदूषण और अन्य महत्वपूर्ण कारकों के आधार पर प्राथमिकता दी जाएगी।
एनएक्यूयूआईएम के उल्लेखनीय महत्व को देखते हुए, यह कार्यक्रम ग्रामीण भारत के बड़े हिस्से में और शहरी भारत के कई हिस्सों में पेयजल सुरक्षा, बेहतर सिंचाई सुविधा और सतत जल संसाधन विकास हासिल करने में मदद करेगा। इस तरह एनएक्यूयूआईएम कार्यक्रम का उद्देश्य देश के संपूर्ण भूजल परिदृश्य में बड़े पैमाने पर बदलाव लाना है और भारत में भूजल की सटीक और व्यापक रूप से सूक्ष्म-स्तरीय स्थिति को सामने लाकर बहुमूल्य भूजल संसाधनों के स्थायी प्रबंधन का लक्ष्य हासिल करना है।