अनुराधा शर्मा
चंडीगढ़। पंजाब के एक गाँव से पचास वर्षीय रतन लाल जब आँखों के इलाज के लिए चंडीगढ़ में कोर्निया सेंटर पहुँचा तो डॉक्टर भी हैरान थे कि कोर्निया के आधे से ज़्यादा हिस्से और उतनी ही गहराई तक पहुँच चुका कोर्नियल अल्सर हुआ कैसे होगा और जब खुलासा हुआ तो पता चला कि रतन लाल ही नहीं नीम-हकीमों की ‘डक्का निकालने’ के कारगुज़ारी के चलते गाँवों के कई लोग अंधेपन का शिकार हो जाते हैं। ‘डक्का निकालने का यह धंधा ख़ासकर खेती से जुड़े लोगों को ही शिकार बनाता है क्योंकि आमतौर पर खेतों में काम करते समय फ़सली तिनके या किसी पेड़-पौधे की टहनी से आँख में चोट लगने की सम्भावना बहुत अधिक रहती है।
रतन लाल का केस भी इसी धंधे का एक उदाहरण है जो डक्के निकालने वाले नीम-हकीम का शिकार होकर कोर्निया पूरी तरह ख़राब होने और अंधेपन का शिकार होकर इलाज़ के लिए डॉक्टर अशोक शर्मा के पास पहुँचा। डॉक्टर शर्मा ने बताया कि जब रतन लाल कोर्निया सेंटर में पहुँचा तो पाया गया कि उसकी आँख के कोर्निया के अधिकतर हिस्से में अल्सर फैल चुका था और ज़ख़्म भी गहरा हो चुका था। कोर्निया के एंटेरियर चेम्बर में पस भर जाने से कोर्निया सफ़ेद दिखने था। मेडिकल भाषा में इसे हाइपोप्योन कहा जाता है।
डॉक्टर शर्मा के मुताबिक़ खेत में काम करते समय रतन लाल की आँख में तिनका चुभ गया। आँख में जलन और लाली कम करने के लिए उसने स्थानीय केमिस्ट से आई ड्रॉप्स लेकर डाली जो शायद स्टीरायड थी। इससे आँख में इन्फ़ेक्शन बढ़ गया। इलाज़ के लिए वह एक नीम-हकीम के पास गया।
डॉक्टर शर्मा ने बताया कि ये नीम-हकीम मरीज़ को विश्वास दिला देते हैं कि उसकी आँख में तिनका घुस गया है जिसे निकलना पड़ेगा। स्थानीय पंजाबी, हिमाचली और पहाड़ी भाषा में तिनके को ‘डक्का’ कहा जाता है और आँख से तिनका निकालने को ‘डक्का निकालना’ कहते हैं। ये नीम हकीम पास में रखे झाड़ू या ऐसे ही किसी तिनके को हाथ की सफ़ाई से आँख में चुभाते हैं और उसी तिनके का छोटा सा हिस्सा निकालकर मरीज़ को दिखा देते हैं. इससे ज़ख़्म में इन्फ़ेक्शन और बढ़ जाता है। रतन लाल के साथ भी यही हुआ। उसे इसका पता तब चला जब कोर्निया में फ़ंगल इन्फ़ेक्शन फैल गया और उसे दिखना बंद हो गया।
डॉक्टर शर्मा ने बताया कि इस मरीज़ को पहले दवाएँ देकर कोर्निया का इन्फ़ेक्शन ठीक किया गया। इन्फ़ेक्शन ठीक हो जाने पर ख़राब हो गए कोर्निया को निकाल कर कोर्निया ग्राफ़्ट किया गया। शुक्र रहा कि इन्फ़ेक्शन की वजह से आँख के बाक़ी हिस्से ख़राब नहीं हुए. पर एक लापरवाही की वजह से रतन लाल को काफ़ी समय तक अंधेपन का सामना करना पड़ा। डॉक्टर शर्मा ने बताया कि ऐसे कई मामले उनके पास आते हैं जिनसे पता चलता है कि गाँवों में आँखों की बीमारियों के प्रति लापरवाही बरती जा रही है और उसका फ़ायदा नीम-हकीम उठा रहे हैं और लोगों की आँखों की रोशनी से खिलवाड़ कर रहे हैं।