रसोई में शुरू हुआ एनर्जी ट्रांज़िशन: बिजली से खाना पकाना अब गैस से सस्ता

0
9

आदर्श हिमाचल ब्यूरों

शिमला । भारत में अब रसोई की आग बदलने की बारी है। एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, बिजली से खाना पकाना (ई-कुकिंग) न सिर्फ़ साफ़ और सुविधाजनक है, बल्कि एलपीजी और पीएनजी, दोनों से सस्ता भी है।

IEEFA (Institute for Energy Economics and Financial Analysis) द्वारा जारी अध्ययन में बताया गया है कि भारत में ई-कुकिंग का खर्च

  • एलपीजी से 37% कम
  • और पीएनजी से 14% कम है।

रिपोर्ट का शीर्षक है- “Electric Cooking in India: 37% Cheaper Than LPG, 14% Cheaper Than PNG – Policy Action Can Scale Adoption” और इसे IEEFA की एनर्जी स्पेशलिस्ट पर्वा जैन ने तैयार किया है।

खाने की थाली पर महंगी होती ऊर्जा का असर

रिपोर्ट बताती है कि पिछले छह वर्षों में भारत का LPG और LNG आयात बिल 50% बढ़ गया है।
इससे घरेलू रसोई का खर्च सीधे बढ़ा है।

2024-25 के दौरान, चार लोगों के एक सामान्य परिवार के लिए

  • पीएनजी से खाना पकाने का सालाना खर्च ₹6,657 (लगभग $76)
  • और बिना सब्सिडी वाले एलपीजी सिलिंडर का खर्च ₹6,424 (लगभग $73) आँका गया है।

पर्वा जैन के मुताबिक, “अगर सब्सिडी हटा दी जाए, तो ई-कुकिंग सबसे सस्ता विकल्प बन जाता है।
यह शहरी और ग्रामीण, दोनों इलाकों में ऊर्जा सुरक्षा को नई दिशा दे सकता है।”

क्लीन फ्यूल’ की असमानता: कनेक्शन बढ़े, खपत नहीं

रिपोर्ट यह भी दिखाती है कि भारत में हालांकि एलपीजी कनेक्शन की पहुँच लगभग सार्वभौमिक हो चुकी है,
लेकिन उपयोग की आवृत्ति (usage frequency) कम हो गई है।

इसका कारण है –

  • लगातार बढ़ती कीमतें,
  • आयात पर निर्भरता,
  • और गरीब परिवारों की purchasing power में कमी।

लगभग 40% भारतीय परिवार आज भी ठोस ईंधनों (जैसे लकड़ी, कोयला, गोबर) पर निर्भर हैं।
यह न केवल स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, बल्कि पर्यावरण और महिलाओं की उत्पादकता दोनों पर असर डालता है।

ई-कुकिंग: सस्ती, साफ़ और आधुनिक विकल्प

रिपोर्ट के मुताबिक, ई-कुकिंग से न सिर्फ़ घरेलू प्रदूषण (indoor air pollution) में कमी आती है, बल्कि यह ऊर्जा दक्षता (efficiency) बढ़ाती है और आयात पर निर्भरता घटाती है।

यह भारत के Net Zero 2070 लक्ष्य के अनुरूप एक व्यावहारिक और स्केलेबल समाधान बन सकती है।

IEEFA का आकलन है कि अगर भारत ई-कुकिंग को नीति-स्तर पर बढ़ावा दे, तो यह रसोई को डिकार्बनाइज़ (decarbonize) करने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है।

100% विद्युतीकरण के बावजूद धीमी रफ्तार

भारत में 100% विद्युतीकरण का लक्ष्य पूरा हो चुका है, फिर भी ई-कुकिंग का प्रसार सीमित है।

रिपोर्ट इसकी चार प्रमुख वजहें बताती है:

  1. उपकरणों की ऊँची शुरुआती लागत – इंडक्शन, हॉट प्लेट या इलेक्ट्रिक कुकर अब भी कई परिवारों की पहुँच से बाहर हैं।
  2. विकल्पों की कमी – सीमित ब्रांड्स और मॉडलों के कारण उपभोक्ताओं के पास विविधता नहीं है।
  3. विश्वसनीय बिजली आपूर्ति को लेकर शंका – कई उपभोक्ता अब भी बिजली कटौती से परेशान रहते हैं।
  4. जागरूकता की कमी – बहुत से उपभोक्ताओं को यह नहीं पता कि ई-कुकिंग वास्तव में कितनी सस्ती है।

क्या कहती है रिपोर्ट: सरकार और नीति-निर्माताओं के लिए सिफ़ारिशें

IEEFA ने सरकार के लिए पाँच ठोस सुझाव दिए हैं, जिनसे ई-कुकिंग को तेजी से बढ़ाया जा सकता है:

  1. ई-कुकिंग उपकरणों पर टैक्स में रियायत और सब्सिडी ताकि शुरुआती लागत कम हो और उपभोक्ता आसानी से इसे अपनाएं।
  2. शहरी पायलट प्रोजेक्ट्स जहाँ बिजली विश्वसनीय है, वहाँ ई-कुकिंग को बढ़ावा देकर LPG पर निर्भरता घटाई जा सकती है।
  3. जन-जागरूकता अभियान ताकि उपभोक्ताओं को ई-कुकिंग के आर्थिक और स्वास्थ्य लाभों की जानकारी मिले।
  4. घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को प्रोत्साहन ताकि उपकरण सस्ते और आसानी से उपलब्ध हो सकें।
  5. राज्य स्तर पर नीति तालमेल जिससे बिजली वितरण कंपनियाँ, शहरी विकास विभाग और महिला कल्याण मंत्रालय मिलकर योजना बना सकें।

IEEFA की टिप्पणी: “यह सिर्फ़ कुकिंग नहीं, एनर्जी ट्रांज़िशन है”

पर्वा जैन ने कहा, “ई-कुकिंग को अगर हम गंभीरता से लें, तो यह भारत के क्लीन एनर्जी ट्रांज़िशन में निर्णायक भूमिका निभा सकती है।
यह कदम महिलाओं के स्वास्थ्य, ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु लक्ष्यों-तीनों के लिए फायदेमंद है।”

एक मौका: सब्सिडी को नई दिशा देने का

रिपोर्ट यह भी सुझाव देती है कि अगर सरकार LPG सब्सिडी का एक हिस्सा ई-कुकिंग उपकरणों पर ट्रांसफर करे,
तो इससे न केवल बजट का बेहतर उपयोग होगा, बल्कि ग्रामीण और शहरी, दोनों इलाकों में रसोई की ऊर्जा संरचना (energy mix) बदल सकती है।

निष्कर्ष: भविष्य की रसोई, बिजली पर भरोसा

IEEFA की रिपोर्ट एक स्पष्ट संदेश देती है – भारत के पास अब क्लीन कुकिंग का सस्ता, टिकाऊ और उपलब्ध विकल्प मौजूद है।

अब ज़रूरत है एक नीति-सम्मत कदम की, जो इस बदलाव को रसोई से लेकर ऊर्जा नीति तक जोड़ सके।