मायने : हिमाचल में मंत्रिमंडल विस्तार के बहाने अपनी सियासी जमीन मजबूत कर गए नड्‌डा, क्षेत्रीय संतुलन की कवायद में फिर पिछड़ा कांगडा-चंबा संसदीय क्षेत्र

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्‌डा
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्‌डा

देविंद्र सिंह

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शिमला। हिमाचल मंत्रिमंडल में बहु-प्रतीक्षित विस्तार के बहाने यहां जगत प्रकाश नड्‌डा अपनी सियासी जमीन मजबूत कर गए हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्‌डा ने ऐन वक्त पर अपने गृह जिला को मंत्रिमंडल में स्थान दिलवाकर अपनी राजनीतिक मजबूती का परिचय तो दिया ही, लेकिन साथ ही धूमल गुट को दरकिनार एक बार फिर हिमाचल भाजपा में अंतकर्लह को हवा दे दी है। नए उभरे इन राजनीतिक समीकरणों के हिसाब से नड्‌डा ने न केवल आगामी चुनावों के लिए अपनी सियासी जमीन को मजबूती प्रदान कर दी है बल्कि अभी तक दूर से हिमाचल की राजनीति पर नजर रख रहे नड्‌डा ने यहां से अपना राजनीतिक दखल और प्रभाव दोनों दिखा दिए हैं।

नूरपुर से विधायक राकेश पठानिया इन नए मंत्रियों में वे चेहरा हैं जिनका लोगों को भी लंबे समय से मंत्री पद पर ताजपोशी का इंतजार था। पठानिया अपने राजनीतिक दम-खम, प्रभावशाली व्यक्तित्व और सही-गलत पर अपनी ही पार्टी से सवाल-जवाब करने के कारण आम लोगों में भी खासे लोकप्रिय हैं। साथ ही पठानिया प्रदेश के सबसे बड़े जिला कांगडा जिला से हैं और प्रदेश के बड़े राजपूत समुदाय से संबंध रखते हैं। हिमाचल में राजपूत समुदाय 37.5 प्रतिशत है।

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बताया जा रहा कि लंबे समय से उनकी ताजपोशी रूकी होने के कारण उन्होंने भी नड्‌डा की शरण ली और सफलता प्राप्त की। सिरमौर के पांवटा साहिब विधानसभा क्षेत्र से सुखराम चौधरी इस बार तीसरी बार चुनकर विधानसभा पंहुचे हैं। उन्हें धूमल का खास सिपहसिलार माना जाता था। 2007 में धूमल की नजदीकी के कारण ही उन्हें मुख्य संसदीय सचिव पद से भी नवाजा गया था। लेकिन अब उन्होंने भी राजनीति का यू-टर्न लिया और नड्‌डा के पाले में जा पंहुचे।

लेकिन इन सब में ऐन वक्त पर जो सबसे चौंकाने वाला नाम सामने आया, वो है बिलासपुर जिला के घुमारवीं विधानसभा क्षेत्र से पहली बार विधायक बनकर विधानसभा पंहुचे राजिंद्र गर्ग। वे नड्‌डा के खासम-खास हैं और शुरू में कहा जा रहा था कि अगर नड्‌डा हिमाचल की राजनीति में प्रवेश करना चाहें तो राजिंद्र गर्ग उनके लिए अपनी सीट छोड़ देते। लेकिन उस वक्त ऐसे कोई राजनीतिक समीकरण नहीं बने। बहुत कम लोग जानते हैं कि राजनीतिक जीवन शुरू करने से पहेल छह साल तक गर्ग ने एक दैनिक अखबार में पत्रकारिता भी की है।

उनके मंत्री बनने के पीछे साफ तौर पर धूमल व उनके बेटे अनुराग के राजनीतिक प्रभाव को कम करने से जोड़ कर देखा जा रहा है।संसदीय क्षेत्र के हिसाब से बात करें तो एक बार फिर कांगड़ा-चंबा संसदीय क्षेत्र उपेक्षित रह गया है। शिमला संसदीय क्षेत्र में डा. बिदंल का राजनीतिक प्रभाव व कद कम करने के चक्कर में कांगड़ा-चबा संसदीय क्षेत्र से भेदभाव हो गया है। शिमला संसदीय क्षेत्र से पार्टी अध्यक्ष देने के बाद इसी जिले से मंत्री देना न्यायसंगत नहीं दिखता।

सुखराम चौधरी को ओबीसी कोटे से मंत्री बनाया गया है, लेकिन अगर इसी कोटे से रमेश ध्वाला को मंत्री बना दिया जाता तो कांगड़ा को प्राथिमकता मिल सकती थी। कांगड़ा में विपिन परमार के विधानसभा अध्यक्ष बनने के बाद और धर्मशाला से किशन कपूर के सासद बनने के बाद यहां दो पद खाली तल रहे थे लेकिन ताजपोशी यहां सिर्फ एक की हो पाई।  मंत्रिमंडल में अनुसूचित वर्ग से भी केवल एक ही मंत्री डा. राजीव सहजल हैं। जबरकि प्रदेश में 26.5 प्रतिशत की आबादी के साथ इस वर्ग से दो मंत्री अपेक्षित रहते हैं।

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साफ है कि नड्‌डा ने अपनी राजनीतिक गोटियां फिट करने के लिए जहां पूर्व मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल के गुट को पूरी तरह साइट लाइन कर दिया है तो वहीं नए मंत्रियों के लिए उन्होंने अपनी पंसद के साथ-साथ मुख्यंमत्री जयराम ठाकुर की इच्छाशक्ति को भी मान दिया है।

ये अलग बात है कि अब जयराम व नड्‌डा की जुगलबंदी किस तरह से भाजपा के असंतोष को किस तरह नियंत्रित कर पाती है, ये तो आने वाला वक्त ही बता पाएगा। फिलहाल भाजपा सरकार का काउंट डाउन शुरू हो चुका है और ऐसे में उम्मीद है कि अब भाजपा की अंदरूनी कलह खुलकर सामने आएगी।

साफ है कि भाजपा में उपेक्षित महसूस करने वाले और साइड किए गए लोग एक साथ आकर खुला विद्रोह कर पार्टी के सामने मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। अब धूमल गुट के अलावा, असंतुष्ट विधायक रमेश ध्वाला, नरेंद्र बरागटा, कर्नल इंद्र सिंह, विक्रम सिंह जरियाल के साथ-साथ बिंदल सहित कई असंतुष्ट भाजपा कती राह में अड़चनें पैदा कर सकते हैं और 2022 के लिए मिशन रिपिट भी प्रभावित हो सकता है।