आदर्श हिमाचल ब्यूरों
नई दिल्ली। देश की सबसे बड़ी थोक सब्ज़ी मंडी आज़ादपुर मंडी की गलियों में सब्ज़ियों की महक के साथ इन दिनों दामों की तेज़ी भी साफ महसूस की जा सकती है। खरीदारों की नाराज़गी और विक्रेताओं की लाचारी के बीच एक बात स्पष्ट है की महंगाई की जड़ खेतों में है, जहां जलवायु परिवर्तन अब सबसे बड़ा जोखिम बन गया है।
2023 का टमाटर संकट
इन गर्मियों और बरसात में हिमाचल और कर्नाटक जैसे राज्य दिल्ली की टमाटर ज़रूरतें पूरी करते हैं। लेकिन 2023 में बेमौसम बारिश, तेज़ धूप और अचानक आई बाढ़ों ने इन राज्यों में टमाटर उत्पादन को गंभीर रूप से प्रभावित किया। हिमाचल में टमाटर उत्पादन में 10.9% गिरावट आई, कर्नाटक में यह गिरावट 12.9% तक पहुंची, टमाटर के दाम जून 2023 में ₹18 प्रति किलो से बढ़कर जुलाई में ₹67 प्रति किलो तक पहुंच गए। मंडी में सप्लाई भी 500 टन से घटकर 318 टन रह गई। इस दौरान एक आढ़ती ने बताया कि बारिश में फसल सड़ गई। जो माल आया भी, वो खराब क्वालिटी का था, इसके बावजूद कम आपूर्ति के चलते दाम आसमान छूते रहे।
प्याज़ की कड़वाहट
नवंबर 2023 में महाराष्ट्र में ओलावृष्टि और अत्यधिक बारिश ने प्याज़ की फसल पर करारा प्रहार किया, उत्पादन में 28.5% की गिरावट, दाम ₹30 से बढ़कर ₹39 प्रति किलो तक पहुंचे। इसका असर गरीबों की थाली पर साफ देखा गया, जहाँ कई घरों में प्याज़ का इस्तेमाल घटा दिया गया।
आलू पर भी मौसम की मार
“गरीब की थाली का सहारा” माने जाने वाले आलू की कीमतें भी मौसम के कारण चढ़ गईं। पश्चिम बंगाल में बेमौसम बारिश और उत्तर प्रदेश में पाला व ठंड ने आलू उत्पादन को 7% तक घटा दिया। आज़ादपुर मंडी में अगस्त 2024 में आलू का औसत दाम ₹21 प्रति किलो रहा, जबकि पिछले वर्षों में यह ₹10–14 प्रति किलो रहता था।
2024: रिकॉर्ड गर्मी और महंगाई का साल
वर्ष 2024 अब तक सबसे गर्म वर्षों में शामिल रहा है। बेमौसम बारिश, बाढ़ और ओलावृष्टि ने सब्ज़ी उत्पादन को बाधित किया, जुलाई 2023 में सब्ज़ी महंगाई 37%, तो अक्टूबर 2024 में यह बढ़कर 42% हो गई। उपभोक्ता खाद्य महंगाई 11% तक पहुंच गई, यह साफ संकेत है कि जलवायु संकट अब सीधे-सीधे आम आदमी की रसोई तक पहुंच चुका है। भारत में अधिकांश टमाटर, प्याज़ और आलू छोटे और सीमांत किसान ही उगाते हैं, जिनके पास न कोल्ड स्टोरेज है, न ट्रांसपोर्ट, न बीमा। एक किसान बताते हैं, “बारिश ज़्यादा हुई तो फसल सड़ जाती है, गर्मी पड़ी तो फूल झड़ जाते हैं। हम कर्ज़ में बीज बोते हैं और कर्ज़ में ही डूब जाते हैं।”
नीति की ज़रूरत: रसोई से संसद तक
इस स्थिति को लेकर विशेषज्ञों का मानना है कि अब जलवायु संकट को कृषि नीति का केंद्रीय विषय बनाना होगा। टमाटर जैसी संवेदनशील फसलों के लिए ग्रीनहाउस खेती को बढ़ावा दिया जाए, किसानों को कोल्ड स्टोरेज, रेफ्रिजरेटेड ट्रांसपोर्ट और तेज़ सप्लाई चेन की सुविधा मिले और मौसम पूर्वानुमान और बाज़ार मूल्यों की जानकारी समय पर पहुंचे। फसल बीमा और पोषण सुरक्षा को छोटे किसानों तक पहुँचाया जाए। इस दौरान यह भी कहा है की टमाटर, प्याज़ और आलू अब सिर्फ़ सब्ज़ियाँ नहीं, बल्कि जलवायु संकट की कहानी बन चुके हैं। मौसम के बदलते मिज़ाज के बीच आने वाले वर्षों में थाली पर महंगाई का बोझ और बढ़ने की आशंका है, ऐसे में ज़रूरत है समय रहते ठोस कदम उठाने की, ताकि रसोई और किसान दोनों सुरक्षित रह सकें।