जा रहा हूं दोस्तों- डॉ एम डी सिंह

आदर्श हिमाचल ब्यूरो

जश्न है ना जोश है
ना महफिल में कोई मदहोश है
न कोई अलविदा कह रहा
आज हर कोई खामोश है
ना बदनीयत थी मेरी
ना ही मैं बदहवास था
पथ में कोरोना मिल गया
आ चिपका पिल गया
हुआ आदमी घरों में बंद
मिले उसको कुछ मामूली चंद
मैं पकड़ उसे धर कर रहा
जो कुछ हुआ खुद पर सहा
फिर भी लिए जा रहा सिर्फ बदनामियां हाथ में
जा रहा हूं दोस्तों लेकर करोना साथ में
हर साल कुछ न कुछ चले-
जाते हैं संग छोड़ कर
हर साल ही जंग लड़े-
जाते हैं सम्बन्ध तोड़कर
चाहे शादियां ना एक हुईं
मुद्दतों बाद रिश्ते मिल कर रहे
हिल कर रहे घुल कर रहे
घर लौट आपस में सिल कर रहे
फिर भी लो देख लो कलंक साटे माथ में
जा रहा हूं दोस्तों लेकर कोरोना साथ में
गिन लेना न कम इतने
अतीत में हुए हादसे
आया न होगा आज तक जंगल कभी
शहर घूमने
निकल अपनी मांद से
हवा इतनी साफ हुई आकाश लगा झांकने
प्रदूषण ठिठक हाथ जोड़ थर-थर लगा कांपने
दिख रहा ना फिर भी कोई
पीठ मेरा ठोंकता
एक भी ना मिला जो आकर मुझे रोकता
भूखा ना कोई मरा
चाहे काम करने से डरा
दुर्भिक्ष भी दूर रहा करबद्ध खड़ा प्राथ में
जा रहा हूं दोस्तों लेकर कोरोना साथ में
मंदिर मस्जिद गिरजा गुरुद्वारे
आराम से बैठे बंद मुद्दतों बाद किनारे
भजन कीर्तन नमाज अरदास
घर पर ही भगवान पधारे
खिले फूल मडराईं तितलियां
पाल खुले ना नौका डोली
समुद्र सतह पर घूमने आईं मछलियां
झूम उठे वृक्ष लकड़हारा गुम
चह-चह चिड़ियां चहचहाईं
बहेलिया दबाकर भागा दुम
पर कहीं मिली नहीं तारीफ मुझे
घट गई दूरियां चाहे दास-नाथ में
जा रहा हूं दोस्तों लेकर करोना साथ में
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