रामपुर बुशहर: अंतरराष्ट्रीय लवी मेले से पूर्व आयोजित किए जाने वाला अश्व प्रदर्शनी चढ़ा कोविड की भेंट

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आधिकारिक मेला आयोजन न किये जाने के बावजूद लवी मेला मैदान पहुंचे सैकड़ों अश्व
आधिकारिक मेला आयोजन न किये जाने के बावजूद लवी मेला मैदान पहुंचे सैकड़ों अश्व

आधिकारिक मेला आयोजन न किए जाने के बावजूद लवी मेला मैदान पहुंचे सैकड़ो अश्व

आदर्श हिमाचल ब्यूरो

रामपुर बुशहर। जिला शिमला के रामपुर में आयोजित होने वाला अंतर्राष्ट्रीय लवी मेला इस बार भी कोरोना की भेंट चढ़ गया है। मेले से पूर्व आयोजित किए जाने वाले अश्व प्रदर्शनी हालांकि आधिकारिक नहीं मनाया जा रहा है लेकिन फिर भी सैंकड़ो घोड़े ले कर स्पीति समेत विभिन्न हिस्सों से अश्व पालक रामपुर मेला मैदान पहुंचे है। खरीददार कम आने से  अश्व पालकों को अपने घोड़े सस्ते में बेचना मजबूरी हो गया है।

उल्लेखनीय है कि अश्व प्रदर्शनी में मुख्य आकर्षण तिब्बती नसल के चौमुर्थी घोड़े होते है। इस बार स्पीति से करीब 80 चौमुर्थी घोड़े लाये गए थे, इस के अलावा अन्य हिस्सों से भी सैंकड़ो घोड़े बिक्री के लिए लाए हैं। घोड़ो की बिक्री न होने के कारण आधे दामों पर घोड़े बेचना अश्व पालकों  की मज़बूरी बन गया है। अश्व पालकों का कहना है कि पहले मेला मैदान में घास, चारा व् अन्य सुविधाएं सरकारी स्तर पर मुहैया करवाई जाती थी लेकिन इस बार कोई सुविधा नहीं है, जिसके कारण उन्हें कई दिक्क्तों का सामना करना पड़ रहा है।

छेवांग गटुक ने बताया वे पिन वेली से चौमुर्थी घोड़े  हर साल की तरह लवी मेले में  बेचने लाये हैं। इस साल कोरोना की वजह से मेला नहीं लग पाया है इस वजह से खरीददार कम आए। स्पीति से वे 80 घोड़े लाए हैं, उस में से 50 बेचे है वो भी सस्ते में बेचे है। वहीं जीवा नन्द ने बताया की उन्होंने रामपुर अश्व मेले से बीस हजार में घोड़ा खरीदा है। उन्हें बढ़िया घोड़ा मिला है। स्पीति से आये छेवांग ने बताया वे तीन घोड़े स्पीति नस्ल के लाये थे। खरीददार कम होने के कारण सस्ते में घोड़े बेचने पड़े।

बायल से आए शरीफ बताया की तीन घोड़े स्पीति नस्ल के ले कर आए हैं। लेकिन कोई घोड़ा नहीं बिका है, कोरोना की वजह से उत्तराखंड से व्यापारी नहीं आए, दूसरा इस बार स्पीति से अधिक घोड़े आए हैं।  सरकार की और से भी इस बार घास व् चोकर की सुविधा नहीं दी गई। कुंजुम ने बताया कि वे पिन घाटी से चौमुर्थी घोड़े लवी मेले में बेचने आए हैं।  कोरोना की वजह से  मेला फीका पड़ा। खरीददार भी कम आए हैं, घोड़े सस्ते बिक रहे है। पिछले दो वर्षो से सरकारी स्तर पर भी कोई सुविधा नहीं दी जा रही है। पहले घास-पानी व् घोड़े यहाँ पहुंचाने के पैसे दिए जाते थे लेकिन अब नहीं दिया जाता।