महात्मा अरुण महाजन  ने सार गर्भित प्रवचनों से साध संगत को भाव विभौर किया

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आदर्श हिमाचल ब्यूरो

चंबा।  निरंकारी सत्संग भवन मुगला में महात्मा अरुण महाजन जी की अध्यक्षता में साप्ताहिक सत्संग का आयोजन किया गया। इस मौके पर दूर दराज़ के गांवो कस्बों से आए सैंकड़ों श्रद्धालु भक्तों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। सत्संग का शुभारंभ आरती वंदना से किया गया। साहों,जडेरा, राख, ,जांगी, मैहला,सामरा, धरवाला आदि क्षेत्रों से आए संतों महात्माओं सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज की शिक्षाओं को अपने विचारों व भजनों द्वारा व्यक्त किया।

 

अंत में मंच पर विराजमान महात्मा अरुण महाजन  ने अपने सार गर्भित प्रवचनों से साध संगत को भाव विभौर करते हुए कहा कि भक्ति का जब ध्यान आता है तो हमें इस प्रभु-परमात्मा की याद आती है। भक्ति का संबंध भगवान से ही तो है। इस परमपिता के प्रति श्रद्धा प्रकट करने को ही भक्ति कहते हैं। भक्त भलीभांति जानता है कि मानव योनी सबसे उत्तम योनि है। इस योनि में आकर ही परमात्मा की प्राप्ति होती है। इसी कारण इस योनि का इतना महत्व है। वैसे तो सारा संसार ही अपने-अपने ढ़ंग से भक्ति कर रहा है। कोई पूजा कर रहा है, कोई पाठ कर रहा है, कथा भी हो रही है, सत्संग भी हो रहें है, लेकिन सत्य को जाने विना ही अनेको सत्संग हो रहे हैं।

देखा जाए तो आज भक्ति किसी ना किसी कामना के वश में होकर हो रही है। कोई धन मांग रहा है, कोई बंगला मांग रहा है, कोई यश मांग रहा है। इस तरह की भक्ति स्वार्थ पूर्ती के इर्द-गिर्द घूमती रहती है। सच्चा भक्त तो प्रभु से प्रभु को ही मांगता है। प्रभु से कुछ मांगना गलत नहीं, और जीवन यापन के लिए जो जरूरी है उसे अवश्य मांगना है, लेकिन जो भक्त भगवान से भगवान को ही मांगता है उसे सब कुछ स्वत: ही मिल जाता है। एक बार लक्ष्मण  ने भगवान श्रीराम जी से प्रेम पूर्वक पूछा कि हे प्रभु बताईए कि धर्म, कर्म, वैराग्य ज्ञान भक्ति आदि में कौन सा साधन सर्वश्रेष्ठ है, और आप शीघ्र प्रसन्न किससे होते है तब भगवान श्री राम जी कहते है कि धर्म के आचरण से वैराग्य, योग से ज्ञान तथा ज्ञान मोक्ष देने वाला होता है ऐसा शास्त्रों में वर्णन किया है और जिससे मैं जल्दी प्रसन्न होता हूं वह मेरी भक्ति ही है। भक्ति ही भक्तों को समस्त सुख देने वाली होती है
विनोद कुमार निरंकारी मिशन ब्रांच चम्बा