आदर्श हिमाचल ब्यूरो
शिमला। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने जल सप्लाई और सिंचाई योजनाओं के लिए हिमाचल प्रदेश की तरफ से पानी लेने के लिए ‘कोई एतराज नहीं का सर्टीफिकेट’ (एनओसी) लेने वाली शर्तों को हटाने के बारे में भारत सरकार के फैसले का कड़ा विरोध किया है। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश को बिजली के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने 7.19 प्रतिशत हिस्सा दिया हुआ है। काबिले गौर है कि ऊर्जा मंत्रालय ने जिस प्रकार से पत्र लिखा है उसकी इबारत से यह स्पष्ट नहीं हो रहा है कि क्या यह नए सिरे से पानी का बंटवारा किया गया है क्योंकि यदि ऐसा है तो ऊर्जा मंत्रालय को पानी के बंटवारे का कोई हक नहीं है।
मुख्यमंत्री भगवंत मान ने केंद्र के इस फैसले पर कड़ी आपत्ति जताते हुए प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है और कहा है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि केंद्र सरकार ने भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) के अध्यक्ष को इस संबंध में 15 मई, 2023 को निर्देश जारी किया है।
सीएम मान ने कहा कि सतलुज, रावी और ब्यास नदियों का पानी पंजाब, हरियाणा , जम्मू कश्मीर व राजस्थन को विभिन्न समझौतों द्वारा निर्धारित किया गया है। इन नदियों का पानी भाईवाल राज्यों के खास इलाकों के लिए निर्धारित है और यह निर्धारित पानी विशेष नहरी प्रणली के जरिए सप्लाई होता है।
संविधान की प्रांतीय सूची -2 की मद 17 के मुताबिक पानी राज्यों का मामला है और नदियों के पानी को निर्धारित करने का हक संविधान की धारा 262 के अधीन बने नदी जल विवाद एक्ट 1956 के मुताबिक केंद्र सरकार की ओर से राज्य सरकार की शिकायत पर बनाए जाने वाले ट्रिब्यूनल के अधिकार क्षेत्र में होगा। सीएम मान ने कहा कि पंजाब, हरियाणा और राजस्थान उदार रूप से हिमाचल के लिए पीने के पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए पानी देते रहे हैं। लेकिन अब भारत सरकार ने सिंचाई योजनाओं को भी इसमें शामिल कर लिया है।
उन्होंने याद दिलाया कि पिछले सालों में बीबीएमबी ने 16 बार हिमाचल प्रदेश को पानी छोड़ने की स्वीकृति दी है। उन्होंने कहा कि नदियों का पानी साल दर साल तेजी से कम हो रहा है। पंजाब, हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्य भी लगातार पानी को बढ़ाने की मांग कर रहे हैं ऐसे हालात में भारत सरकार ने एकतरफा फैसला कैसे ले लिया इस पर पुनर्विचार करने की जरूरत है।