अंतराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर एपीजी शिमला विश्वविद्यलय में देश-विदेश के योग गुरुओं ने लगाई योग-मुद्रा की पाठशाला

अंतराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर एपीजी शिमला विश्वविद्यलय में देश-विदेश के योग गुरुओं ने लगाई योग-मुद्रा की पाठशाला

आदर्श हिमाचल ब्यूरो 

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शिमला । देह को सुगठित, इन्द्रियों को सुव्यवस्थित और मन को सुसंस्कारित करना योग का उद्देश्य है। जब बात शरीर और मन को सुव्यवस्थित और संस्कारित करने की आती है तो योग की आवश्यकता होती है, ध्यान की आवश्यकता होती है ताकि नकारात्मक प्रभाव को खत्म कर सकारात्मक जीवन जिया जाए और दुःखों का निवारण कर सही मनुष्य का जीवन जिया जाए। यह बात राजधानी शिमला में स्थित स्थानीय एपीजी शिमला विश्वविद्यालय की ओर से चांसलर इंजीनियर सुमन विक्रांत, प्रो-चांसलर प्रो. डॉ. रमेश चौहान, वाईस-चांसलर आर.एस. चौहान के तत्वावधान में अंतराष्ट्रीय योग दिवस के पावन अवसर पर योग मुद्रा पर एक दिवसीय अंतरास्ट्रीय वेबिनार आयोजित किया गया जिसमें एपीजी शिमला विश्वविद्यालय के छात्रों, शिक्षकों और बड़ी संख्या में देश-विदेश से लोगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज़ कर योग गुरुओं के विचार सुने कि योग साधना से ही ईश्वर प्राप्ति, सकारात्मक प्रभाव से सफल मनुष्य जीवन और योग धर्म से सभी दुःखों का निवारण है।

 

 

इस कार्यक्रम में थाईलैंड से योग गुरु व सन्यासी स्वामी डॉ. माइंड, भारत से अनंतबोध योग लिथुआनिया के निदेशक स्वामी अनंतबोध चैतन्य, स्वामी परमानंद सरस्वती, प्रो. आर. के. चौधरी ने बतौर मुख्यातिथि व योग शिक्षक शिरकत कर छात्रों, शिक्षकों और कार्यक्रम में शामिल लोगों को सफल मनुष्य का जीवन जीने की राह दिखाई। कार्यक्रम का सुभारम्भ करते हुए चांसलर इंजीनियर सुमन विक्रांत, प्रो- चांसलर प्रो. डॉ. रमेश चौहान ने अंतरास्ट्रीय योग दिवस के महत्व और संसार के सभी लोगों के जीवन में योग की महत्वपूर्ण भूमिका पर बधाई व सुभकामना देते हुए कहा कि योग जीवन का मुख्य हिस्सा है जिसके बिना जीवन न खुशहाल है न ईश्वर का सानिध्य है न जीवन में सकारात्मक उन्नति है न दुःखों का निवारण है। स्वामी आनंदबोध चैतन्य ने अपने व्याख्यान में छात्रों व शिक्षकों के साथ योग मुद्रा पर अपने विचार साझा किए और कहा कि कोई भी काम करें उसे पूरे प्रोफेशनल तरीके से करें जिससे से ऐसा योग हो जाए जो मनुष्य जीवन को ईश्वरीय ज्ञान, शांति, प्रेम और मानव विकास में सहायक हो। स्वामी आनंदबोध चैतन्य ने बताया कि सही मनुष्य का जीवन जीने के लिए जीवन में संतुलन होना जरूरी है तभी योग है। उन्होंने कहा कि योग मुद्रा केवल शरीर से जुड़ी संजीवनी नहीं है बल्कि यह मन, बुद्धि, ज्ञान-विज्ञान, कुशलता, आध्यात्मिक ज्ञान और ईश्वर का साथ पाने, शांति और प्रेम का वाहक भी है ताकि मनुष्य ईश्वर द्वारा प्रदत्त भोगों का सही इस्तेमाल कर जीवन में तरक़्क़ी और खुशहाली के फूल खिले रहें।

 

 

उन्होंने कहा कि योग मुद्रा एक सांकेतिक संवाद है, योग मुद्रा के हज़ारों प्रकार हैं, यह शारिरिक स्वास्थ्य सेहतमंद बनाए रखने, तनाव को दूर करने में मदद करता है बल्कि योग मुद्राओं का मनुष्य के जीवन में प्राचीन काल से महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। उन्होंने कहा कि बिना ईश्वर के जीवन में कुछ नहीं होता। उन्होंने कहा कि ईश्वर का साथ तभी मिलता है जब मनुष्य पूरी तरह अपने कर्म-धर्म की सकारात्मक साधना के साथ उसके आगे नतमस्तक होकर उसकी शरण में रहता है तभी मनुष्य को किसी भी प्रकार का भय नहीं होना चाहिए क्योंकि ईश्वर ही बचाता है, ईश्वर ही रक्षा भी करता है, ईश्वर ही सफलता की ओर ले जाता है परंतु मनुष्य कर्म महान होना चाहिए स्वामी परमानंद सरस्वती कहा कि आज के दौर में विश्व मानव समुदाय विश्वगुरुओं, धर्मगुरुओं व योगगुरुओं की ओर देख रहा है ताकि विश्व मानव समुदाय को शांतिपूर्ण जीवन, सफल मानव जीवन और उनके सुझाए गए आध्यात्मिक ज्ञान से मानवरूपी कमल हमेशा खिलता रहे और विश्व को मानव विकास के लिए हमेशा प्रेरित करते रहें। उन्होंने कहा कि योग भारतीय संस्कृति व सनातन धर्म की देन है जिसका उद्देश्य विश्व मानव कल्याण है।

 

 

उन्होंने कहा कि योग मुद्रा से सुखमय व सफल जीवन की रहा खुलती है। कार्यक्रम के अंत में प्रो. डॉ. आर.के.चौधरी ने भारतीय वैदिक व सनातन संस्कृति से अवगत कराया कि योग सतचित, शांतिपूर्ण और सकारात्मक जीवन जीने का मूलमंत्र है और यह भारत की संस्कृति, ज्ञान, वेदों से नई सीख और आध्यात्मिक जीवन से सभी दुःखों का निवारण का सूत्र हमारे युग गुरुओं व ऋषियों से मिला था और फिर से भारत की पहचान विश्वगुरु के तौर पर बरकरार हुई है और आज योग के माध्यम से विश्व समुदाय को निर्मल ही रहा है। वहीं थाईलैंड में सनातन धर्म और योग की शिक्षा दे रहे डॉ. माइंड ने अपने व्यख्यान के माध्यम से छात्रों, शिक्षकों और वेबिनार में शामिल लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि योग हमारे जीवन से जुड़ा अभिन्न अंग है जिससे सतचित आता है उससे ही वैचारिक शक्ति में सकारात्मक सोच उपजती है, योग से ही सभी प्रकार की विद्याओं का ज्ञान मिलता है और उससे आध्यात्मिक ज्ञान और उससे ईश्वर और धर्म-कर्म से सभी प्रकार के दुःखों से मुक्ति और स्नेहपूर्ण जीवन और सम्पूर्ण उन्नत मनुष्य का जीवन फलता-फूलता है।

 

चांसलर इंजीनियर सुमन विक्रांत, प्रो-चांसलर प्रो. डॉ. रमेश चौहान ने कार्यक्रम को संपन्न करते हुए कहा कि योग के साथ कर्म भी महान होना चाहिए ताकि सही दिशा में किया गया साकारात्मक प्रयास सार्थक हो और कहा कि कर्म के साथ ईश्वर की कृपा भी हो जो कर्म योग, धर्म-योग और आध्यात्मिक ज्ञान और कर्मशील होने से होती है तभी मनुष्य अपने लक्ष्यों को हासिल कर सकता है। उन्होंने कहा कि मनुष्य शरीर शरीर नहीं बल्कि यह ईश्वर-शरीर ही है जिसे मनुष्य कर्म-साधना, योग मुद्रा और आध्यात्मिक ज्ञान से ईश्वरीय-शरीर से सिंचित कर सकता है।