आदर्श हिमाचल ब्यूरो
शिमला। एसएफआई राज्य कमेटी हिमाचल प्रदेश द्वारा प्रैस वार्ता का अयोजन किया गया । प्रैस वार्ता को संबोधित करते हुए राज्य सचिव दिनीत देंटा व राज्य अध्यक्ष अनिल ठाकुर ने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से शिक्षा का व्यापारीकरण, भगवाकरण व केंद्रीयकरण के विरोध में एस. एफ. आई का 3 दिवसीय 22वां राज्य सम्मेलन5,6,7 मार्च 2024 को स्वाधीनता, जनवाद , समाजवाद के नारे के साथ नाहन में सम्पन्न हुआ।
3 दिवसीय सम्मेलन 5 मार्च को नाहन बाजार में रोड़ शो के साथ शुरु हुआ। सम्मेलन का उद्घाटन केरल सरकार के भूतपुर्व वित्तीय सलाहकार डॉ अरुण सिंह व एस एफ आई के भूतपूर्व महासचिव डा. विक्रम सिंह ने किया।
सम्मेलन के अंतिम दिन 7 मार्च 2024 को सम्मेलन द्वारा 33 सदस्य नई कमेटी का गठन किया गया जिसमें अध्यक्ष अनिल ठाकुर और और सचिव दिनित देंटा को चुना गया व 12 सदस्यीय सचिवालय का चुनाव किया गया ।
जिसमें पूरे प्रदेश भर से लगभग 173 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।इस तीन दिवसीय राज्य सम्मेलन में प्रदेश के 12 जिलों में शिक्षा व्यवस्था की स्थिति पर चर्चा की गई और छात्र मांगो को लेकर 11 प्रस्तावों को पारित किया गया।
एस एफ आई राज्य कमेटी ने आने वाले दिनों में निम्मलिखित मांगो पर रणनीति बनाते हुए आंदोलन को तेज करने का आहवान किया है :–
1) छात्र संघ चुनाव की बहाली को लेकर प्रदेश सरकार से आर पार की लड़ाई :–
शिक्षा व्यवस्था के सुधार में छात्र संघ चुनाव की बहुत अहम भूमिका रहती है। क्योंकि प्रत्यक्ष छात्र संघ चुनाव से चुने हुए प्रतिनिधि एक्जीक्यूटिव काउंसिल का हिस्सा होते है ।
छात्रों व प्रशासन के बीच पुल का काम करते हैं और छात्रों की समस्याओं को प्रशासन के समक्ष रखते हैं और समस्याओं के हल के विकल्प देते हैं। परंतु छात्र विरोधी RUSA अभियान व 2500% फीस वृद्धि करने के लिए 2013 में उस समय की सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार ने प्रत्यक्ष छात्र संघ चुनाव पर प्रतिबंध लगा दिया।
तब से लेकर लगातार एस. एफ. आई छात्र संघ चुनाव की बहाली को लेकर आंदोलनरत है।
पूरी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में सांसद से लेकर पंचायत तक बल्कि कर्मचारियों तक सबको अपने प्रतिनिधि चुनने व प्रतिनिधि चुने जाने का अधिकार है। परंतु पढ़े लिखे छात्रों से उनका प्रतिनिधि चुनने का जनवादी अधिकार छीन लिया गया है। माननीय मुख्यमंत्री स्वयं भी छात्र राजनीति का हिस्सा रहे परन्तु अब जब प्रदेश के मुखिया है तब उन्हे छात्र संघ चुनाव से डर लग रहा है । अगर प्रदेश की सरकार जल्द छात्र संघ चुनाव बहाल नहीं करती है तो एस. एफ. आई प्रदेश सरकार के साथ छात्र संघ चुनाव की बहाली को लेकर आर पार की लडाई लड़ेगी।
2) छात्र विरोधी राष्ट्रीय शिक्षा नीति को वापिस करने के लिए आंदोलन :–
राष्ट्रीय शिक्षा नीती जिसे केंद्र की सरकार ने कॉविड की आपातकाल की स्तिथि में संसद में बिना चर्चा किए पारित कर के लोकतंत्र का तो गला घोटा ही साथ में पूरे देश में पढ़ने वाले छात्रों व उनके अभिभावकों का भी गला घोटने का काम किया । इस शिक्षा नीति में न तो छात्रों के कहीं छात्रवृत्ति का जिक्र है और न ही UGC के द्वारा फंडिंग का प्रावधान ।
फंडिग के लिए HEFA जो की शिक्षण संस्थान को लोन देगी और उसे शिक्षण संस्थान को 10 वर्ष में चुकाना होगा ।
प्रदेश की 2017 से 2022 तक सत्तारूढ़ रही भाजपा सरकार छात्रों को छात्र संघ चुनाव बहाल करने व राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (RUSA) को वापिस करने के वादों के साथ थी लेकिन इन वादों पूरा न करते हुए सिर्फ छात्रों को हताश करने का काम उस सरकार ने किया और विपक्ष की पार्टी ने गुमराह करके मत हासिल करने का काम किया और 2022 के चुनावों में सत्ता हासिल की। लेकिन सत्ता हासिल करने के बाद छात्रों को नकारते हुए भाजपा की शिक्षा विरोधी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 जिसका अखिल भारतीय कांग्रेस भी विरोध कर रही है उसे प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने हिमाचल प्रदेश में लागू किया। जहां प्रदेश की सरकार विद्यालयों और महाविद्यालयों में में अध्यापकों व प्रोफेसरों के रिक्त पड़े पद भरने चाहिए थे तो वही सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में विकास करने के बजाय प्राथमिक विद्यालयों को बंद करने का काम किया व महाविद्यालयों डिनोटिफाइ करने का काम किया। कांग्रेस की सरकार शिक्षा के क्षेत्र में बड़े परिवर्तन की बात करके सत्ता में आई थी लेकिन यदि इनकी नीतियों को देखें तो यह सरकार भी पुरानी भाजपा की सरकार की तरह ही काम कर रही है और आनन फानन में बिना किसी तैयारियों के नई शिक्षा नीति को लागु करने की कोशिश में है, नई शिक्षा नीति का विरोध आने वाले समय में पुरजोर तरीके से प्रदेश भर में किया जाएगा।
3). बढ़ती बेरोजगारी और शैक्षणिक भ्रष्टचार:–
कांग्रेस की सरकार यह वादा करके सत्ता में आई थी की प्रदेश में हर साल लाखों रोजगार युवाओं को देंगे परंतु कहीं भी यह सरकार उन वादों को पूरा करने में सफल नहीं हुई है।
बल्कि इसके विपरीत पूरे प्रदेश में इस सरकार के खिलाफ एक रोष की भावना पैदा हो गई है। जो हाल ही में JOA it का आंदोलन हो या फिर एसएमसी अध्यापकों का आंदोलन हो जो पिछले काफी लंबे समय से आंदोलन में जुटे हुए हैं।
एस एफ आई का मानना है की प्रदेश में आज के राजनीतिक हालात के दौरान कांग्रेस पार्टी के आपसी मतभेद के रूप में देखा जा सकता है जिसके चलते कांग्रेस के विधायकों का हाल ही में हुए राज्यसभा के चुनावों में भाजपा की ओर जाना इसका एक उदाहरण है। इन राजनीतिक घटनाओं ने प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता को जन्म दिया है। जिसका साफ तौर पर खामियाजा प्रदेश की जनता को भुगतना पड़ रहा है। प्रदेश की सरकार युवाओं को रोजगार देने में तो असमर्थ है ही साथ पिछले लगभग 2 सालों से यह सरकार हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में स्थाई vc नियुक्त करवा पाने व हिमाचल प्रदेश विश्विद्यालय में हुई फर्जी प्रोफेसर भर्तियों की जांच करवा पाने में भी असमर्थ रही है।
पूरे प्रदेश का छात्र घटिया ईआरपी सिस्टम होने के कारण छात्रों का रिजल्ट आधा अधूरा होने के कारण आम छात्रों को अपनी पढ़ाई से दूर होना पड़ रहा है।
इन सभी मुद्दों के अलावा एसएफआई के 22वें राज्य सम्मेलन में गठित हुई नई राज्य कमेटी ने आने वाले दो वर्षों के लिए प्रदेश में लगातार लागू हो रही इन छात्र विरोधी नीतियों के खिलाफ आंदोलन को मजबूत करने का प्रण लिया है।
एसएफआई के राज्य सचिव दीनित देंटा व राज्य अध्यक्ष अनिल ने कहा कि यदि सरकार इस तरह के छात्र विरोधी फरमान जारी करेगी तो एसएफआई छात्रों को लामबंद करते हुए इस आंदोलन को पूरे प्रदेश भर में मजबूत करेगी जिसकी जिम्मेवार यह छात्र विरोधी कांग्रेस की सरकार होगी।