“तीन चुनावी कुण्डलियां” पढ़िए ये कविता

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आदर्श हिमाचल ब्यूरो 
शिमला ।
1-
अपनी बारी आप भी, रखिए सोच विचार।
आने को है सामने, बचे दिवस दो चार।।
बचे दिवस दो-चार, फिर लौट चुनाव आया।
जोड़ घटा कर रखें, कौन कितना भरमाया।।
रखिए मुनि कविराय, पास तो खुन्नस इतनी।
आगे न दिखा सके, कोई ढिंठाई अपनी।।
2-
लेकर निकल पड़े चतुर,राजनीति का फांस।
आपको राजा खुद को, बता रहे सब दास।।
बता रहे सब दास, ना इच्छा उनकी ज्यादा।
कुर्सी एक देकर , जो भी करा लें वादा।।
कवि संभल जाइए, अब सुनिए कान देकर।
चल पड़े बहेलिए, साथ फंदा जाल लेकर।।
3-
बिछ गई है चौपड़ फिर, लेकर पासे साथ।
सधे खिलाड़ी जुट रहे, करने दो-दो हाथ।।
करने दो-दो हाथ, उछाल रहे सब पासा।
है सबकी जेब में , भरा जीत का बतासा।।
कहते मुनि कविराय, सपने उनके अंतरिक्ष।
खातिर जिसके सभी,जारहे कदमों में बिछ।।
लेखक
डाॅ एम डी सिंह