जीवन उसी का सार्थक है जो दूसरों के लिए जीता है। भारतीय

आदर्श हिमाचल ब्यूरो विशेष

Ads

अनंत प्रेरणा के स्त्रोत स्वामी विवेकानंद जी
जीवन उसी का सार्थक है जो दूसरों के लिए जीता है। भारतीय संस्कृति के महान पुरोधा स्वामी विवेकानंद जी , न केवल इस विचार के वाहक थे बल्कि उन्होंने इसे इस प्रकार आत्मसात किया जो अनंत काल तक हमारा मार्गदर्शन करता रहेगा। उस कोख को कोटि-कोटि नमन जिसने ऐसी दिव्य विभूति को जन्म देकर कर इस धरा को धन्य कर दिया । विलक्षण प्रतिभा के धनी स्वामी जी ज्ञान, संस्कार, त्याग व तपस्या के वे कर्मयोगी थे जो भारत के साथ-साथ संपूर्ण विश्व के आदर्श हैं । शिकागो की विश्व धर्म महासभा में उन्होंने अपने अनुबोधन से सभी को मंत्रमुग्ध कर भारतीय संस्कृति व हिंदुत्व का परचम लहराया । स्वामी जी के तेज, ओजस्वी वाणी व धाराप्रवाह संबोधन ने सभा में उपस्थित समस्त विद्वानों को भारतीय विद्वता व आध्यात्मिक शक्ति के सामने नतमस्तक कर दिया ।

उनकी बौद्धिक क्षमता ने जनमानस को प्रेरित करने का अद्भुत कार्य किया। स्वामी जी ने सिद्ध कर दिया कि हमारी संस्कृति, सभ्यता व धर्म में सभी को विश्वास व विज्ञान के बुनियादी सिद्धांतों के आधार पर समाहित करने की क्षमता है । धर्म का भाव लड़ना व विनाश नहीं , सहायता, समन्वय व शांति हो । शिकागो में उनके भाषण तथा विचारों के प्रत्येक शब्द पर कई पुस्तकें लिखी जा सकती है । उनके सुविचार अपने आप में संपूर्ण ग्रंथ है। एक – एक शब्द रूपी मोती ऐसे पिरोए गए जिस की अहमियत समय के साथ बढ़ती जा रही है।
अपने गुरु श्रद्धेय रामकृष्ण परमहंस के मार्गदर्शन में उन्होंने अपने आप को समाज के लिए समर्पित कर दिया। आज भी उनके द्वारा स्थापित ‘रामकृष्ण मिशन ‘सामाजिक कार्यों में अहम भूमिका निभा रहा है ।

प्रेरणा के अपार स्त्रोत स्वामी विवेकानंद जी के प्रत्येक शब्द से हमें हर समय नई ऊर्जा मिलती है। उन्होंने असंभव एवं अविश्वास को अपने शब्दकोश में सम्मिलित नहीं किया। उनका विचार था कि अगर आत्मा में शुद्धि व बुद्धि में स्पष्टता है तो मानव कोई भी असाधारण से असाधारण कार्य करने में सक्षम है । तनावग्रस्त एवं दिशाहीन युवाओं के लिए स्वामी जी द्वारा दिखाया गया आध्यात्मिक मार्ग मील का पत्थर साबित हो रहा है। आज न केवल युवा पीढ़ी बल्कि समाज का प्रत्येक वर्ग नई नई चुनौतियों एवं समस्याओं से दो-चार हो रहा है। आशा और आकांक्षा के मध्य सफल, सुरक्षित एवं सम्मानजनक भविष्य की चिंता ने प्रत्येक व्यक्ति की जीवन शैली में विष घोल दिया। विकट परिस्थिति में स्वामी जी के विचार न केवल प्रोत्साहित करते हैं बल्कि हर चुनौती का सामना करने का साहस भी देते हैं । आवश्यकता है मात्र इन विचारों को ईमानदारी व समर्पण के साथ चिंतन और मनन करने की । “कभी मत सोचिए कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है, ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है अगर कोई पाप है तो वो यही है , ये कहना कि तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल है” अर्थात उन्होंने न केवल असंभव व हीन भावना को आदर्श आचरण के विरुद्ध माना बल्कि शारीरिक अक्षमता के साथ-साथ एक दूसरे की अनावश्यक तुलना को भी पाप की संज्ञा दी है । शक्ति को जीवन और कमजोरी को मृत्यु कहकर प्रत्येक व्यक्ति को शारीरिक, सामाजिक ,बौद्धिक और आध्यात्मिक शक्तियों से सराबोर होकर समाज के लिए निस्वार्थ भाव से कार्य करने के लिए प्रेरित किया । अहम त्याग कर प्रेरित रहने और प्रेरित करने के साथ-साथ उन्होंने संचय और स्वार्थ को छोड़कर सकारात्मकता के नए मापदंड स्थापित करने पर बल दिया । मां भारती की यह विशेषता रही है कि इसने सदैव तपस्वियों और त्यागियों को अपना आदर्श माना है । भोगियों और ढोंगियों को नहीं । स्वामी विवेकानंद जी इसके श्रेष्ठतम उदाहरण है। स्वामी जी ने अपनी शिक्षा व उपदेशों को जीया तथा व्यवहारिक रूप में उनको सर्वप्रथम जीवन में उतार कर समाज का नेतृत्व किया । किसी भी परंपरा, सभ्यता व राष्ट्र का भाग्य वहां के मनुष्यों पर निर्भर करता है ।

इसलिए स्वामी जी ने ‘मनुष्य निर्माण’ को सर्वोच्च प्राथमिकता दी । मनुष्य के चहुमुखी विकास के लिए श्रद्धेय स्वामी जी ने शिक्षा के माध्यम से समाज के प्रत्येक वर्ग विशेषकर निम्न वर्ग के लिए भागीरथ प्रयास किए । कोटि-कोटि आभार स्वामी विवेकानंद जी का जिन्होंने समाज के सबसे अपेक्षित, पिछड़े व निर्धन वर्ग को ईश्वर तुल्य मानकर उनके उत्थान के लिए अनेक कार्यक्रम चलाएं । उनका मानना था जब तक अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति का चौमुखी विकास व उत्थान नहीं होगा अब तक अग्रिम पंक्ति का व्यक्ति भी सहज व सुरक्षित नहीं हो सकता । क्योंकि कोई भी राष्ट्र मात्र एक जमीन का टुकड़ा नहीं होता वह जीता जागता विराट पुरुष है । जिसकी संरचना समाज के प्रत्येक व्यक्ति से हुई है । अतः प्रत्येक अंग का जब उसकी आवश्यकता के अनुसार भरण पोषण व विकास होगा तभी पूरा शरीर स्वस्थ होकर कार्य कर पाएगा और राष्ट्र अपने मानवीय संसाधनों के श्रेष्ठ उपयोग से सिद्धि प्राप्त करेगा । प्राचीन समय में हमारा राष्ट्र दुनिया का सबसे समृद्ध राष्ट्र था । विदेशी आक्रांताओं की कुदृष्टि इस समृद्ध खजाने व उच्च संस्कारवान शिक्षा पर ऐसी पड़ी कि उन्होंने हमारी संपूर्ण सभ्यता को ही तहस-नहस करके रख दिया।

इतिहास साक्षी है जो भी सभ्यता अपनी जड़ों व संस्कारों से भ्रष्ट व विमुक्त हुई वह तीव्र पतन की ओर अग्रसर हुई । दुनिया हमेशा शून्य से शिखर तक का सफर तय करती है और हमारा दुर्भाग्य हम शिखर से शून्य तक पहुंच कर अपने आप को पुनर्स्थापित करने के लिए संघर्षशील । नालंदा तथा तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों ने हमें गौरवान्वित किया है । चाणक्य जैसे शिक्षक और चंद्रगुप्त जैसे सम्राट शिष्य बनाने का सामर्थ्य तत्कालीन शिक्षा पद्धति में ही था। लेकिन आज यह राष्ट्र शिक्षा की गुणवत्ता के लिए जूझ रहा है । इसका सीधा और स्पष्ट कारण है कि हमने अपने महापुरुषों द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलना छोड़ दिया । उनके उपदेश मात्र विद्यालयों की दीवारों की शोभा बढ़ा रहे हैं । हमारी शिक्षा पद्धति ने हमेशा कार्य संस्कृति को बढ़ावा दिया है। परोपकार, सदाचार व इमानदारी जैसे गुणों को महत्व दिया है । आवश्यकता है उस जनक और जननी को खोजने की और समूल नष्ट करने की जिसने सर्वातिशायी शिक्षा पद्धति से हटकर भ्रष्टाचार, जमाखोरी और मुनाफाखोरी जैसे शब्दों का आविष्कार किया ।

आज मानवता तथा चरित्र का निर्माण करने वाली शिक्षा व दीक्षा की नितांत आवश्यकता है । ऐसे में स्वामी जी द्वारा स्थापित किए गए आदर्शों और मूल्यों को आज पुनर्जीवन देने की जरूरत है । तभी संपूर्ण विश्व में हम पुनः वहीं स्थान हासिल कर सकते हैं जो प्राचीन काल में था । अन्यथा जीवन उपयोगी उच्च नैतिक मूल्यों का निरंतर ह्रास और उसके परिणाम स्वरूप मानवोचित गुणों का पतन अवश्यंभावी है। और इसके लिए स्वामी जी के प्रेरणा पुंज ये शब्द सदैव स्मरणीय रहने चाहिए- ” उठो, जागो तब तक ना रुको, जब तक अपना लक्ष्य हासिल न कर लो ”
परम देव शर्मा
शिमला, हिमाचल प्रदेश
7018910335