फागली में राज्यस्तरीय महाविद्यालयीय संस्कृत प्रतियोगिता–2025 का भव्य शुभारम्भ

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आदर्श हिमाचल ब्यूरों

शिमला । हिमाचल प्रदेश संस्कृत अकादमी और वत्समयी संस्कृत महाविद्यालय, फागली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राज्यस्तरीय महाविद्यालयीय संस्कृत प्रतियोगिता–2025 का शुभारम्भ आज फागली क्लब सभागार में वैदिक मंगलाचारण और दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। प्रदेश के विभिन्न जिलों से आए महाविद्यालयों के विद्यार्थियों, प्राध्यापकों और शोधार्थियों की उपस्थिति ने उद्घाटन सत्र को औपचारिक और महत्वूपर्ण आधार दिया। आयोजकों के अनुसार इस वर्ष प्रतिभागियों की संख्या पिछले वर्षों की तुलना में अधिक रही, जिससे प्रतियोगिता की व्यापकता साफ दिखाई दी।

मुख्य अतिथि डॉ. अमरजीत कुमार शर्मा, निदेशक–उच्चतर शिक्षा विभाग (हि. प्र.), ने अपने संबोधन में कहा कि संस्कृत को केवल परंपरा की भाषा मानना एक गंभीर गलतफहमी है। उन्होंने कहा कि संस्कृत विश्व की सबसे व्यवस्थित और वैज्ञानिक भाषाओं में से एक है, जिसकी संरचना आज भी तर्क, अनुसंधान, अभिव्यक्ति और भाषा-विज्ञान के आधुनिक मानकों से सामंजस्य रखती है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इस प्रकार की प्रतियोगिताएँ विद्यार्थियों को मंच ही नहीं, बल्कि वास्तविक परीक्षा का अवसर देती हैं—जहाँ उनकी उच्चारण-कौशल, भाषिक शुद्धता, तर्क-वितर्क क्षमता और प्रस्तुति-दक्षता स्पष्ट रूप से सामने आती है।
उन्होंने आयोजक संस्थाओं को ऐसे कार्यक्रम आयोजित करने के लिए बधाई दी।

उद्घाटन समारोह के पश्चात वत्समयी संस्कृत महाविद्यालय के विद्यार्थियों ने कालिदास कृत ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’ का नाट्य-प्रदर्शन प्रस्तुत किया। प्रस्तुति में संवादों का स्पष्ट उच्चारण, मंच अनुशासन और पात्रों की संतुलित अभिव्यक्ति देखने को मिली, जिसे उपस्थित दर्शकों, अतिथियों और निर्णायकों से प्रशंसा प्राप्त हुई। यह प्रस्तुति प्रतियोगिता के सांस्कृतिक स्तर को मजबूत रूप में स्थापित करती दिखाई दी।

इसके बाद विभिन्न प्रतियोगिताओं की प्रारंभिक स्पर्धाएँ शुरू हुईं। पहले दिन संस्कृत भाषण, श्लोक-पाठ, निबंध-लेखन, काव्य-गायन, शब्द-संरचना, त्वरित-विचार और नाट्य-अभिव्यक्ति जैसी प्रमुख विधाओं में प्रतिभागियों ने अपनी प्रस्तुतियाँ दीं। निर्णायक मंडल ने कहा कि इस बार प्रतिभागियों में विषय की समझ, भाषा-प्रयोग और प्रस्तुति-कौशल में उल्लेखनीय सुधार देखने को मिला है। कई प्रतिभागियों ने आधुनिक संदर्भों को संस्कृत अभिव्यक्ति से जोड़कर प्रस्तुति दी, जो प्रतियोगिता में नई दिशा का संकेत करती है।

कार्यक्रम संयोजक डॉ. मुकेश शर्मा ने बताया कि प्रतियोगिता का उद्देश्य संस्कृत को ‘‘ग्रंथों तक सीमित विषय’’ के रूप में देखने की धारणा को बदलना है। उन्होंने कहा कि संस्कृत को जीवंत और व्यावहारिक भाषा के रूप में प्रस्तुत करना आवश्यक है, ताकि विद्यार्थी इसे केवल पाठ्य सामग्री नहीं बल्कि संवाद और अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में समझें। उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में विद्यार्थियों की सहभागिता इस बात का प्रमाण है कि संस्कृत विषय से दूरी बढ़ने की जो धारणा बनाई जाती है, वह वास्तविक स्थिति को प्रतिबिंबित नहीं करती।

संध्याकालीन सत्र में ‘संस्कृत संध्या’ का आयोजन किया गया, जिसमें विद्यार्थियों ने भजन-गायन, संध्या आरती और पहाड़ी लोक-प्रस्तुति दी। सांस्कृतिक कार्यक्रम ने दिनभर की प्रतियोगिताओं को संतुलन दिया और आयोजन के सांस्कृतिक स्वरूप को अधिक व्यापक बनाया। उपस्थित दर्शकों ने विद्यार्थियों की प्रस्तुतियों की सराहना की और आयोजन की विविधता को मजबूत पक्ष बताया।

पहले दिन की सभी गतिविधियाँ निर्धारित समय के अनुसार सम्पन्न हुईं। आयोजकों के अनुसार प्रतियोगिता के दूसरे दिन शेष विधाओं की स्पर्धाएँ आयोजित होंगी तथा कार्यक्रम का समापन पुरस्कार वितरण समारोह के साथ किया जाएगा। आयोजक मंडल ने प्रतिभागी महाविद्यालयों के सहयोग और अनुशासन की विशेष प्रशंसा की।