उप चुनावों में आपसी खींचातानी के चलते जनता के जवलंत मुद्दे गायब? -जोगटा

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आदर्श हिमाचल ब्यूरो

शिमला, उप चुनावों में आपसी खींचातानी के चलते जनता के जवलंत मुद्दे गायब? प्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी का ये कैसा ढंग,जिसके चलते जनता का हुआ इनसे मोह भंग।जोगटा।

हिमाचल प्रदेश आम आदमी पार्टी ने प्रदेश में हो रहे तीन विधान सभा और एक लोक सभा उपचुनावों को लेकर जिस तरह से कांग्रेस और भाजपा जनता की आंखो में धूल झोंक रहे हैं और वैसे तो दोनो पार्टियां चुनावी रण क्षेत्र में आमने सामने जरूर है लेकिन अंदर खाते वो एक ही हैं।
इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रदेश की जनता के जवलंत मुद्दो को नजर अंदाज करके उपचुनावों में दोनो पार्टियों में कहीं न कहीं अंदरूनी तौर पर और आपसी खींचातानी एवं एक दूसरे की कमियां उजागर करके कई तरह के तंज भी कसे जा रहे हैं तथा जिस कदर ये दोनो पार्टियां एक दूसरे पर कई प्रकार के गंभीर इल्जाम मड्डने पर उतारू हैं। जिसके चलते इनकी इनकी ऐसी तमाम हरकतों से जनता का कोई लेना देना नही है।
जनता को तो अपने मुद्दों के निराकरण से मतलब है।जिसे उपचुनावों में कहीं दूर दूर तक नही देखा जा रहा है और न ही जनता हित में विकासात्मक पहलुओं पर प्रकाश डाला जा रहा है।

इससे जगजाहिर हो ही गया है कि ये दोनो पार्टियां एक दूसरे पर सार्वजनिक तौर पर आरोप और प्रत्यारोप लगाने तक ही सीमित है।जनता हर बार की भांति इनके रहमो करम पर तरसने को मजबूर है।होना तो ये चाहिए था कि जनता हित कुछ काम की बातें करते। जब की होना तो ये चाहिए था कि विकास की बातें होती उसके ऊपर खुली बहस होती।यदि विकास में पिछली सरकारों की कमियों को अगली सरकार पूरा करती और साथ में जनता की सहूलियत वास्ते शवेतपत्र भी जारी होते? कि कोन कोन से काम हुए और होने बाकी हैं।

लेकिन अफसोस ऐसा नही हो रहा है। दोनो पार्टियों ने सांठ गांठ करके सता पर काबिज होने वास्ते बारी लगा रखी है।ताकि तीसरा कोई विकल्प उभर न सके।

शिमला से प्रैस को जारी एक बयान में प्रदेश आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता एसएस जोगटा ने प्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी की इस तरह की सोची समझी चाल को अति दुर्भाग्यपूर्ण बताया। जिसके चलते जनता के जवलंत मुद्दों जैसे कि कमरतोड़ महंगाई,विकराल होती जा रही बेरोजगारी की समस्या,किसानों बागवानों की दुखती रगों को दरकिनार करना,कर्मचारियों की कई प्रकार की तकलीफों को नजर अंदाज करना,पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा,रिटेंशन पॉलिसी के मुद्दे को एकमुश्त अमलीजामा न पहनाना,पानी बिजली,गार्बेज,प्रापर्टी टैक्स की भारी भरकम और बड़ी हुई दरों को काफी कम न करना, प्रदेश में बनने वाला सीमेंट प्रदेश की जनता को दूसरे राज्यों की अपेक्षा महंगा उपलब्ध होना।

करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी भवन मालिकों के नक्शे पास न करवाना,शिमला में अंग्रेजों के जमाने से भी पहले के बने मकानों की नगर निगम द्वारा सुध न लेना, शहर में रेडी फेडी वालों के रहन सहन एवं उनके धंधे पानी की उचित व्यवस्था का न होना। कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों की समायाओं का निराकरण एम करना। करुणामुलक आधार आश्रितों को एकमुश्त नोकरियों के मुद्दे को सालों से लटकाना,आउटसोर्स कर्मचारियों से किए जा रहे शोषण को जस का तस रखना,अशावर्कर एवं आंगनवाड़ियों की मांगों को भी ठंडे बस्ते में रखना,कई विभागों ,खासकर प्रदेश परिवहन निगम के कर्मचारियों को पिछले की महीनो से वेतन और पेंशन का वितरण न होना इत्यादि ऐसी कई समस्याएं हैं जिनके निराकरण के लिए दोनो पार्टियों के पास उपचुनावों के चलते कोई सरोकार नही है।

इस कदर जनता की अनदेखी करना कहां तक लाजमी रहेगा और इसकी सार्थकता क्या रहेगी। ये देखने वाली बात होगी। इसका स्टीक जवाब और निर्णय प्रदेश की जनता 30 अक्टूबर को सुनाने वाली है।