जनवादी महिला समिति ने SC के फैसले को बताया महिला विरोधी, केंद्र से कानून संशोधन की मांग

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आदर्श हिमाचल ब्यूरों

नई दिल्ली। अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए उस फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण और महिला विरोधी करार दिया है, जिसमें हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के निर्णय को निरस्त कर दिया गया है। यह निर्णय अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को पैतृक संपत्ति में अधिकार देने से संबंधित था। समिति ने कहा कि हिमाचल प्रदेश के किन्नौर और लाहौल-स्पीति अनुसूचित जनजाति क्षेत्र के रूप में अधिसूचित हैं, जहां महिलाओं को पैतृक संपत्ति में कानूनन अधिकार प्राप्त नहीं हैं। जबकि देशभर में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत महिलाओं को पैतृक संपत्ति पर समान अधिकार प्राप्त हैं, परंतु जनजातीय क्षेत्रों में यह अधिकार न केवल व्यवहार में बल्कि कानूनन भी अनुपस्थित है।

इस दौरान जनवादी महिला समिति ने कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 2(2) महिलाओं को पैतृक संपत्ति में अधिकार देने में बाधा बन रही है। समिति ने मांग की है कि इस धारा को हटाया जाए ताकि देशभर में, विशेषकर जनजातीय क्षेत्रों में महिलाओं के नागरिक और संपत्ति अधिकार सुनिश्चित किए जा सकें। इसी तरह समिति ने याद दिलाया कि हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने 23 जून 2015 को दिए गए अपने निर्णय के पैरा 63 में महिलाओं के पैतृक संपत्ति के अधिकार को मान्यता दी थी, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने हाल ही में उस पैरा को निरस्त कर दिया है।

महिला समिति ने केंद्र सरकार से अपील की है कि वह कानून में संशोधन कर महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को सुनिश्चित करे। समिति का कहना है कि यदि ऐसा नहीं किया गया, तो देश की आधी आबादी संपत्ति के अधिकार से वंचित रह जाएगी, जो संविधान द्वारा प्रदत्त समान नागरिक अधिकारों के विपरीत है।समिति ने यह भी कहा कि जनजातीय क्षेत्रों में परंपरागत रिवाजों का सम्मान किया जाए, लेकिन महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण परंपराओं को समाप्त किया जाए और साथ ही महिलाओं के नाम पर संयुक्त भूमि पट्टों की व्यवस्था की जाए, ताकि समाज में समानता और न्याय की दिशा में वास्तविक परिवर्तन लाया जा सके।