बाज़ वक्त गुस्सा नहीं आता तो डर जाता हूं-डॉ एम डी सिंह

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आदर्श हिमाचल ब्यूरो

डॉ एम डी सिंह
बाज़ वक्त गुस्सा नहीं आता तो डर जाता हूं
और गुस्सैल लोगों की नज़रों में मर जाता हूं
काश ऐसा ही होता मगर नहीं होता देर तक
पीते पीते गुस्सा बस गुस्से से भर जाता हूं
सोचता हूं न टूटूं तो गुस्ताखों का क्या होगा
गांधी सा गर कहीं नायाब कुछ जो कर जाता हूं
खुन्नस को राहत थप्पड़ को गाल देना जो चाहा
आते-आते ख़याल एक ब एक मुकर जाता हूं
सुन दोस्त सियासत और रियासत चन्द क़दम है मगर
चेहरा बदरंग ना हो जाय सोच ठहर जाता हूं