आदर्श हिमाचल ब्यूरो
शिमला। हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड तकनीकी कर्मचारी संघ ने केंद्र सरकार द्वारा विद्युत बोर्डो का निजीकरण प्रस्तावित विधेयक 2020 का कड़ा विरोध किया है ।कर्मचारी संघ ने केंद्र सरकार के इस फैसले को कोरोना काल मे जब की कर्मचारी संघ अपना पक्ष व रोष व्यक्त नहीं कर सकता है हैरानी जताई है ।। इस प्रस्तावित विधेयक 2020 से कोड़ियों के भाव में विद्युत बोर्डो को बेचा जा रहा है , ऐसा करने से न केवल पूंजीपतियों को लाभ होगा बल्कि जमकर कर्मचारियों का शोषण भी होगा ।।
तकनीकी कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष दूनी चंद ठाकुर ने कहा कि केंद्र सरकार दिन प्रतिदिन कर्मचारी विरोधी कानूनों को लागू करती जा रही है।। हाल ही में श्रम कानूनों के अंतर्गत मजदूरों व कर्मचारियों को 10 से 12 घण्टे तक काम करना , एसके एवज में मूल वेतन को न बढ़ाना , 300 मजदूर रखने वाली कंपनी में मजदुरों को बिना नोटिस से नौकरी से निकलना आदि फैसले देश व प्रदेश में काम करने वाले मजदुरों व कर्मचारियों के हित में नहीं है ऐसा करने से कर्मचारियों व मजदूरों का शोषण तो होगा ही बल्कि अमीर और गरीब के बीच की खाई अधिक बढ़ेगी जिसको पूरा करने के लिए सदियां लग जाएगी।।
प्रदेश महामंत्री ने यह भी कहा जब जब सरकारों ने पूंजीपतियों या कम्पनियों के मालिकों को वितीय पैकेज दिये है उसका लाभ कभी नहीं देखा बल्कि किंगफ़िशर जैसी कम्पनी का हाल देखने को मिला। यह समस्याएं सरकार का वितीय पैकेज ले कर इसका दुरुपयोग करते हैं, तथा दो -तीन वर्ष बाद कर्मचारियों व मजदुरों को कम वेतन देकर विदेशों में ऐश करते है फिर वितीय घाटे का रोना रोकर स्थायी विदेशो के हो कर रह जाते है जिसका ताजा उदाहरण नीरव मोदी का है ।।
ठाकुर ने कहा कि हिमाचल विद्युत बोर्ड अपना कार्य वेहतरीन तरीके से कर रहा है व उपभोक्ता को 24 घण्टे बिजली पहुंचा रहा है। संघ के प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि इस कानून के आने से कमर्चारियों की जिमेबारी जिसमें पेंशन ,भते आदि नहीं लेगी जो कि वर्तमान में कर्मचारियों को मिलते हैं । संघ को पूर्ण विशवास है प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री व माननीय ऊर्जा मंत्री इस विषय पर प्रदेश के कर्मचारियों हित व अहित जरूर देखेंगे व कर्मचारियों को विश्वास में लेकर ही कोई फैसला करेंगे। तकनीकी कर्मचारी संघ की प्रदेश कार्यकारिणी ने सयुंक्त रूप से बोर्ड प्रबंधक , माननीय ऊर्जामंत्री , मुख्यमंत्री से तकनीकी कर्मचारी संघ से 2010 में हुए करार को यथावत रखने की मांग की है ।