आदर्श हिमाचल ब्यूरों
शिमला । शासकीय महाविद्यालय डार्लाघाट में “डीएमआईटी के माध्यम से जन्मजात प्रतिभाओं की पहचान” विषय पर एक महत्वपूर्ण हाइब्रिड मोड सत्र आयोजित किया गया। यह कार्यक्रम विज्ञान, शिक्षा और करियर मार्गदर्शन का अनूठा संगम था, जिसमें महाविद्यालय के शिक्षकों और विद्यार्थियों ने प्रत्यक्ष एवं वर्चुअल दोनों माध्यमों से भाग लिया।
यह सत्र प्रोफेसर डॉ. बी. एस. चौहान, विज़िटिंग फैकल्टी, इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (आईजीएमसी) शिमला द्वारा संचालित किया गया। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. रुचि रमेश रहीं।
सत्र का उद्देश्य और विषय
इस सत्र का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों की जन्मजात क्षमताओं की पहचान करना था ताकि उन्हें शिक्षा और करियर के सही मार्ग पर अग्रसर किया जा सके। भारतीय शिक्षा व्यवस्था में अक्सर विद्यार्थी अपने प्राकृतिक कौशल और रुचि को पहचाने बिना विषय और करियर का चयन कर लेते हैं, जिससे आगे चलकर असंतोष, कम प्रदर्शन और मानसिक तनाव की स्थिति उत्पन्न होती है।
डीएमआईटी (Dermatoglyphics Multiple Intelligence Test) इस समस्या का वैज्ञानिक समाधान प्रदान करता है। यह फिंगरप्रिंट विश्लेषण के माध्यम से व्यक्ति की जन्मजात बुद्धिमत्ता, सीखने की शैली और मस्तिष्क के विभिन्न भागों की क्षमता का पता लगाता है।
भागीदारी और प्रारूप
यह कार्यक्रम हाइब्रिड मोड में आयोजित किया गया, जिसमें—
ऑफ़लाइन: महाविद्यालय परिसर में बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं और शिक्षकों की उपस्थिति।
ऑनलाइन: अन्य स्थानों से जुड़ने वाले शिक्षक और विद्यार्थी।
इस प्रारूप ने कार्यक्रम की पहुंच को विस्तृत किया और अधिक लोगों को लाभान्वित किया।
उद्घाटन और स्वागत
कार्यक्रम की शुरुआत में डॉ. रुचि रमेश और डॉ. बी. एस. चौहान का औपचारिक स्वागत किया गया। स्वागत भाषण में डॉ. रमेश ने कहा कि विद्यार्थियों की प्रतिभाओं को प्रारंभिक अवस्था में पहचानना और उन्हें सही दिशा में विकसित करना आज की शिक्षा की प्रमुख आवश्यकता है। उन्होंने वैज्ञानिक उपकरणों जैसे डीएमआईटी को शिक्षा में शामिल करने की महत्ता पर बल दिया।
डॉ. बी. एस. चौहान का विशेषज्ञ व्याख्यान
डॉ. चौहान ने डीएमआईटी को सरल भाषा में वैज्ञानिक आधार सहित समझाया:
डीएमआईटी डर्मेटोग्लाइफिक्स (अंगुलियों के निशान का अध्ययन) और न्यूरोसाइंस पर आधारित है।
इसमें दोनों हाथों की 10 उंगलियों के फिंगरप्रिंट का बायोमैट्रिक स्कैन किया जाता है, जिससे मस्तिष्क के विभिन्न लोब्स के विकास का आकलन किया जाता है।
उंगलियों के निशान गर्भावस्था के 13वें सप्ताह में बनते हैं और जीवन भर नहीं बदलते।
यह सिद्धांत 60 वर्षों के वैज्ञानिक शोध पर आधारित है और 40 से अधिक देशों में लागू हो चुका है।
अब तक दुनिया भर में 3 करोड़ से अधिक डीएमआईटी टेस्ट किए गए हैं, जिनमें 95% सटीकता पाई गई है।
डीएमआईटी के उपयोग
डॉ. चौहान ने डीएमआईटी के उपयोग को चार आयु वर्गों में समझाया:
1. स्कूल विद्यार्थी (4–18 वर्ष)
प्राकृतिक सीखने की शैली (दृश्य, श्रव्य, स्पर्श) की पहचान, जो 92% शैक्षिक प्रदर्शन को प्रभावित करती है।
हॉवर्ड गार्डनर के 8 प्रकार की बुद्धिमत्ता का आकलन।
67% विद्यार्थियों द्वारा 10वीं के बाद गलत विषय चुनने की समस्या को रोकना।
माता-पिता और बच्चे के बीच बेहतर समझ, जिससे 72% व्यवहारिक समस्याओं का समाधान।
शैक्षणिक दबाव में कमी — विशेष रणनीतियों से 30–40% अंकों में सुधार।
2. कॉलेज एवं विश्वविद्यालय विद्यार्थी (18–25 वर्ष)
उचित विषय/स्ट्रीम चयन में मार्गदर्शन — भारत में प्रतिवर्ष 1 में से 3 छात्र विषय बदलते हैं या पढ़ाई छोड़ते हैं।
आत्मविश्वास में वृद्धि — मस्तिष्क प्रभुत्व की जानकारी से प्रस्तुति और इंटरव्यू प्रदर्शन में 45% सुधार।
प्रोजेक्ट और इंटर्नशिप की बेहतर योजना, जिससे 28% अधिक रोजगार योग्यता।
स्मृति और एकाग्रता में वृद्धि।
परीक्षा संबंधी तनाव में 50% तक कमी।
3. वयस्क (26–59 वर्ष)
70% पेशेवर गलत करियर पथ चुनने की समस्या से उबर सकते हैं।
कार्यक्षमता और संतुष्टि में 20–30% वृद्धि।
व्यक्तित्व असमानताओं से उत्पन्न विवादों में कमी।
अभिभावक के रूप में बेहतर मार्गदर्शन।
आजीवन सीखने की प्रवृत्ति को बढ़ावा।
4. वरिष्ठ नागरिक (60–80 वर्ष)
संज्ञानात्मक क्षमताओं में गिरावट को 20–25% धीमा करना।
रुचि-आधारित गतिविधियों से जीवन प्रत्याशा में 7–9 वर्ष की वृद्धि।
जीवन संतुष्टि में 35% सुधार।
समाज में सक्रिय योगदान।
स्मृति शक्ति में 32% तक वृद्धि।
व्यावहारिक प्रदर्शन
सत्र की विशेषता रही लाइव डीएमआईटी टेस्ट का प्रदर्शन।
शिक्षक: प्रोफेसर मार्गरेट सेबेस्टियन और प्रोफेसर अक्षय शुक्ला।
विद्यार्थी: ऋद्धि शर्मा, हिमांशी शर्मा, निशांत राज, इशिता और महिमा।
प्रतिभागियों ने फिंगरप्रिंट स्कैनिंग प्रक्रिया का अनुभव किया और प्रारंभिक परिणामों की व्याख्या सुनी। इससे श्रोताओं को प्रक्रिया की व्यावहारिक समझ मिली।
सहभागिता और प्रश्नोत्तर
विद्यार्थियों और शिक्षकों ने सक्रिय रूप से प्रश्न पूछे, जैसे:
डीएमआईटी की सटीकता पारंपरिक मनोवैज्ञानिक परीक्षणों की तुलना में कैसी है?
बायोमैट्रिक डाटा की गोपनीयता कैसे सुनिश्चित होती है?
ग्रामीण क्षेत्रों में डीएमआईटी के विस्तार की संभावनाएँ।
शैक्षणिक परामर्श में डीएमआईटी के परिणामों का उपयोग।
डॉ. चौहान ने इन प्रश्नों का उत्तर वैज्ञानिक तर्क, वास्तविक उदाहरण और अंतरराष्ट्रीय अनुभवों के साथ दिया।
मुख्य अतिथि का भविष्य दृष्टिकोण
डॉ. रुचि रमेश ने भविष्य की योजनाओं पर प्रकाश डाला:
1. विशेषज्ञों का आमंत्रण: विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को नियमित रूप से बुलाकर विद्यार्थियों और शिक्षकों के कौशल विकास के लिए सत्र आयोजित करना।
2. एमओयू पर हस्ताक्षर: करियर मार्गदर्शन, न्यूरोसाइंस और कौशल विकास से जुड़ी संस्थाओं के साथ सहयोग समझौते।
3. प्लेसमेंट सहयोग: निकटवर्ती संस्थानों के साथ मिलकर संयुक्त प्लेसमेंट ड्राइव आयोजित करना।
4. परामर्श सेल में डीएमआईटी का समावेश: कॉलेज के छात्र सहयोग तंत्र में डीएमआईटी को शामिल करने पर विचार।
प्रभाव और प्रतिक्रिया
विद्यार्थियों ने डीएमआईटी टेस्ट कराने की गहरी रुचि दिखाई।
शिक्षकों ने वैज्ञानिक और व्यक्तिगत दृष्टिकोण की सराहना की।
लाइव प्रदर्शन ने विषय को सरल और रोचक बना दिया।
छात्रों ने इसे तनाव कम करने और करियर चयन में सहायक माना।
निष्कर्ष
“डीएमआईटी के माध्यम से जन्मजात प्रतिभाओं की पहचान” सत्र ने जीडीसी डार्लाघाट में विज्ञान और शिक्षा को जोड़ने की दिशा में एक नया अध्याय खोला। इसने विद्यार्थियों और शिक्षकों को आत्म-खोज के एक आधुनिक वैज्ञानिक तरीके से परिचित कराया और भविष्य के कौशल विकास और करियर मार्गदर्शन के लिए नींव रखी।
प्राचार्या डॉ. रुचि रमेश के नेतृत्व में महाविद्यालय इस पहल को आगे बढ़ाने, वैज्ञानिक प्रतिभा पहचान उपकरणों को अपनी शैक्षणिक संरचना में शामिल करने और विद्यार्थियों को 21वीं सदी के कौशलों से लैस करने के लिए प्रतिबद्ध है।