बैसाखी के शुभ अवसर में बच्चों ने चित्रकला , सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए

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आदर्श हिमाचल ब्यूरों
शिमला । बैसाखी के शुभ अवसर में बच्चों ने चित्रकला , सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए

Children presented painting and cultural programs on the auspicious occasion of Baisakhi
Children presented painting and cultural programs on the auspicious occasion of Baisakhi

। प्रधानाचार्य ने बच्चों को बताया कि पंजाबी नववर्ष बैसाखी के दिन से शुरू होता है। बैसाखी को वैशाखी भी कहा जाता है। विशाखा नक्षत्र पूर्णिमा में होने के कारण इस माह को बैसाख कहते हैं। वैशाख माह के पहले दिन सूर्य मेष राशि में गोचर करते हैं। बैसाखी मौसम बदलने का प्रतीक भी है क्योंकि इस दन से सर्दियां पूरी तरह समाप्त होती है और गर्मियों का आगमन माना जाता है। इसके साथ ही बैसाखी पर रबी की फसलों की कटाई भी की जाती है। बैसाखी पर्व पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है लेकिन पंजाबी समुदाय के बीच बैसाखी का एक अलग ही महत्व है।

उन्होंने कहा कि बैसाखी को ऋतु परिवर्तन का प्रतीक ही नहीं माना जाता बल्कि यह पंजाबी समुदाय द्वारा नववर्ष की शुरुआत भी माना जाता है। रबी की फसल कटाई करने के अलावा बैसाखी का ऐतिहासिक महत्व भी कम नहीं है। साल 1699 में सिखों के दसवें और आखिरी गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ने सिखों के लिए एक विशेष समुदाय खालसा पंथ की स्थापना भी की थी।
Children presented painting and cultural programs on the auspicious occasion of Baisakhi
Children presented painting and cultural programs on the auspicious occasion of Baisakhi
पंजाबी नववर्ष होने के कारण बैसाखी के दिन उत्सव मनाया जाता है। इस दिन कई मेले, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, का आयोजन भी किया जाता है। इसके साथ ही सिख समुदाय के लोग गुरुद्वारों में अरदास लगाने के लिए भी सपरिवार जाते हैं। इसके अलावा नगर कीर्तन या शोभायात्राओं का आयोजन भी किया जाता है। बैसाखी पर्व पर खाने-पीने के विभिन्न पकवान और मीठी चीजें बनाकर नववर्ष आगमन की खुशियां मनाई जाती है। साथ ही रबी की फसल की कटाई करते समय पारम्परिक गीत गाने के साथ गिद्दा, भागंडा आदि लोक नृत्य भी किए जाते हैं। विशाखा नक्षत्र पूर्णिमा में होने के कारण इस माह को बैसाख कहते हैं। कई जगहों पर इसे वैशाखी भी कहा जाता है। पंजाबी और सिख समुदाय के बीच बैसाखी का बहुत महत्व है।
पंजाबी नववर्ष बैसाखी के दिन से शुरू होता है। बैसाखी को वैशाखी भी कहा जाता है। विशाखा नक्षत्र पूर्णिमा में होने के कारण इस माह को बैसाख कहते हैं। वैशाख माह के पहले दिन सूर्य मेष राशि में गोचर करते हैं। बैसाखी मौसम बदलने का प्रतीक भी है क्योंकि इस दन से सर्दियां पूरी तरह समाप्त होती है और गर्मियों का आगमन माना जाता है। इसके साथ ही बैसाखी पर रबी की फसलों की कटाई भी की जाती है। बैसाखी पर्व पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है लेकिन पंजाबी समुदाय के बीच बैसाखी का एक अलग ही महत्व है। आइए, जानते हैं बैसाखी पर्व को क्यों मनाते हैं और क्या है इसकी कथा।
बैसाखी को ऋतु परिवर्तन का प्रतीक ही नहीं माना जाता बल्कि यह पंजाबी समुदाय द्वारा नववर्ष की शुरुआत भी माना जाता है। रबी की फसल कटाई करने के अलावा बैसाखी का ऐतिहासिक महत्व भी कम नहीं है। साल 1699 में सिखों के दसवें और आखिरी गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ने सिखों के लिए एक विशेष समुदाय खालसा पंथ की स्थापना भी की थी।
पंजाबी नववर्ष होने के कारण बैसाखी के दिन उत्सव मनाया जाता है। इस दिन कई मेले, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, का आयोजन भी किया जाता है। इसके साथ ही सिख समुदाय के लोग गुरुद्वारों में अरदास लगाने के लिए भी सपरिवार जाते हैं। इसके अलावा नगर कीर्तन या शोभायात्राओं का आयोजन भी किया जाता है। बैसाखी पर्व पर खाने-पीने के विभिन्न पकवान और मीठी चीजें बनाकर नववर्ष आगमन की खुशियां मनाई जाती है। साथ ही रबी की फसल की कटाई करते समय पारम्परिक गीत गाने के साथ गिद्दा, भागंडा आदि लोक नृत्य भी किए जाते हैं।
उन्होंने बच्चों को जानकारी देते हुए कहा कि जब मुगलकालीन के क्रूर शासक औरंगजेब ने मानवता पर बहुत जुल्म शुरू किए थे। खासकर सिख समुदाय पर क्रूरता करने की औरंगजेब ने सारी ही सीमाएं पार कर दी थी। अत्याचार की पराकाष्ठा तब हो गई, जब औरंगजेब से लड़ाई लड़ने के दौरान श्री गुरु तेग बहादुरजी को दिल्ली में चांदनी चौक पर शहीद कर दिया गया। औरंगजेब के इस अन्याय को देखकर गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने अनुयायियों को संगठित करके खालसा पंथ की स्थापना की। इस पंथ का लक्ष्य हर तरह से मानवता की भलाई के लिए काम करना था। खालसा पंथ ने भाईचारे को सबसे ऊपर रखा। मानवता के अलावा खालसा पंथ ने सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने के लिए भी काम किया। इस तरह 13 अप्रैल,1699 को श्री केसगढ़ साहिब आनंदपुर में दसवें गुरु गोविंदसिंहजी ने खालसा पंथ की स्थापना कर अत्याचार को समाप्त किया। इस दिन को तब नए साल की तरह माना गया, इसलिए 13 अप्रैल को बैसाखी का पर्व मनाया जाने लगा।