विशेष रिपोर्ट आदर्श हिमाचल ब्यूरो,
जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में स्थानीय कार्यवाई के महत्व को समझते हुए, दुनिया की सबसे बड़ी उप राष्ट्रीय इकाई, उत्तर प्रदेश, लगातार इस दिशा में काम कर रही है। जहां फिलहाल मिस्त्र के शर्म – अल-शेख़ में आयोजित हो रहे संयुक्त राष्ट्र के सीओपी 27 सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन से नुकसान और उसकी भरपाई पर चर्चा चल रही हैं, वहीं उत्तर प्रदेश में स्थानीय प्रशासन लगातार स्थानीय कार्यवाई से इस समस्या से निपटने में लगा हुआ है।
दरअसल जलवायु परिवर्तन प्रभावों को प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ते तापमान, वर्षा की स्थितियों में बदलाव, बढ़ती आर्द्रता, जैसे रूपों में महसूस किया जाता है। मौसम के इन बदलावों का प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों में फसलों के नष्ट होने, उत्पादन में कमी होने या उत्पादों की गुणवत्ता प्रभावित होने, कृषि में बढ़ती लागत, पानी की उपलब्ध्ता व गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव, गांवों में बढ़ते जल-जमाव एवं जल व वेक्टर जनित रोगों आदि के रूप में हमारे सामने है और इन सब में लगातार वृद्धि भी हो रही है। ऐसे में विकास के प्रयास व लगाये गये संसाधनों का लाभ प्रभावित हो जाता है।
इसी के दृष्टिगत, एक अनूठी पहल के अंतर्गत, उत्तर प्रदेश के नौ कृषि-जलवायु क्षेत्रों में 58,189 ग्राम पंचायतें जलवायु परिवर्तन प्रभावों से निपटने में, अपने ग्राम वासियों के साथ, स्वयं को तैयार करने की दिशा में तत्पर है।
जलवायु आपदा और प्रदेश की बढ़ती चुनौतियां
जलवायु परिवर्तन व इससे जनित आपदाओं का सर्वाधिक प्रभाव कृषि व इससे जुड़ी गतिविधियों जैसे पशुपालन, सब्ज़ी व बागवानी, मत्स्य पालन आदि से जुड़े लोगों पर पड़ता है। लघु सीमान्त व महिला किसानों की आजीविका काफी हद तक प्रभावित हो जाती है। जल संसाधनों में कमी के कारण शुद्ध पेयजल की उपलब्धता व सिंचाई में लागत बढ़ जाती है।
- पिछले 68 वर्षों (1951-2018) में बुंदेलखंड व विन्ध्य क्षेत्र के लगभग आधे क्षेत्र में वर्षा में कमी आई है। 2050 तक औसत वार्षिक वर्षा की मात्रा में और भी गिरावाट आ सकती है।
- वैसे तो पूरे प्रदेश में गर्मी और गर्म दिनों की संख्या बढ़ रही है। बुन्देलखण्ड में साल में गर्म दिनों की संख्या 30 प्रतिशत तक बढ़ सकती है।
- सूखा क्षेत्रों जैसे बुन्देलखण्ड, विन्ध्य आदि के जिलों में वर्षा विहीन दिन बढ़ते जा रहे हैं।
- उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में भारी वर्षा के दिन अधिक होते हैं। ऐसे में विकास कार्यों में जल-बहाव प्रावधानों में कमी और ताल-तलैये, हरित क्षेत्रों आदि में कमी के कारण जल जमाव की स्थिति बन जाती है।
- उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्र में सदी के मध्य तक (2050) गर्म दिनों की संख्या में 19 से 23 प्रतिशत तक वृद्धि होने का अनुमान है।
वैसे तो पूरा प्रदेश जलवायु परिवर्तन व इससे जुड़ी आपदाओं से प्रभावित है परन्तु कुछ कृषि जलवायु क्षेत्र जैसे उत्तर-पूर्व गंगा मैदान, बुन्देलखण्ड व विन्ध्य क्षेत्र ज्यादा संवेदनशील है।
जलवायु के प्रति संवेदनशील ग्रामीण समुदाय की प्रासंगिकता
प्रदेश की जनता, विशेष रूप से ग्रामीण अंचल की, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को ले कर विशेष रूप से चिंताजनक भेद्यता है। ऐसे में ग्रामीण समुदायों का इसके लिए संवेदनशील होना अति आवश्यक है। जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील ग्रामीण समुदाय यानी ऐसा गाँव जो अपने लोगों के साथ गाँव के जोखिमों व कारणों को समझते हुए जलवायु-जनित आपदाओं से निपटने में सक्षम हो और उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करते हुए सुरक्षित ग्राम की योजना का संचालन करें। इस बात से ही आधार बनता है क्लाइमेट स्मार्ट पंचायत का।
क्लाइमेट स्मार्ट पंचायत
उत्तर प्रदेश सरकार की क्लाइमेट स्मार्ट पंचायत योजना एक अनुकरणीय पहल है जिसके आधार पर अन्य राज्यों में भी ऐसी कार्यवाई को बल दिया जा सकता है। क्लाइमेट स्मार्ट पंचायत की योजना दो मुख्य बिन्दुओं पर टिकी है। पहला बिन्दु है क्लाइमेट चेंज अडाप्शन या अनुकूलन और दूसरा है क्लाईमेट चेंज मिटिगेशन या जलवायु शमन। जलवायु अनुकूलन में पंचायतें खुद को बाढ़, सूखा, बढ़ते तापमान आदि प्राकृतिक आपदाओं, जलवायु संबंधी खतरों और दुर्घटनाओं ने निपटने के लिए तैयार करेंगी। इसके लिए जरूरी क्षमता का निर्माण किया जाएगा। वहीं जलवायु शमन के जरिए कार्बन न्यूटरेलिटी और नेट जीरो होने पर काम किया जाएगा। इसके अंतर्गत कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने की कोशिश की जाएगी।
इस प्रयास में पंचायतों को ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण, सरकारी अभियान के साथ ही निजी तौर पर लोगों को पेड़, बागवानी और कृषि वानिकी के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक खेती की जगह गाय और गोबर आधारित जैविक-प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जाएगा। किसानों को जलवायु अनूकुल बीज और तकनीकी दी जाएगी। ग्राम पंचायत में जल का संरक्षण, दो अमृत सरोवर और उसके आसपास 75 वृक्ष, जिन्हें सुरक्षित रखने की भी व्यवस्था करनी होगी। गांव में बिजली की जगह सोलर स्ट्रीट लाइट, किसान के लिए सोलर पंप, मौसम की निगरानी संबंधी सूचनाओं को बढ़ावा दिया जाएगा। मुख्य फोकस पेड़ लगाने और जल संरक्षित के साथ सॉलिड वेस्ट मैनेजमंट पर रहेगा।
प्रदेश के अधिकारियों की मानें को पता चलता है कि यूपी में 70 फीसदी ऐसे खेत हैं, जहां कोई पेड़ नहीं हैं। ऐसे में सरकार की कोशिश किसानों को पेड़ भी लगाने के लिए प्रेरित करना है। एग्रो फॉरस्ट्री बढ़ेगी तो किसान की आमदनी बढ़ेगी, आक्सीजन मिलेगी, कार्बन डाई आक्साइड कम होगी और क्लाइमेट चेंज की समस्या का हल भी निकाल सकेगा।