शिमला। एक नए विश्लेषण के अनुसार, वायु प्रदूषणके खिलाफ भारत की लड़ाई केवल उसके शहरों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों तक भी फैली हुई है। उपग्रह डेटा की जांच पर आधारित यह विश्लेषण बताता है कि देश में शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में पार्टीक्यूलेट मैटर (पीएम2.5) प्रदूषण के समान स्तर हैं। अच्छी बात यह है कि पिछले कुछ वर्षों में प्रदूषण के स्तर में तुलनात्मक गिरावट देखी गई है।
इस विश्लेषण के निष्कर्ष उसप्रचलित धारणाको चुनौती देते हैं कि वायु प्रदूषण मुख्य रूप से एक शहरी समस्या है। क्लाइमेट ट्रेंड्स नामक संगठन द्वारा किया गया यह विश्लेषण भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली के 1 किमी x 1 किमी उपग्रह डेटा पर आधारित है। इस डेटा ने संकेत दिया कि जहां वायु प्रदूषण पूरे भारत में एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है, वहीं उत्तर भारत सबसे अधिक प्रदूषित के रूप में उभरा है।
ध्यान देने वाली बात ये है कि सभी क्षेत्रों में शहरी और ग्रामीणसघनता के बीच थोड़ा ही अंतर था। यह दर्शाता है कि दोनों आबादी तुलनीय स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करती हैं। इस सब के साथ, यह अध्ययन ग्रामीण क्षेत्रों में, शहरी क्षेत्रों के मुक़ाबले में, वायु गुणवत्ता निगरानी की एक सामान्य कमी पर भी प्रकाश डालता है। साल 2019 में शुरू किया गया राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) भी मुख्य रूप से शहरों में वायु प्रदूषण को कम करने पर केंद्रित है। इस तथ्य के दृष्टिगत पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों के मामले में ग्रामीण क्षेत्रों को प्राथमिकता बनाने की आवश्यकता उभर कर सामने आती है। यह विश्लेषण इस संदर्भ में एक भौगोलिक रूप से व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता को भी प्रदर्शित करता है।
आगे बात करें तो कुछ साल पहले तक, भारत का सबसे अधिक आबादी वाला राज्य, उत्तर प्रदेश, दुनिया के कुछ सबसे प्रदूषित क्षेत्रों का घर था। मगर प्रदेश में पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देने वाली राज्य सरकार के ठोस प्रयासों के चलते यहाँ महत्वपूर्ण सुधार दिखाई देते हैं। क्लाइमेट ट्रेंड्स की इस रिपोर्ट की मानें तो 2017 से 2022 के आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में शहरी और ग्रामीण PM2.5 स्तरों में क्रमशः 37.8% और 38.1% की कमी देखी गयी है। इसके चलते यह राज्य, वायु प्रदूषण नियंत्रण और प्रबंधन में एक सफलता की कहानी के रूप में दिखाई देता है।
इस विश्लेषण ने कुछ राज्यों में प्रगति की कमी को भी उजागर किया। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्रने शहरी PM2.5 स्तरों में केवल 7.7% की कमी दर्ज की, जबकि गुजरात ने ग्रामीण PM2.5 स्तरों में 8.2% की कमी देखी, जिससे यह सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला राज्य बन गया।
यह स्पष्ट है कि वायु प्रदूषण को संबोधित करने के लिएसभी क्षेत्रों में व्यापक प्रयासों की आवश्यकता है। इन प्रयासों में उन राज्यों पर ध्यान केंद्रित करना ज़रूरी है जिन्होंने बहुत कम प्रगति देखी है। विश्लेषण वायु प्रदूषण प्रवृत्तियों पर नज़र रखने और प्रदूषण पैटर्न को समझने में उपग्रह डेटा के महत्व को भी रेखांकित करता है। जहां जमीनी निगरानी सीमित है और उसका विस्तार करना महंगा है, उपग्रह से मिला PM2.5 डेटा मूल्यवान जानकारी प्रदान करते हैं। लेकिन फिर भी, उपग्रह डेटा की गुणवत्ता में सुधार के लिए, ग्रामीण क्षेत्रों में सघन निगरानी नेटवर्क स्थापित करना महत्वपूर्ण है।
इस विश्लेषण पर क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने शहरों से परे वायु प्रदूषण नियंत्रण प्रयासों को बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि जहां एनसीएपी को लागू करने वाले राज्यों में प्रगति देखी गई है, वहीं महाराष्ट्र और गुजरात जैसे पश्चिमी राज्यों ने बहुत कम प्रगति की है। खोसला ने हाइपर लोकल या अति-स्थानीय प्रदूषण को संबोधित करते हुए एयरशेड मैनेजमेंट अप्रोच को शामिल करते हुए व्यापक पैमाने पर वायु गुणवत्ता के प्रबंधन के महत्व पर बल दिया।
आगे, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम की संचालन समिति के सदस्य और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर में प्रोफेसर, एस एन त्रिपाठी ने वार्षिक उतार-चढ़ाव पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय दीर्घकालिक रुझानों के मूल्यांकन पर ज़ोर दिया का आग्रह किया। उन्होंने 2026 तक 40% की कमी के लक्ष्य के साथ 2017 से 2022 तक PM2.5 के स्तर में समग्र कमी के महत्व पर जोर दिया। त्रिपाठी ने उपग्रह डेटा में संभावित त्रुटियों को भी स्वीकार किया लेकिन बड़े राज्यों और क्षेत्रों में लगातार कमी के रुझान पर प्रकाश डाला।
सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक साइंसेज, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी दिल्ली के एक प्रोफेसर सग्निक डे के अनुसार, भारत 2016-2017 के बाद से अपने बढ़ते वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने की ओर बढ़ रहा है। हालांकि यह एक सकारात्मक उपलब्धि है, लेकिन अब चुनौती प्रदूषण के स्तर को और कम करने की है, खासकर जब देश राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के अंतिम वर्ष में 2024 तक पार्टिकुलेट मैटर के स्तर को 20-30% तक कम करने का लक्ष्य रखता है। डे एक हाइब्रिड कार्यवाही की बात करते हैं जिसमें स्थानीय और क्षेत्रीय डेटा के संयोजन से वायु गुणवत्ता निगरानी के लिए एक मजबूत संकर दृष्टिकोण बने।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने क्षेत्रीय वायु गुणवत्ता ट्रैकिंग के लिए उपग्रह डेटा का उपयोग करना शुरू कर दिया है। साग्निक आगे कहते हैं कि भविष्य में भारत में प्रदूषण के स्तर की समझ बढ़ाने और स्थानीय और क्षेत्रीय दोनों स्तरों पर हस्तक्षेप की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिए एक हाइब्रिड निगरानी दृष्टिकोण विकसित करना ज़रूरी होगा।
अंत में आईसीएमआर-नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन एनवायर्नमेंटलहेल्थ, जोधपुर के निदेशक डॉ. अरुण शर्मा ने कहा कि रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण केवल शहरों की समस्या नहीं हैं और ग्रामीण क्षेत्र भी इससे समान रूप से प्रभावित हैं। इसको देखते हुए यह साफ होता है कि स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप रोकथाम और शमन उपायों को तलाशना ज़रूरी है।
आदर्श हिमाचल ब्यूरो
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