गांधी के विचारों की प्रासांगिकता आज भी बनी हुई है, गांधी मर सकता है मगर गांधी वाद नहीं-प्रोफेसर अभिषेक सिंह

महात्मा गांधी जयंती पर विशेष

♦ प्रोफेसर अभिषेक सिंह
♦ प्रोफेसर अभिषेक सिंह

आदर्श हिमाचल ब्यूरो

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शिमला। अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग का नागरिक अधिकार आन्दोलन, दक्षिण अफ्रिका में नेल्शन मंडेला का नस्ल भेद के विरुद्ध आन्दोलन तथा  म्यांमार में आंग-सांग सू की का लोकतन्त्र बहाली के लिए चलाये गए आन्दोलन में जो तथ्य सामने आए  है वे यह है कि ये सभी आन्दोलन गांधीवादी आदर्शों के आधार पर चलाये गए थे। भारत में राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान सत्य अहिंसा एवं सत्याग्रह के जिस मूल भूत तत्वों की मीमांशा गांधी द्वारा ही की गई थी। उन्होंने इन उपरोक्त आन्दोलन के पथ प्रदर्शन का कार्य किया है।

 

यह कभी सोचा है कि एक ही समय स्वतंत्र हुए भारत और पाकिस्तान आज इस वर्तमान समय में एक दूसरे से जानी दुशमन क्यों है ? एक को दुनिया का सबसे बड़े लोक तन्त्र होने का गौरव प्राप्त है वहीँ दूसरा आज अपने यहाँ लोक तंत्र स्थापित करने के लिए संघर्ष जारी रखे हुए हैं।

 

इस का कारण मात्र यही है कि भारत के राष्ट्रीय मूल्य गांधी के अहिंसात्मक सिद्धांत प आधारित है। जिसका मानना था कि पवित्र साधन से ही पवित्र लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता हैं। यही कारण है कि शासन सता की नाराज़गी होने पर भी भारतीय विरोध करने के गांधीवादी तरीके अर्थात अहिंसात्मक साधन को अपनाते हैं। वहीँ पाकिस्तान के राष्ट्रीय मूल्य की जिन्ना की विचारधारा पर निर्मित हुए जो हिंसा एवं बल को साधन के रूप में स्वीकार करता है। जिसका परिणाम यह हुआ कि जिसकी लाठी उसकी भैंस कि परिकल्पना के आधार पर कभी सैनिक बालों, कभी राजनैतिक तानाशाहों ने पाकिस्तान में लोकतांत्रिक व्यवस्था का मजाक उड़ाने का कार्य किया।

 

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राजनिति, धर्म, व्यवसाय एवं विज्ञान आदि विषयों के संबंध में गांधी द्वारा प्रतिवादित सामाजिक पाप वर्तमान युग में भी महत्वपूर्ण बने हुए हैं। गांधी के विचार थे कि सिद्धांत, राजनीति, त्याग, धर्म, नैतिकता, व्यापार तथा मानवता के बिना विज्ञान का कोई महत्त्व ही नहीं है। आज लोभ, लालच, भ्रष्टाचार एवं साम्प्रदायिक उन्माद की संस्कृतिका निर्माण इन्हीं सामाजिक पापों पर ही बल देने का परिणाम है। गांधी ने हिंद स्वराज नामक अपनी पुस्तक में इस विचार पर बल दिया है कि देश में स्वराज पशिचमी जगत के अंधानुकरण से नहीं बल्कि स्वदेशी विचारधारा के माध्यम से ही संभव है।

 

उनके अनुसार आधुनिक उद्योग उस शोषणकारी व्यवस्था का प्रतीक है, जिसमें एक वर्ग शोषक होता है जबकि दूसरा वर्ग शोषित होता है। उन्होंने भारत के विकास के लिए एक विकसित लघु एवं कुटीर उद्योग की संकल्पना को प्रतिवादित किया जो रोज़गार सृजन एवं आत्मनिर्भरता पर आधारित थी। गाँधी के विचार आज वास्तविकता की कसौटी पर खरे उतरते हुए प्रतीत होते है। मेक इन इण्डिया  एवं स्टार्ट-अप-इंडिया जैसी योजनाएं इसका ज्वलंत उदहारण है। आज महिला सशक्तिकरण के सन्दर्भ में जो भी नियम लागू हुए हैं उसका आधार गांधी द्वारा ही निर्मित किया गया था। गांधी का मानना था कि देश की राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक मुक्ति में महिलाओं की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

 

इसके लिए उन्होंने महिलाओं के लिए समान अधिकार की वकालत की थी। यहाँ तक कि विधायिका में महिलाओं के आरक्षण देने के लिए के भी गांधी पुरे पक्ष में थे। उनका कहना था कि मैं उन विधान मंडल का बहिष्कार करूँगा जिसमें महिला सदस्यों की उचित भागदारी न हो। आज महिला आरक्षण से सम्बन्धित नारी शक्ति वंदन अधिनियम का पारित होना गाँधी के सपनों को साकार करने जैसा है। आज सम्पूर्ण विश्व के समक्ष पर्यावरणीय समस्या काल के रूप में मानवीय सभ्यता को लील जाने के लिए आतुर है। हिमाचल प्रदेश में वर्तमान में आई त्रास्दी इसका एक उदाहरण मात्र है।

 

 

वस्तुतः यह पर्यावानीय संकट मनुष्य की अतृप्त तृष्णा का परिणाम है जिसमें मानव ने ए प्रकृति के मध्य संतुलन को बिगाड़ दिया है। गांधी को एक भविष्यदृष्टा के रूप में मानव की इस प्रवृति का पहले से ही ज्ञान था इसलिए उन्होंने यह उदघोषणा पहले से ही कर दी थी कि प्रकृति मानव की समस्त आवश्यक्ताओ की पूर्ति कर सकती है मगर लालच में आ कर शौषण न करे। इसलिए आज के पर्यावरणीय संकट को नियंत्रित करने के लिए यह अति आवश्यक है कि मानव अपनी उपभोक्तावादी संस्कृति को सीमित करने का प्रयास करें। इस प्रकार गांधी के विचारों की प्रासांगिकता आज के इस दौर में भी बनी हुई है। यह भी एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि गांधी के अपने विचारों की काल निरपेक्षता पर पूर्ण विश्वास था क्योंकि उनके ये विचार व्यक्तिगत साधना एवं मानवीय मूल्यों पर आधारित थे। यही कारण है था कि वर्ष 1931 के कांग्रेस के कराची के विशेष अधिवेशन में गान्धी ने यह उद्धत किया था कि गां मर सकता है मगर गांधी वाद नहीं।