कसुम्पटी में आपदा से प्रभावित सड़कों को तुरंत दुरुस्त करे सरकार – CPIM

कहा... केन्द्र सरकार इस आपदा को  करे ‘‘राष्ट्रीय आपदा’’ घोषित 

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सीपीआईएम
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आदर्श हिमाचल ब्यूरो

 

शिमला। सी.पी.आई.(एम) की लोकल कमेटी, कुसुम्पटी का आपदा से हुई क्षति का आकलन करने तथा प्रभावित लोगों को जल्द राहत प्रदान करने के उददेश्य से एक अधिवेशन का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता प्रताप ठाकुर ने की। राज्य एवं जिला कमटी सदस्य काॅ जगत राम तथा प्रभारी काॅ जगमोहन ठाकुर ने इस अधिवेशन में विशेष रूप से हिस्सा लिया। काॅ जगत राम ने बताया कि इस बरसात में पूरे प्रदेश में आई भयंकर आपदा से आम जन जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है। इसे पटरी पर लाने के लिए प्रदेश एवं केन्द्र सरकारों को तालमेल से कार्य करने की आवश्यकता है।

 

 

भारी वर्षा बाढ़ व भूस्खलन से प्रदेश में लोगों की निजी सम्पति जिसमें जमीन, मकान, बागवानी, सब्जियों, कृषि, पशुपालन आदि को भारी क्षति हुई है जिसका अभी तक सही रूप में आकलन नहीं किया गया है। बाढ़ व भूस्खलन में बड़ी संख्या में निजी गाड़ियां बही व दबी हैं। यदि इसका आकलन सही रूप में किया जायेगा तो नुकसान सरकार द्वारा किये गये आकलन का कई गुणा है। वर्तमान परिस्थिति में इसकी भरपाई करना बेहद कठिन कार्य है। हालांकि राज्य सरकार ने इसे ‘‘राज्य आपदा’’ घोषित किया है। परन्तु इसके अनुरूप नुकसान की भरपाई के प्रयास नजर नहीं आ रहे हैं।

 

पार्टी ने आकलन किया कि प्रदेश में सरकारी आकलन के अनुसार 8649 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। परन्तु यह आकलन 12000 करोड़ रुपये तक जा सकता हैै। इसमें अभी तक 381 लोगों की जान गई है तथा 36 लोग लापता हुए है। सरकार के आकलन के अनुसार अभी तक 2466 मकान पूरी तरह से नष्ट हुए हैं तथा 10648 मकानों, 312 दुकानों के साथ 5517 गौशालाओं को नुकसान पहुंचा है। इसमें लगभग 16000 पशुओं की भी मौत हुई है। प्रदेश में अभी भी तीन राष्ट्रीय उच्चमार्ग सहित 246 सड़कें यातायात के लिए बंद है। भूस्खलन से वनों व पेड़ों की भी भारी क्षति हुई है।

 

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प्रदेश में परिवहन का एकमात्र साधन सड़क मार्ग है यह बाढ़ व भूस्खलन से बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हुए है। लगभग सभी राष्ट्रीय उच्च मार्ग जो प्रदेश को देश के अन्य हिस्सों से जोड़ते हैं या तो बंद है या बिल्कुल दयनीय स्थिति में है। इसके अतिरिक्त राज्य के मुख्य मार्ग व लिंक रोड़ भी भूस्खलन से बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हुए है और अभी भी इनमें काफी सडके बंद है तथा परिवहन सुचारू रूप से नहीं चल रहा है। इससे किसानों व बागवानों को सेब, सब्जी व अन्य फसलें मण्डियों तक पहुंचाने में अत्यन्त कठिनाई हो रही है तथा कई किसान बागवान तो फसल मण्डियों तक पहुंचा ही नहीं पाए है जिससे इनकी फसल सड़ गई तथा भारी क्षति उठानी पड़ी है। इसके अतिरिक्त पेयजल योजनाओं, बिजली के ट्रांसफार्मर व लाईनों को भी भारी क्षति हुई है। आज भी कई गांव महीनों से पेयजल योजनायें ठप्प होने के कारण साफ पीने के पानी से वंचित हैं।

 

सी.पी.आई.एम. इस बारे प्रदेश के मुख्यमंत्री तथा राज्यपाल से मिले व ज्ञापन भी दिए। साथ ही पार्टी अन्य जनवादी संगठनों के साथ मिलकर प्रदेश व केन्द्र सरकार से लगातार मांग कर रही है कि इस आपदा को जल्द ही ‘‘राष्ट्रीय आपदा’’ घोषित कर प्रदेश को अतिरिक्त राहत व आर्थिक सहायता प्रदान की जाये।

 

राज्य सरकार ने 10 अगस्त, 2023 तक 6746.93 करोड़ रुपये के नुकसान का आंकलन कर केन्द्रीय ग्रह मंत्रालय को भेजा है। उसके बाद भी प्रदेश में भारी नुकसान हुआ है तथा अब यह आंकड़ा 12,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। केन्द्र सरकार से अभी तक राज्य आपदा प्रतिक्रिया फण्ड (ैक्त्थ्) के तहत 360.80 करोड़ रुपये प्राप्त हुए है तथा राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया फण्ड (छक्त्थ्) के अन्तर्गत अभी 189.27 करोड़ रुपये प्राप्त हुए है। यह उसी 200 करोड़ रुपये में से है जो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के हिमाचल दौरे के दौरान जिसकी घोषणा की गई थी। यह पैसा 15वें वित्त आयोग के बजट में रखा गया था। 15वें वित्त आयोग की अवधि मार्च 2026 में समाप्त हो जाएगी। राहत मैन्युल में फसल के नुकसान के लिए मात्र 2000 रुपये प्रति बीघा ही राहत राशि रखी गई है जोकि काफी कम है।

 

 

कसुम्पटी क्षेत्र में स्थानीय विधायक जो कि पंचायती राज एवं ग्रामीण विकास मंत्री हैं, पंचायतों का दौरा अवश्य कर रहे हैं जिसमें लोग प्रत्येक परिवार से चंदा एकत्रित करके शामियाना, फूलमालाएं, धाम, सम्मानित करने का सामान आदि खर्चे जरूर कर रहे हैं, लेकिन बदले में दस महीने बीत जाने के बाद भी विकास कार्यों की दशा में सुधार नजर नहीं आ रहा है। निःसन्देह लोगों में अपेक्षाएं अधिक हैं, परंतु उसके अनुरूप न तो सड़कों की स्थिति में सुधार आया। जबकि कसुम्पटी क्षेत्र में सबसे अधिक लगभग तीन सौ अवैध सड़कों को इस समय नियम के तहत वैध करने को अंजाम दिया जा सकता था। न ही स्कूलों में खाली पद भरे हैं, न भवनों के निर्माण पूरे हुए, न ही दूर-दराज क्षेत्रों को बसों की सुविधा मिली। शहरी क्षेत्र में तथा टी.सी.पी. के दायरे में आने वाले शिमला के आस-पास के गांवों में भी अनियोजित ढांचे के निर्माण को लेकर कोई ठोस नीति नहीं है।

 

अधिवेशन में 11 पंचायतों से आए 26 सदस्यों ने हिस्सा लिया। विभिन्न पंचायतों से आए प्रतिनिधियों ने बताया कि व्यक्तिगत एवं सामुदायिक रूप से हुई क्षति का पूर्ण रूप से आकलन नहीं किया गया है। और कई बार निर्धारित तिथि पर अधिकृत सरकारी कर्मियों द्वारा न आने पर अलग से गाड़ी के प्रावधान के रूप में लोगों पर बोझ पड़ रहा है। और मनरेगा के तहत भी एक वार्ड से केवल दो ही शेल्फों को डालने के निर्देश हैं जो नाकाफी हैं।