खुद को ठगा महसूस कर रहे एसएमसी अध्यापकों ने सरकार से मांगा तीन दिनों में स्पष्टीकरण

आदर्श हिमाचल ब्यूरो 

शिमला। प्रदेश में विभिन्न् स्थानों पर कार्यरत 2613 एसएमसी अध्यापकों को 14 अगस्त को बाहर करने के आए प्रदेश हाई कोर्ट के निणर्य से एसएमसी अध्यापक खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि सरकार की कोर्ट में उनका पक्ष मजबूती से नहीं रखा गया।
अब इन एसएमसी अध्यापकों ने प्रदेश सरकार से तीन दिन में  अपना रूख साफ करने का आ्ह्नावन किया है। शिमला में बुधवार को आयोजित एक पत्रकार वार्ता को संबोधति करते हुए एसएमसी टीचर्स एसोसिएशन के प्रधान मनोज रोंगटा और प्रवक्ता राजेश भरत ने कहा कि कहीं न कहीं प्रदेश सरकार की तरफ से दिए गे वकीलों ने कोर्ट में उनका पक्ष मजबूती से नही रखा और कोर्ट से बाहर आने के बाद भी एसएमसी टीचर्स को लेकर उनकी टिप्पणी वाजिब नहीं थी। उन्होंने कहा कि अगर सरकार उनके साथ है तो वे आगे उच्चतम न्यायालय में उनका पक्ष मजबूती से रखें।
      कोरोना काल में बच्चों को आन लाइन पढ़ाने की सबसे पहली पहल एसएमसी अध्यापकों ने ही की थी। इसके लिए उस वक्त शिक्षा मंत्री रहे सुरेश भारद्वाज ने इनकी तारीफ भी की थी। राजेश भरत ने कहा कि प्रदेश में इस वक्त 130 स्कूल एेसे हां जहां का सारा कार्यभार और जिम्मेदारियां एसएमसी अध्यापक ही संभाल रहे थे।  उन्होंने कहा कि सरकार हमारी गलती बताएं। राजेश ने कहा कि  संगठन के आगामी आदेशों तक तुरंत प्रभाव से आनलाइन पढ़ाई बंद की जा रही है।
साथ ही उन्होंने सरकार से अभी तक किए गए  एसएमसी अध्यापकों के काम की तनख्वाह भी मांगी। उन्होंने कहा कि  केंद्र सरकार के अनुसार कोविड काल में न तो किसी को नौकरी से निकाला जा सकता है और न ही किसी की सैलरी रोकी जा सकती थी। लेकिन बावजूद इसके प्रदेश सरकार ने एसएमसी अध्यापकों की कोविड काल से पहले से अब तक आाठ महीनों की सैलरी नहीं दी है, सरकार इस सैलरी को तुरंत जारी करे।
प्रधान मनोज रोंगटा ने कहा कि पहले से उन्हेंं आठ महीनों की सैलरी नहीं मिली है जिससे आजीविका का संकट खड़ा हो गया है एेसे में उनके पासइतना पैसा नहीं है  कि वे लोग उच्चतम न्यायालय जा सके, इसके लिए सरकार को उनका सहयोग करना चाहिए। उन्होंने कहा कि कोरोना के इस मुश्किल दौर में अपना रोजगार खव चुके एसएमसी शिक्षक अगर कोई ऐसा वैसा कदम उठाएंगे तो इसकी सारी जिम्मेदारी प्रदेश सरकार की होगी।
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