हिन्दी भाषा: हमारी सांस्कृतिक अस्मिता और राष्ट्रीय पहचान का प्रतीक

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आदर्श हिमाचल ब्यूरों

नई दिल्ली| हिन्दी दिवस के अवसर पर देशभर में हिन्दी भाषा की समृद्ध परंपरा, सांस्कृतिक महत्व और सामाजिक प्रभाव पर चर्चा तेज हो गई है। विद्वानों और भाषा विशेषज्ञों का मानना है कि हिन्दी न केवल भारत की राजभाषा है, बल्कि यह देश की आत्मा, सांस्कृतिक पहचान और भावनात्मक अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम भी है। हिन्दी की सहजता, सरलता और व्यापक स्वीकार्यता उसे अन्य भाषाओं से अलग बनाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि हिन्दी में विचारों को स्पष्ट, प्रभावशाली और भावनात्मक रूप से अभिव्यक्त करने की अद्वितीय क्षमता है। यह भाषा भारत के विभिन्न क्षेत्रों और बोलियों को जोड़ने वाली सेतु के रूप में भी कार्य करती है।

इस दौरान भाषा विशेषज्ञों ने चिंता व्यक्त की है कि वर्तमान समय में अंग्रेजी को आधुनिकता का प्रतीक मानते हुए युवा वर्ग हिन्दी से विमुख होता जा रहा है। उनका कहना है कि अंग्रेजी का ज्ञान आवश्यक है, लेकिन मातृभाषा हिन्दी को तुच्छ मानकर त्यागना एक खतरनाक प्रवृत्ति है, जो हमारी सांस्कृतिक जड़ों को कमजोर कर सकती है। हिन्दी भाषा को लेकर यह भी तर्क दिया गया कि अंग्रेजी भारत में ऐच्छिक रूप से नहीं, बल्कि औपनिवेशिक प्रभाव के तहत थोपे गए थी,आजादी के कई वर्षों बाद भी हम अंग्रेजी के प्रभाव से पूरी तरह मुक्त नहीं हो सके हैं। हिन्दी को केवल एक भाषा न मानकर, उसे एक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में संरक्षित किए जाने की आवश्यकता पर बल दिया गया। भाषा जानकारों का मानना है कि हिन्दी साहित्य, कविता, पत्रकारिता और शिक्षा के माध्यम से समाज में जागरूकता और संवेदनशीलता लाने में सक्षम है। विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि राष्ट्र की उन्नति के लिए सभी भाषाओं को महत्व दिया जाना चाहिए, लेकिन हिन्दी के प्रति आत्मगौरव और निष्ठा बनाए रखना अनिवार्य है। हिन्दी को आत्मविश्वास से अपनाना केवल भाषाई नहीं, बल्कि सांस्कृतिक स्वाभिमान का भी प्रतीक है।