आदर्श हिमाचल ब्यूरो
कुल्लू। कला, भाषा एवं संस्कति विभाग द्वारा पहाड़ी सप्ताह-2020 के विभिन्न आयोजनों की श्रृंखला में बुधवार को कुल्लू में परिचर्चा एवं पहाड़ी कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। आॅन-लाइन गूगल मीट के माध्यम से आयोजित इस कार्यक्रम में डाॅ. सूरत ने वर्ष 1966 के पश्चात ‘पहाड़ी बोली की स्थिति’ पर एक शोध पत्र प्रस्तुत किया।
इस संबंध में जानकारी देते हुए जिला भाषा अधिकारी सुनीला ठाकुर ने बताया कि विभाग द्वारा हिमाचल प्रदेश के ऐतिहासिक गठन को सदा जीवित रखने के लिए हर वर्ष प्रथम नवम्बर को पहाड़ी दिवस का आयोजन किया जाता है। इसका उद्देश्य प्रदेश में पहाड़ी बोलियों का संरक्षण व संवर्धन करना है। उन्होंने कहा कि पहाड़ी बोली क्षेत्र विशेष के लोगों में एकता का सूत्रपात करती है और पुरातन परम्पराओं, रीति-रिवायतों और संस्कृति को जिंदा रखने में मदद करती है। उन्होंने कहा कि पहाड़ी अथवा स्थानीय तौर पर बोली जाने वाली बोलियों के स्वरूप को यथावत भावी पीढ़ियों तक पहंुचाने का विभाग प्रयास कर रहा है।
सुनीला ठाकुर ने कहा कि कार्यक्रम में जिला के पहाड़ी बोली के विद्वानों में डाॅ. दयानन्द गौतम, जयदेव विद्रोही, धनेश गौतम, सत्यपाल भटनागर, दीपक शर्मा सहित अन्यों ने भौगोलिक दृष्टि से बोली का प्रचलन व व्यवहार, जिला में स्थानीय बोलियों में प्रकाशित रचनाएं, वर्तमान में पहाड़ी बोली की व्यवहारिता में कमी के कारण, युवा पीढ़ी का स्थानीय बोली के प्रति रूची एवं दृष्टिकोण, बोलियों के प्रोत्साहन हेतु विभाग से अपेक्षाएं आदि बिन्दुआंे पर विस्तृत रूप से अपने विचार प्रस्तुत किए।
इसी कड़ी में पहाड़ी कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया गया जिसमें इन्द्र देव शास्त्री, दोत राम पहाड़िया, कुमुद शर्मा, अमरा देवी, पुष्पा कुमारी, आई.एस. चांदनी, अनुरंजनी, विक्रांत गर्ग, प्रोमिला ठाकुर, दीपक कुल्लवी, इन्दु भारद्वाज, भगवान प्रकाश आदि कवियों ने कविता पाठ किया।