‌विशेष: कौन है वो गुमनाम सेनानी “लचित बोरफुकन”, जिनके नाम पर NDA के बेस्ट कैडेट को मिलता है स्वर्ण पदक

जन्मदिन पर दी देश के प्रधानमंत्री ने सलामी, क्यों कहलाए असम के शिवाजी

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आदर्श हिमाचल की विशेष रिपोर्ट

आपको तो यह पता ही होगा कि NDA में जो बेस्ट कैडेट होता है, उसको एक स्वर्ण पदक से नवाज़ा जाता है,
लेकिन बहुत कम ही लोगों को यह ज्ञात होगा कि उस पदक का नाम “लचित बोरफुकन” है।

लेकिन क्या आपको यह पता है कि आख़िर कौन हैं ये लचित बोरफुकन जिनके जन्मदिवस पर उनकी बहादुरी को हमारे देश के प्रधानमंत्री ने भी सलामी दी? क्या आपके जेहन में यह सवाल कभी आया है कि आख़िर वह क्या वजह थी जिसके कारण पूरे उत्तर भारत पर अत्याचार करने वाले मुस्लिम शासक और मुग़ल कभी बंगाल के आगे पूर्वोत्तर भारत पर कब्ज़ा नहीं कर सके ? तो आज हम आपको बताते हैं।

इसका एकमात्र कारण थे असम के शिवाजी कहलाने वाले लचित बोरफूकन। उनकी रणनीति और बहादुरी के कारण मुग़ल शासकों का पूरे भारत पर कब्ज़ा करने का सपना कभी पूरा नहीं हो सका। तो आइए उस वीर योद्धा को नमन करते हैं, जिसे इतिहासकारों ने इतिहास के पन्नों से गायब कर दिया है।

इतिहास के उस काल में अहोम राज्य (आज का आसाम या असम) के राजा थे चक्रध्वज सिंघा, तो दिल्ली में क्रूर मुग़ल शासक था औरंगज़ेब। औरंगज़ेब का पूरे भारत पर राज करने का सपना अधूरा था। औरंगज़ेब चाहता था कि उसका साम्राज्य पूरे भारत तक फैले, लेकिन भारत के पूर्वोत्तर के हिस्से तक वह नहीं पहुंच पा रहा था।

औरंगज़ेब ने अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए 4000 महाकौशल लड़ाके, 30000 पैदल सेना, 21 सेनापतियों का दल, 18000 घुड़सवार सैनिक, 2000 धनुषधारी और 40 पानी के जहाजों की विशाल सेना असम पर आक्रमण करने के लिए भेजी थी। औरंगजेब जानता था कि अगर वह असम जीत लेता है तो वह उत्तर-पूर्वीं भारत पर कब्जा कर सकता था।

उस समय असम का नाम अहोम था। औरंगजेब ने इस इस हमले के लिए एक हिन्दू राजा राम सिंह को विशाल सेना देकर अहोम को जीतने के लिए भेजा। अहोम के वीर सेनापति का नाम था लचित बोरफुकन। पहले भी कई शासकों ने अहोम पर हमले किए थे, जिसे इसी सेनापति ने नाकाम कर दिया थे। कुछ समय पहले ही लचित बोरफूकन ने गौहाटी को दिल्ली के मुग़ल शासन से आज़ाद करा लिया था। जब लचित को मुग़ल सेना के आने की खबर हुई तो उसने अपनी पूरी सेना को ब्रह्मपुत्र नदी के पास खड़ा कर दिया था।

मुग़ल सेना का ब्रम्हपुत्र नदी के किनारे रास्ता रोक दिया गया। इस लड़ाई में अहोम राज्य के 10 हजार सैनिक मारे गए और लचित बोरफुकन बुरी तरह जख्मी होने के कारण बीमार पड़ गए। अहोम सेना का बुरी तरह नुकसान हुआ। राजाराम सिंह ने अहोम के राजा को आत्मसमर्पण के लिए कहा, जिसको राजा चक्रध्वज ने आखरी जीवित अहोमी भी मुग़ल सेना से लड़ेगा कहकर प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया।

लचित बोरफुकन जैसे जांबाज सेनापति के घायल और बीमार होने से अहोम सेना मायूस हो गई थी। अगले दिन ही लचित बोरफुकन ने राजा को कहाः
“जब मेरा देश, मेरा राज्य आक्रांताओं द्वारा कब्ज़ा किए जाने के खतरे से जूझ रहा है, जब हमारी संस्कृति, मान और सम्मान खतरे में हैं, तो मैं बीमार होकर भी आराम कैसे कर सकता हूँ ? मैं युद्ध भूमि से बीमार और लाचार होकर घर कैसे जा सकता हूँ ? हे राजा युद्ध की आज्ञा दें।”

इसके बाद ब्रम्हपुत्र नदी के किनारे सराईघाट पर वह ऐतिहासिक युद्ध लड़ा गया, जिसमे लचित बोरफुकन ने सीमित संसाधनों के होते हुए भी मुग़ल सेना को रौंद डाला। अनेकों मुग़ल कमांडर मारे गए और मुग़ल सेना भाग खड़ी हुई। लचित बोफुकन की सेना ने मुग़ल सेना को अहोम राज्य के सीमाओं से काफी दूर खदेड़ दिया। लचित के एक-एक सैनिकों ने औरंगजेब के कई सौ सैनिकों को मारा था। इस युद्ध के बाद फिर कभी पूर्वोत्तर भारत पर किसी ने हमला करने की नहीं सोची। खासकर औरंगजेब को लचित बोरफूकन की ताकत का अंदाजा हो गया था। यही वजह है कि यह क्षेत्र कभी गुलाम नहीं बना।

ब्रम्हपुत्र नदी के किनारे सराईघाट पर मिली उस ऐतिहासिक विजय के करीब एक साल बाद (उस युद्ध में अत्यधिक घायल होने और लगातार अस्वस्थ रहने के कारण) मां भारती का यह वीर लाडला सदैव के लिए मां भारती के आँचल में सो गया। दुर्भाग्य की बात यह है कि आज इस वीर योद्धा का नाम भारत के अधिकतर लोग नहीं जानते हैं।

24 नवम्बर लचित बोरफुकन दिवस पर इस महान योद्धा को कोटि कोटि नमन