आदर्श हिमाचल ब्यूरो
शिमला। तेरी बातों में न आ जाऊं इसलिए मुकर रहा हूं
कहीं तुझसे न उलझ जाऊं बच-बच के गुज़र रहा हूँ
तेरी बातों के सलवटों में करवटें गिनते-गिनते
ख्वाबों की खाईयों में धीरे-धीरे उतर रहा हूं
उनसे मिल के मेरी आदत कहीं और न बिगड़ जाए
लो देख भी लो यारों मैं इसी डर से सुधर रहा हूं
किसी दामन पे लग न जाऊं कहीं दाग बनके मैं भी
अपनी शरारती हरकतों के परों को कुतर रहा हूं
कहो जाके बिजलिओं को और गिरने से बाज़ आएं
चोट खाने की आदतों से लम्हा-लम्हा उबर रहा हूं
लेखक
डॉ. एम डी सिंह