विशेष: पश्चिम बंगाल में वायु प्रदूषण बन रहा है दिल और सांस की बीमारियों का सबब: अध्‍ययन

Handan, smoke billows from all directions from the steel plants. Ash fills the skies.

आदर्श हिमाचल ब्यूरो

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कोलकाता और उसके आसपास के इलाकों में अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों ही तरह से वायु प्रदूषण के संपर्क में आने के कारण दिल और सांस संबंधी बीमारियां पैदा हो रही हैं। क्लाइमेट ट्रेंड्स और आईआईटी दिल्ली द्वारा जारी एक ताजा रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। अध्ययन से यह भी जाहिर हुआ है कि उत्तरदाताओं में लोअर रेस्पिरेट्री सिम्टम्स (एलआरएस) के मुकाबले अपर रेस्पिरेट्री सिम्टम्स (यूआरएस) का ज्यादा असर है।

 

क्लाइमेट ट्रेंड्स ने यह रिपोर्ट सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक साइंस (सीएएस) और आईआईटी दिल्ली के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर रिसर्च इन क्लाइमेट चेंज एंड एयर पलूशन (सीईआरसीए) के तकनीकी सहयोग से तैयार की है। अपनी तरह के इस पहले अध्ययन का उद्देश्य पश्चिम बंगाल की आबादी के अलग-अलग वर्गों में वायु प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य पर पड़ रहे प्रभावों के प्रमाण जुटाना थाह इसके तहत पश्चिम बंगाल के 7 क्षेत्रों कोलकाता, हावड़ा, आसनसोल, हल्दिया, बैरकपुर, बर्धमान और बरासात में फील्ड सर्वे किया गया ताकि जन स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के जमीनी स्तर पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन किया जा सके। सर्वे के दौरान 1155 लोगों से की गई विस्तृत बातचीत के माध्यम से वायु प्रदूषण के संपर्क में आने के विभिन्न स्तरों से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों को जोड़ा गया है।

 

इस अध्ययन की रिपोर्ट को पश्चिम बंगाल के परिवहन नगर विकास आवासन एवं स्थानीय निकाय मामलों के कैबिनेट मंत्री तथा कोलकाता के मेयर श्री फिरहाद हाकिम की मौजूदगी में जारी किया गया। इस दौरान कोलकाता नगर निगम की जलवायु एवं सौर कमेटी के अध्यक्ष श्री देबाशीष कुमार और पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष डॉक्टर कल्याण रुद्र भी मौजूद थे।

 

वायु प्रदूषण को पर्यावरण से जुड़े दुनिया के सबसे बड़े जोखिम के तौर पर पहचाना गया है। ग्लोबल बर्डन ऑफ़ डिजीज (जीबीडी 2019) ने भारत में वायु प्रदूषण को मौतों और विकलांगता के एक प्रमुख कारण के तौर पर घोषित किया है। पश्चिम बंगाल में 7 नान-अटेनमेंट शहर हैं, लिहाजा वायु प्रदूषण इस राज्य के लोगों के लिए खतरा बना हुआ है। हालांकि भारत में इसे साबित करने के लिए जमीनी स्तर पर सीमित संख्या में ही प्रमाण उपलब्ध हैं।

 

क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने कहा “चूं‍कि वायु की गुणवत्ता की निगरानी का तंत्र मजबूत किया गया है और प्रदूषण शमन के उपाय किए जा रहे हैं, मगर साथ ही साथ एक राष्ट्रीय जन स्वास्थ्य डाटा भी बनाए जाने की जरूरत है जिससे विज्ञान आधारित निर्णय निर्माण में आसानी हो। यह अध्ययन भारत के शहरी के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में भी वायु प्रदूषण के नियंत्रण के लिए नीति स्तरीय कार्य की जरूरत को मजबूती से सामने रखता है।”

 

डेटा से जाहिर होता है कि अध्ययन के दायरे में शामिल किए गए विभिन्न स्थानों पर पिछले 1, 2, 5, 10 और 20 वर्षों के दौरान पीएम2.5 का औसत संकेंद्रण केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा निर्धारित सुरक्षित सीमा 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक बना रहा। इससे पता चलता है कि लोग बहुत लंबे समय से खराब गुणवत्ता वाली हवा की चपेट में हैं। अध्ययन के मुताबिक जहां नगरीय इलाकों में लोवर रेस्पिरेटरी सिम्टम्स की समस्या आम है, वहीं ग्रामीण इलाकों में अपर रेस्पिरेट्री सिम्टम्स के ज्यादा मामले प्रकाश में आए हैं। शहरी इलाकों पर नजर डालें तो 20 साल तक के लोगों में यूआरएस का सबसे ज्यादा प्रभाव नजर आया। वहीं, शहरी (8%)तथा ग्रामीण (8.36%) दोनों ही इलाकों में 50 साल या उससे अधिक के लोगों में एलआरएस का सबसे ज्यादा प्रभाव पाया गया।

 

मानस का बयान

 

इस अध्ययन से यह भी जाहिर हुआ है कि ग्रामीण तथा शहरी दोनों ही इलाकों में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में अपर रेस्पिरेट्री सिम्टम्स के मामले उल्लेखनीय रूप से ज्यादा हैं जो इस बात का इशारा है कि घर के अंदर उत्पन्न होने वाला प्रदूषण उन्हें बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचा रहा है। इससे यह भी जाहिर होता है कि लोअर रेस्पिरेट्री सिम्टम्स के लिए समय के साथ दीर्घकालिक सहसंबंध बढ़ता गया और पुरुषों की आबादी में पीएम स्तर के साथ एक उच्च सहसंबंध पाया गया।

 

साग्निक डे

 

नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) के तहत नॉन अटेनमेंट शहरों के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किए गए हैं। प्रमाणों से यह जाहिर होता है कि हमें राज्य में एक बड़ी आबादी के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए अपने क्षेत्र का विस्तार करने की जरूरत क्यों है।

 

फिरहाद हाकिम

अध्ययन की मुख्य बातें

 

ग्रामीण इलाकों के मुकाबले नगरीय क्षेत्रों में पीएम 2.5 का स्तर ज्यादा था। अध्ययन के दायरे में शामिल किए गए विभिन्न स्थानों पर पिछले 1, 2, 5, 10 और 20 वर्षों के दौरान पीएम2.5 का औसत संकेंद्रण केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा निर्धारित सुरक्षित सीमा 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक रिकॉर्ड किया गया।

 

ग्रामीण क्षेत्रों (19.13%) के मुकाबले नगरीय इलाकों (27.27%) में अपर रेस्पिरेट्री सिम्टम्स के ज्यादा मामले पाए गए। 20 साल तक के नौजवान लोगों में यूआरएस का प्रभाव सबसे ज्यादा (31%) दिखाई दिया।

 

शहरी (8%)तथा ग्रामीण (8.36%) दोनों ही इलाकों में 50 साल या उससे अधिक के लोगों में एलआरएस का सबसे ज्यादा प्रभाव पाया गया। ग्रामीण 1.32% और शहरी 2.16% दोनों ही क्षेत्रों में महिलाओं में यूआरएस का स्तर उल्लेखनीय रूप से अधिक पाया गया।

 

जहां तक यूआरएस का सवाल है तो खासकर ग्रामीण इलाकों में पेशेवर लोगों (48.6%) में अन्य व्यावसायिक श्रेणियों के लोगों के मुकाबले स्वास्थ्य संबंधी अधिक प्रभाव विकसित हुए हैं।

 

 

ग्रामीण तथा शहरी दोनों ही क्षेत्रों में उद्यमियों तथा कामगारों के मुकाबले पेशेवर लोगों (29.17-40%) में एलआरएस का प्रभाव उल्लेखनीय रूप से ज्यादा पाया गया है।

 

 

मल्टीवेरिएट लॉजिस्टिक रिग्रेशन मॉडल की स्वास्थ्य परिणामों ने लघु एवं दीर्घकालिक परिवेशीय वायु प्रदूषण संपर्क के साथ एक उल्लेखनीय (p<0.01) और मजबूत सहसंबंध दिखाया है।

 

 

शहरी तथा ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में अस्थमा ने उच्चतम सहसंबंध गुणांक (R2:0.95) दिखाया और हाइपरटेंशन ने दीर्घकाल के लिए सबसे कम (R2:0.78) सहसंबंध प्रदर्शित किया। इसके अलावा सीने में तकलीफ के साथ उच्चतम (R2:0.95) और गले में खराश ने अल्पकालिक संपर्क के साथ के साथ सबसे कम (R2:0.77) जुड़ाव जाहिर किया।

 

 

नगरीय क्षेत्रों में उच्च तथा मध्यम सामाजिक-आर्थिक स्तर वाले लोगों में यूआरएस का अधिक प्रसार देखा गया जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में मध्यम तथा निम्न आय वर्गो के लोगों में इसका ज्यादा फैलाव नजर आया।

 

 

एलआरएस के विकसित होने के मामले में पीएम2.5 के दीर्घकालिक संपर्क (20, 10 और 5 साल) के प्रभावों को देखा गया और दोनों के बीच उल्लेखनीय सकारात्मक जुड़ाव नजर आया। सभी लक्षणों की व्यापकता ने ग्रामीण आबादी के बीच दीर्घ अवधि एक्सपोजर में वृद्धि के साथ विषम अनुपात में बढ़ोत्तरी को प्रदर्शित किया है।