शिमला। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिवमण्डल सदस्य संजय चौहान ने प्रदेश में सेब के बगीचों मे सकैबए माईट व असमायिक पतझड़ जैसी बीमारियों के बढ़ते प्रकोप पर गम्भीर चिंता की हैं और सरकार से मांग की है कि इन बीमारियों की रोकथाम के लिए तुरंत ठोस कदम उठाए और बागवानी विश्विद्यालय व विभाग के विशेषज्ञों की टीमें इन प्रभावित बगीचों में भेजे।
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी) प्रदेश में सेब के बगीचों मे सकैब, माईट व असमायिक पतझड़ जैसी बीमारियों के बढ़ते प्रकोप पर गम्भीर चिंता व्यक्त करती है और सरकार से मांग करती है कि इन बीमारियों की रोकथाम के लिए तुरंत ठोस कदम उठाए और बागवानी विश्विद्यालय व विभाग के विशेषज्ञों की टीमें इन प्रभावित बगीचों में भेजे।
इसके साथ साथ इन बीमारियों की रोकथाम के लिए आवश्यक फफूंदीनाशक, कीटनाशक व अन्य साधन बागवानी विभाग के केंद्रों के माध्यम से उपदान पर उचित मात्रा में उपलब्ध करवाया जाए तथा सकैब ग्रसित सेब के लिए सरकार उचित खरीद मूल्य तय कर इसे बागवानों से खरीद कर राहत प्रदान करे।
पूर्व में भी सरकार से इन बीमारियों की रोकथाम के लिए उचित कदम उठाने के लिए मांग की गई परन्तु सरकार बागवानों की इन समस्याओं के प्रति गंभीर दिखाई नहीं दे रही है। यदि सरकार समय रहते इन बीमारियों की रोकथाम के लिए ठोस कदम नहीं उठती तो प्रदेश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देने वाली 5000 करोड़ रुपए की सेब की आर्थिकी बर्बाद हो जाएगी और लाखों बागवान परिवारों पर रोजगार का संकट खड़ा हो जाएगा। सी.पी.एम. सरकार के इस उदासीन रवैये के प्रति और सरकार से इन मांगों पर अमल करवाने के लिए 26 अगस्त को प्रदेशव्यापी प्रदर्शन करेगी।
आज प्रदेश के सभी सेब उत्पादक जिलों शिमला, मंडी, कुल्लू, किन्नौर व चम्बा में सेब के अधिकांश बगीचों में इन बीमारियों का प्रकोप बढ़े पैमाने पर देखने को मिल रहा है। सेब की फसल तैयार होने को थी परन्तु इन बीमारियों के कारण बागवान अपनी फसल मण्डियों में नहीं पहुंचा पा रही हैं। प्रदेश मे 1982-83 के पश्चात इतने बड़े पैमाने पर सकैब ने महामारी का रूप ले लिया है। इसका मुख्य कारण सरकार की कृषि व बागवानी क्षेत्रों के लिये लागू की जा रही नीतियां है। सरकार देश व प्रदेश के स्तर पर कृषि व बागवानी में दी जा रही सहायता में कटौती कर अपना हाथ पीछे खींच रही है और आज किसान व बागवान केवल कॉरपोरेट घरानों के दबाव में बाज़ार पर महंगी लागत वस्तुओं के लिये निर्भर कर दिया है। किसानों व बागवानों को जो वैज्ञानिक व व्यावहारिक ज्ञान बागवानी विश्विद्यालय व विभाग द्वारा दिया जाता था वह सरकार ने अब बन्द कर दिया है। सरकार द्वारा करोड़ो रूपये ज़ीरो बजट खेती के नाम पर खर्च किया जा रहा है, परन्तु सरकार ने पौधों, बीज, खाद, फफूंदीनाशक, कीटनाशक व अन्य लागत वस्तुओं में दी जा रही सब्सिडी में कटौती कर दी जिससे आज कृषि व बागवानी में उत्पादन लागत बढ़ रही है और मण्डियों में इनके उत्पादो की उचित कीमत न मिलने से आज किसान व बागवान का आर्थिक संकट बढ़ता जा रहा है।
सी.पी.एम. सरकार से मांग करती हैं कि इन बीमारियों की रोकथाम के लिए तुरंत ठोस कदम उठाए तथा बागवानों को इनकी रोकथाम के लिए सभी प्रकार की फफूंदीनाशक, कीटनाशक व अन्य साधन सब्सिडी पर उचित मात्रा में उपलब्ध करवा कर सकैब जैसी महामारी की रोकथाम के लिए युद्धस्तर पर कार्य करे। सरकार व बागवानो को इसके लिए संयुक्त रूप से कार्य करना होगा। 1982-83 मे भी सरकार के द्वारा बागवानी विश्वविद्यालय व विभाग की टीमों ने बगीचों में जाकर बागवानों को भरपूर सहयोग दिया था जिससे इस महामारी की रोकथाम की जा सकी थी। आज भी उसी रणनीति के तहत कार्य कर इस महामारी पर रोक लगाई जा सकती है और सेब की इस महत्वपूर्ण आर्थिकी को बचाया जा सकता है।
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