आदर्श हिमाचल ब्यूरों
नई दिल्ली| चीन अब सिर्फ दुनिया की फैक्ट्री नहीं बल्कि तेजी से दुनिया की ग्रीन फैक्ट्री बनने की दिशा में बढ़ रहा है। ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, चीनी कंपनियों ने दुनिया भर में क्लीन टेक्नोलॉजी सेक्टर जैसे बैटरी, सोलर, विंड टर्बाइन और इलेक्ट्रिक व्हीकल्स में 227 से 250 अरब डॉलर के बीच का निवेश किया है। यह ग्रीन इन्वेस्टमेंट 2022 के बाद तेज़ी से बढ़ा है, पिछले तीन वर्षों में कुल 387 प्रोजेक्ट्स शुरू हुए, जो कुल निवेश का 80% से भी अधिक हिस्सा हैं, सिर्फ 2024 में ही रिकॉर्ड 165 नए प्रोजेक्ट घोषित हुए हैं।
इसी तरह पहले जहां फोकस मुख्य रूप से सोलर एनर्जी पर था, वहीं अब निवेश का रुख बैटरी मटेरियल, ग्रीन हाइड्रोजन, इलेक्ट्रिक वाहन, चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और विंड एनर्जी की ओर मुड़ गया है। ASEAN क्षेत्र अब भी सबसे बड़ा ग्रीन निवेश केंद्र बना हुआ है, MENA (मिडल ईस्ट और नॉर्थ अफ्रीका) में 2024 में चीन का निवेश पहली बार 20% के पार पहुंचा। यूरोप में बैटरी निर्माण हब तेजी से विकसित हो रहे हैं, लैटिन अमेरिका और सेंट्रल एशिया जैसे क्षेत्र भी निवेश मानचित्र पर उभरे हैं। इंडोनेशिया: निकेल रिच बैटरी मटेरियल और सोलर मैन्युफैक्चरिंग, मोरक्को: यूरोप के लिए कैथोड और ग्रीन हाइड्रोजन सप्लाई चेन, गल्फ देश: सोलर और इलेक्ट्रोलाइज़र फैक्ट्रीज़, सरकार से सीधे सहयोग, हंगरी, स्पेन, ब्राज़ील, मिस्र: बैटरी व हाइड्रोजन क्षेत्र के विशेष केंद्र
लोकल मार्केट्स तक पहुंच बनाना, तीसरे देशों को निर्यात बढ़ाना, कच्चे माल के स्रोतों तक सीधी पहुंच हासिल करना उल्लेखनीय है कि इन प्रोजेक्ट्स का आकार भी बड़ा है अब तक 60 से अधिक प्रोजेक्ट्स की लागत 1 अरब डॉलर से अधिक बताई गई है। भारत, जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा बाज़ार है, अभी भी इन निवेशों से काफी हद तक बाहर है। जबकि भारत के पास विशाल सोलर-पावर क्षमता और मजबूत बाज़ार है, चीनी कंपनियों का झुकाव इंडोनेशिया, मोरक्को और यूरोपीय देशों की ओर अधिक है। भारत विदेशी निवेश के बदले में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और लोकल वैल्यू एडिशन पर ज़ोर देता है। हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि नीति-निर्णय में देरी हुई, तो भारत को ये टेक्नोलॉजी महंगे दामों पर आयात करनी पड़ सकती है।
बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों को तैयार ग्रीन टेक्नोलॉजी मिल रही है, लेकिन वे मैन्युफैक्चरिंग हब नहीं बन पा रहे। ऊर्जा संकट के चलते उनका रुख उपभोक्ता बने रहने की ओर है, न कि निर्माता बनने की ओर। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन की यह वैश्विक हरित रणनीति जलवायु संकट से निपटने में मददगार हो सकती है, लेकिन यह तय करेगी कि कौन देश सप्लाई चेन का नेतृत्व करेगा और कौन सिर्फ उसका ग्राहक बना रहेगा। भारत और दक्षिण एशिया के सामने अब अहम सवाल है क्या हम इस बदलाव में सिर्फ बाज़ार बने रहेंगे या वैश्विक ग्रीन सप्लाई चेन में सक्रिय भूमिका निभाएंगे|