2032 के बाद नए थर्मल पावर प्रोजेक्ट घाटे का सौदा, रिन्यूएबल भरोसेमंद विकल्प

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आदर्श हिमाचल ब्यूरों

नई दिल्ली। भारत के बिजली क्षेत्र में बड़ा बदलाव आने वाला है। ऊर्जा थिंक-टैंक Ember की नई रिपोर्ट “Coal’s Diminishing Role in India’s Electricity Transition” के अनुसार, वर्ष 2032 के बाद नई कोयला आधारित बिजली परियोजनाएँ घाटे का सौदा साबित होंगी, क्योंकि तब तक देश की बिजली ज़रूरतें सौर, पवन और बैटरी स्टोरेज से पूरी की जा सकेंगी। इस रिपोर्ट के मुताबिक, यदि भारत अपने नेशनल इलेक्ट्रिसिटी प्लान (NEP) 2032 के लक्ष्यों को हासिल कर लेता है, तो नई कोयला क्षमता जोड़ने की आवश्यकता नहीं रहेगी, न भरोसेमंद आपूर्ति के लिए, न पीक डिमांड के लिए। इसी तरह Ember के वरिष्ठ ऊर्जा विश्लेषक नेशविन रोड्रिग्स ने कहा कि भारत का पावर सेक्टर अब परिवर्तन के निर्णायक दौर में है। “जैसे-जैसे सौर और स्टोरेज तकनीक सस्ती हो रही है, कोयले की भूमिका घट रही है उसी तरह अब नई कोयला परियोजनाएँ न आवश्यक हैं, न आर्थिक दृष्टि से व्यावहारिक है।

2032 तक कई कोयला यूनिटें हो जाएंगी निष्क्रिय

रिपोर्ट में 2031-32 के लिए किए गए आकलन के अनुसार : 2024-25 में बनने वाली 10% नई कोयला यूनिटें 2032 तक पूरी तरह निष्क्रिय हो जाएँगी और लगभग 25% यूनिटें आधी क्षमता पर चलेंगी। कोयला संयंत्रों का प्लांट लोड फैक्टर (PLF) घटकर 69% से 55% रह जाएगा। इससे बिजली महँगी होगी 2032 तक कोयला बिजली की लागत 25% बढ़कर ₹7.25 प्रति यूनिट तक पहुँच सकती है।

“क्लीन” बिजली बनी भरोसेमंद विकल्प

Ember की रिपोर्ट के अनुसार, अब सौर और पवन ऊर्जा के साथ बैटरी स्टोरेज से मिलने वाली Firm and Dispatchable Renewable Energy (FDRE) बिजली का सबसे विश्वसनीय और लचीला स्रोत बन चुकी है। इन परियोजनाओं का टैरिफ ₹4.3 से ₹5.8 प्रति यूनिट के बीच है, और ये 24×7 आपूर्ति सुनिश्चित कर रही हैं। Ember के चीफ एनालिस्ट डेव जोन्स ने कहा कि भारत में बैटरी तकनीक तेजी से विकसित हो रही है। नई सोडियम-आयन बैटरियाँ बिना क्रिटिकल मिनरल के बन रही हैं और कई दशकों तक चल सकती हैं।

कोयला बिजली अब महँगा सौदा

रिपोर्ट बताती है कि फिलहाल भी कोयले से बनी बिजली सस्ती नहीं है : बिहार में टैरिफ ₹6 प्रति यूनिट, और मध्य प्रदेश में ₹5.85 प्रति यूनिट तक पहुँच गया है। इनमें से ₹4 प्रति यूनिट से अधिक हिस्सा सिर्फ फिक्स्ड कॉस्ट का है, जैसे-जैसे PLF घटेगा, बिजली वितरण कंपनियों (DISCOMs) का वित्तीय बोझ बढ़ेगा और कई संयंत्र ‘stranded assets’ बन सकते हैं।

Ember के सुझाव

रिपोर्ट में भारत को तीन प्रमुख कदम उठाने की सिफारिश की गई है : बैटरी स्टोरेज परियोजनाओं को तेजी से लागू किया जाए। पुराने थर्मल संयंत्रों को लचीला (flexible) बनाया जाए। ग्रिड और रिजर्व सिस्टम को मज़बूत किया जाए, ताकि सौर-पवन ऊर्जा का बेहतर समावेश हो सके।

कोयला नहीं, समझदारी चाहिए

Ember के विश्लेषक दत्तात्रेय दास के अनुसार, “भारत पहले भी जरूरत से ज़्यादा कोयला क्षमता बनाकर नुकसान झेल चुका है। अब वही गलती दोहराना आर्थिक रूप से भारी पड़ेगा। रिपोर्ट का निष्कर्ष साफ है : भारत की ऊर्जा ज़रूरतें अब स्वच्छ, भरोसेमंद और सस्ती नवीकरणीय ऊर्जा से पूरी हो सकती हैं। 2032 तक कोयला सिर्फ बैकअप ईंधन बनकर रह जाएगा, और नई कोयला परियोजनाएँ देश के लिए नुकसान और प्रदूषण दोनों का कारण बनेंगी।