स्पेशल डेस्क 19 फरवरी गोलवलकर की जयंती पर डे स्पैशल में आज बात उनकी किताब बंच ऑफ थॉट्स की। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दूसरे सरसंघचालक माधव राव सदाशिव राव गोलवलकर या ज्यादा प्रचलित भाषा में कहें तो गुरुजी, एक ऐसा नाम जो परिचय का मोहताज नहीं है। 19 फरवरी 1906 के दिन नागपुर में सदाशिव राव गोलवलकर के घर एक बालक जन्म लेता है और नाम पड़ता है माधव । आरंभिक पढ़ाई घर से शुरू करने के बाद माधवराव ने विज्ञान विषय से इंटरमीडिएट किया तो कॉलेज के दिनों में वे एक बेहतरीन खिलाड़ी और बांसुरी, सितार वादक भी हुए। इसके बाद साल 1924 में गोलवलकर ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में बायो साइंस में प्रवेश लिया और पहले बीएससी फिर एमएससी की परीक्षा उत्तीर्ण की। कुछ समय के लिए शोध कार्य भी किया, मगर आर्थिक कारणों से बीच में छोड़ना पड़ा।
साल 1931, गोलवलकर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में अध्यापक के तौर पर नियुक्त हुए और अपनी विलक्षण प्रतिभा के कारण छात्रों में बेहद लोकप्रिय हुए। और यहीं से गोलवलकर गुरु गोलवलकर हो गए और गुरु जी के नाम से विख्यात हुए।
गोलवलकर और बंच ऑफ थॉट्स और उससे जुड़े विवाद:
गुरु जी के पत्राचार, विचार और भाषणों और शिष्यों को दिए उनके मार्गदर्शन का संकलन बंच ऑफ थॉट्स में किया गया है। एक ओर यह पुस्तक आर एस एस के लिए मार्गदर्शक पुस्तक के तौर पर देखा जाता है तो वहीं RSS से बाहर भी देश में बहुत से लोग हैं जो बंच ऑफ थॉट्स में गुरु जी के विचारों से सहमत हैं।
वहीं दूसरी ओर एक धड़ा ऐसा भी है जो गोलवलकर और उनके विचारों के संकलन की किताब बंच थॉट्स को को हिंदू और मुसलमानों के बीच दरार लाने वाला बताता है।
जातिगत आरक्षण पर गोलवलकर के विचार
गोलवलकर की मूल मुखालफत करने वाला धड़ा उन पर आरोप लगाता है कि गोलवलकर जातिवाद को बढ़ावा देते थे और ब्राह्मणों और क्षत्रियों के प्रति उनका खास लगाव था तो वहीं बंच ऑफ थॉट्स में गोलवलकर का यह विचार सामने आता है जहां उन्होंने जातिगत आरक्षण के स्थान पर आर्थिक आरक्षण की बात कही है उनका मानना था कि ब्राह्मण और क्षत्रिय जातियों में भी बहुत से वंचित लोग हैं। इसके अलावा उनका यह भी मानना था कि जातिगत आरक्षण के कारण विभिन्न जातियों में खाई बढ़ती जा रही है हालांकि आगे चलकर बंच ऑफ थॉट्स में जिक्र मिलता है जहां गोलवलकर कहते हैं कि जिन्हें हम आज के वक्त में निम्न जातियां कहते हैं उन्होंने देश की आजादी के लिए भी नेताओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया है। तो वहीं शिवाजी के नेतृत्व में भी मुगलों से लड़े और हिंदुत्व की रक्षा की और इसलिए उनका योगदान अविस्मरणीय है।
राष्ट्रवाद और हिंदूराष्ट्र पर गोलवलकर के विचार
गोलवलकर के राष्ट्रवाद में सावरकर की झलक साफ तौर पर देखने को मिलती है। उस दौर में सावरकर का खासा प्रभाव था और गोलवलकर भी उनसे बेहद प्रभावित थे।
अगर बंच ऑफ थॉट्स में गोलवलकर के विचारों को देखें तो वे सावरकर के राष्ट्रवाद की धारणा को वे दो कदम आगे ले गए जहां उन्होंने सावरकर के पितृभूमि के प्रति निष्ठा के सिद्धांत को अपनाया तो वही राष्ट्र को एक भौगोलिक क्षेत्र से अलग देखते हुए एक सांस्कृतिक, धार्मिक और विरासत के तौर पर देखा।
वहीं गोलवलकर हिंदू की परिभाषा को भी एक दूसरे आयाम पर ले गए, आज के आर एस एस और इनके समर्थक जो दावा करते हैं वह हिंदू की परिभाषा गोलवलकर के विचारों से ही निकल कर आती है। गोलवलकर ने ही सबसे पहले पूजा पद्धति से ऊपर उठकर एक सांस्कृतिक और सामाजिक तौर पर भारत क्षेत्र में रहने वाले लोगों को हिंदू कहा था और उसने मुसलमानों को भारत का अभिन्न हिस्सा मानने के विचार को भी बल दिया।
आलोचकों और समर्थकों में बंटे गोलवलकर:
देश में गोलवलकर के लाखों समर्थक हैं जहां r.s.s. और इससे जुड़े लोगों के लिए गोलवलकर सैद्धांतिक और वैचारिक गुरु हैं तो वही अनेकों समर्थक राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रवाद के लिए भी गोलवलकर के विचारों पर अगाध श्रद्धा रखते हैं। तो वहीं दूसरी ओर गोलवलकर के आलोचकों की भी कमी नहीं है उन्हें टू नेशन थ्योरी का समर्थक और हिंदू पॉलिटिक्स के एक बड़े चेहरे के तौर देखते हैं।
द हिंदू में छपे अपने लेख में वरिष्ठ लेखक और पत्रकार रहे रामचंद्र गुहा ने गोलवलकर के विचारों में टू नेशन थ्योरी का जिक्र किया है इसके अलावा CPI और लेफ्ट गठबंधन समय-समय पर गोलवलकर और उन बंच ऑफ थॉट्स का जिक्र करते रहे हैं।
तो वहीं दूसरी ओर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई से लेकर भाजपा के वर्तमान नेता और दक्षिणपंथी विचारधारा के लोग खुलकर गोलवलकर का समर्थन करते हुए नजर आते हैं। अलग-अलग विचारधाराओं से जुड़े लोग अलग-अलग तरीके से गोलवलकर के व्यक्तित्व और उनके विचारों का व्याख्यान करते हैं।