राष्ट्र-निर्माण, एकता एवं अखंडता के संकल्प के साथ मनाया एपीजी शिमला विश्वविद्यालय में आज़ादी का पर्व
कुलपति प्रो. डॉ. रमेश चौहान ने तिरंगा झंडा फहरा कर युवाओं को राष्ट्र निर्माण में योगदान के लिए किया प्रेरित
आदर्श हिमाचल ब्यूरो
शिमला। स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर आज समस्त भारतवंशी स्वतंत्रता का पर्व मना रहे हैं। एक लंबे संघर्ष और सैकड़ों देशभक्तों और बलिदानों के बाद 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेजी साम्राज्य से भारत को आज़ादी प्राप्त हुई थी। आज़ादी के इस संघर्ष पर एपीजी शिमला विश्वविद्यालय में बड़े हर्षोल्लास के साथ आज़ादी का पर्व मनाया गया जिसकी अगुवाई विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. रमेश चौहान के नेतृत्व में कई गई। पहले विश्वविद्यालय परिसर में स्वतंत्रता दिवस समारोह की शुरुआत विश्वविद्यालय के सुरक्षा द्वारा कुलपति प्रो. रमेश चौहान को दिए गए गॉर्ड ऑफ ऑनर के साथ हुई इसके बाद कुलपति चौहान ने राष्ट्रीय तिरंगा झंडा फहराया। इस अवसर पर एपीजी शिमला विश्वविद्यालय के छात्र, शिक्षक, अधिकारी व कर्मचारियों ने भी स्वतंत्रता दिवस समारोह में कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए अपनी उपस्थिति दर्ज की।
कुलपति प्रो. रमेश चौहान ने अपने संबोधन में कहा कि भारत को आज़ादी एक दिन में नहीं मिली है बल्कि यह हमारे पूर्वजों, वीरयोद्धाओं, क्रांतिकारियों के बलिदान, त्याग और निरंतर संघर्ष से मिली है जिसके लिए एक लंबा इंतजार करना पड़ा। कुलपति चौहान ने कहा कि हमें अपने महान सपूतों, क्रांतिकारियों के योगदान व बलिदान को नहीं भूलना जिनकी बदौलत आज भारत एक राष्ट्र के रूप में उभरा है और हम सभी भारतवासी आज आज़ाद भारत में आज़ादी के साथ सांस ले रहे हैं। कुलपति चौहान ने कहा कि आज़ादी जिम्मेदारियां भी लाती हैं जिन्हें हर भारतीय नागरिक को अपने राष्ट्र-निर्माण, एकता एवं अखंडता में अपना विशिष्ट योगदान देते रहना चाहिए ताकि भारत एक मजबूत और विकसित देश बनें।
कुलपति रमेश चौहान ने युवाओं व छात्रों को प्रेरित किया कि भारत को एक महान राष्ट्र के रूप में आकार देने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देने का संकल्प लें। कुलपति प्रो. चौहान ने भारत की आज़ादी की गाथा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि किस तरह हमारे देश के देशभक्तों ने संघर्ष और आज़ादी का अलख जगाकर ब्रिटिश साम्राज्य का अंत किया। कुलपति ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सरदार भगतसिंह, सुखदेव, सावरकर, पटेल, महात्मा गांधी, नेहरू अनेकों ज्ञात व अज्ञात देशभक्तों व क्रांतिकारियों के बलिदानों से छात्रों को अवगत करवाया कि राष्ट्र प्रेम क्या है, देशभक्ति क्या है और आज़ादी का क्या महत्त्व है। प्रो. चौहान ने शिमला का जिक्र करते हुए कहा कि शिमला कभी ब्रिटिश राज की ग्रीष्म कालीन राजधानी हुआ करती थी जहां कभी किसी भी भारतीय को जाने की अनुमति नहीं हुआ करती थी, उन्होंने कहा कि ब्रिटिश राज ने कभी भारत को और भारत के लोगों सम्मान नहीं दिया बल्कि भारत के संसाधनों और लोगों का शोषण कर भारत में निरकुंश साम्राज्य स्थापित किया हुआ था जिसका सबसे बड़ा कारण रहा आपसी मनमुटाव जिसका अंग्रेजों ने फायदा उठाकर भारत को गुलाम बना दिया था।
इस प्रसंग को लेकर कुलपति प्रो. डॉ. रमेशचौहान ने युवाओं व छात्रों को प्रेरित करते हुए कहा कि हम चाहे किसी भी धर्म व संस्कृति को मानने वाले हों, हम सभी के लिए अपना राष्ट्र पहले है और यह राष्ट्र का विकास के साथ एकता एवं अखंडता से ही संभव है। चौहान ने कहा कि हम सभी एक जिम्मेदार नागरिक और इंसान के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें तभी भारत माता के लिए यह सबसे बड़ी भेंट भी है, सम्मान भी है और आज़ादी की प्रासंगिकता भी है। उन्होंने कहा कि राष्ट्र सेवा के लिए दिल से काम करना चाहिए और इसके लिए संकल्प और त्याग की भावना होना जरूरी है तभी राष्ट्र निर्माण में बख़ूबी योगदान दे सकते हैं। कुलपति चौहान ने अपने संबोधन के अंत में छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि हमें अपनी भारतीय संस्कृति और मातृ-भाषा को जीवित रखना है तभी भारतीय समाज की पहचान है।
चौहान ने कहा कि अपनी मातृ भाषा के बल पर आज़ादी के लिए जनता को तैयार किया गया था क्योंकि मातृभाषा एकता के सूत्र में बांधती है और लोगों को जोड़ती है। मातृभाषा से ही हमारी संस्कृति की पहचान भी है और अगर मातृभाषा ही नहीं रहेगी तो हमारी संस्कृति मर जाएगी। कुलपति रमेश चौहान ने मातृभाषा के संरक्षण के लिए सभी से आग्रह किया। स्वतंत्रता समारोह के दौरान एपीजी शिमला विश्वविद्यालय के डीन, विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष और कार्यकारी अधिकारी उपस्थित रहे।
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