चैवण में निकली अवैध सड़क पर महीने बाद प्राथमिकी दर्ज

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आदर्श हिमाचल ब्यूरो

शिमला। चैवण में अवैध सड़क का मामला 11 सितम्बर को घटित हुआ था। जिसमें आरोपी रसूखदार परिवार से सम्बन्ध रखने के कारण वन विभाग मामले को दबाने के लिए नयी-नयी कहानियां गढ़ता रहा। इस अवैध सड़क में अनेकों पेड़ों को बुरी तरह नुकसान पहुंचाया गया था। बहुत से पेड़ों की जड़ों को काट दिया गया है जिसके कारण आने वाले समय में ये पेड़ मामूली बारिश से भी गिर सकते हैं। यह मामला मीडिया में आने के बावजूद लगातार दबाया जाता रहा। आखिर जब रसूखदार परिवार के प्रभाव के कारण इस मामले पर कोई कारवाई नहीं की गयी तो इसकी शिकायत मुख्यमंत्री सेवा संकल्प हैल्पलाईन में की गयी। इसकी प्राथमिक कारवाई में मामले को दबाने की मंशा से एक मामूली रपट मशोबरा पुलिस चैकी में दे दी गयी। लेकिन 18 सितम्बर के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया। संकल्प सेवा योजना में दुबारा से मामले पर जोर डालने पर पुलिस ने शिकायतकर्ता को पुलिस चाौकी में बुलाकर करीब 2 घंटे तक पुछताछ की। इसके बाद 11 अक्तुबर को बेहद मामूली धाराओं में पेड़ों को नुकसान पहुंचाने का केस दर्ज किया गया है। इन धाराओं को लगाते समय ध्यान रखा गया है कि रसूखदार परिवार के ये लोग आसानी से छूट जायें। हैरत की बात है कि पुलिस को 18 सितम्बर को रपट दर्ज की लेकिन कोई कारवाई नहीं हुई। मुख्यमंत्री संकल्प योजना मंे शिकायत के दबाव में ही मामूली धाराओं में प्राथमिकी दर्ज की गयी है।

किसी के गले नहीं उतर रही वन विभाग की थ्योरी……..

वन विभाग ने अवैध सड़क निकालने वाले आरोपियों को बचाने केे लिए एक अनोखी तर्कहीन थ्योरी गढ़ी है। 2014 में उस इलाके के किसी गांव में दो महिलाओं को जलने से मृत्यु हुई थी। इसी बात को वन विभाग ने अवैध सड़क से जोड दिया। वन विभाग की थ्योरी कहती है कि 2014-15 में महिलाओं के जलने के कारण यहां एक रास्ते को बनाने की आवश्यकता थी जिसे वन विभाग द्वारा बनाया गया था। लेकिन जहां पर अवैध सड़क निकली है वहां कोई महिलायें नहीं जली थी। महिलाओं के जलने का स्थान धार गांव की समीपवर्ती घासनी है। जहां पर अवैध सड़क निकली है वह भूमी वन विभाग की है। लिहाजा उनकी थ्योरी किसी के गले नहीं उतर रही। वन विभाग रसूखदार परिवार के लोगों को बचाने के लिए ही नये से नये बहाने बना रहा है। सवाल यह भी खड़ा हो रहा है कि अगर वन विभाग रास्ता ही बनाना चाहता था तो उसकी सहमति से पेड़ कैसे क्षतिग्रस्त हुए। अगर सहमति नहीं थी तो करीब डेढ़ किलोमीटर की सड़क कैसे बन गयी।