आज से ठीक 92 साल पहले मास्टर सूर्यसेन ने स्वतंत्रता संग्राम में जोड़ा था नया अध्याय, चटगांव की वो घटना जिसने क्रांति की मशाल जलाई

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आदर्श हिमाचल डैस्क

स्पैशल डेस्क: 92 साल पहले हुई चटगांव की घटना इतिहास में अपना स्थान बनाए हुए हैं इस घटना ने ना केवल भारत की आजादी में आहुति दी बल्कि सशस्त्र विरोध को भी स्थान दिया।

वर्तमान में बांग्लादेश का शहर चटगांव कभी अंग्रेजी हुकूमत की जड़ पर प्रहार करने का साक्षी रहा है, और गवाह रहा है उस समय का जब ब्रिटिश हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए क्रांति की ज्वाला भड़की थी। तब सैकड़ों युवा लामबंद हुए और ‘चटगांव शस्त्रागार कांड’ को अंजाम दिया।

योजनाबद्ध तरीके से 18 अप्रैल की रात सभी एक जगह सैनिकों के वेश में एकत्र हुए। फिर दो हिस्सों में बंट गए। इनमें से एक को पुलिस और दूसरे को सैन्य शस्त्रागार लूटना था। लूटकांड से पहले उन्होंने रेल की पटरियां उखाड़ने के अलावा संचार व्यवस्था नष्ट कर दिया, ताकि फिरंगी संपर्क साध न सके। इसके बाद जगह से शस्त्र लूट लिए गए। इस दौरान जिसने भी विरोध गिया, उसे गोली मार दी गई। सैन्य शस्त्रागार का सार्जेंट मेजर कैरल भी इसमें शामिल है। हालांकि, क्रांतिकारी पक्ष को कोई नुकसान नहीं हुआ।

शस्त्रागार लूटने के बाद सारे क्रांतिकारी जलालाबाद की पहाड़ी जा पहुंचे। संचार व्यवस्था ठप्प रहने के चलते अगले चार दिन चटगांव का प्रशासन आईआरए के हाथ में ही रहा। 22 अप्रैल को अंग्रेजों ने पहाड़ी को चारों ओर से घेर लिया। दोनों ओर से गोलियां चलीं। संघर्ष में 11 क्रांतिकारी और 160 ब्रिटिश सैनिक मारे गए। कई क्रांतिकारी भी पकड़े गए। लेकिन सूर्यसेन समेत अन्य शीर्ष साथी वहां से सुरक्षित निकलने में कामयाब रहे।

चटगांव कांड ने मास्टर सूर्यसेन को इतिहास में दिलाया स्थान

चटगांव के नवापाड़ा में 22 मार्च 1894 को जन्में सूर्यसेन पेशे से टीचर थे। इसलिए उन्हें ‘मास्टर दा’ नाम से संबोधित किया जाता था। स्वाधीनता संग्राम में उनके योगदान को देखकर बॉलीवुड में ‘खेले हम जी जान से’ फिल्म भी बन चुकी है। इसमें सूर्यसेन का किरदार अभिषेक बच्चन ने निभाया है और निर्देशन आशुतोष गोवारिकर ने किया है।

मास्टर सूर्यसेन

मास्टर सूर्यसेन ने चटगांव से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ खुद की आर्मी तैयार की। नाम रखा ‘इंडियन रिपब्लिक आर्मी।’ धीरे-धीरे 500 सदस्य इससे जुड़ गए। इनमें लड़के व लड़कियां दोनों ही शामिल थे। फिर उन्हें हथियारों की जरूरत महसूस हुई। इसके बाद सूर्यसेन ने 18 अप्रैल 1930 की रात चटगांव के दो शस्त्रागारों को लूटने का ऐलान कर दिया।

इसके कांड के बाद अंग्रेजों ने सूर्यसेन को पकड़ने के लिए इनाम रखा। लेकिन वे फिर भी अंग्रेजों के हाथ नहीं आए। हालांकि, तीन साल बाद 16 फरवरी को वे गिरफ्तार कर लिए गए। एक जमींदार ने पैसे के लालच में उन्हें अपने घर से पकड़वा दिया। फिर सूर्यसेन पर मुकदमा चला और 12 जनवरी 1934 को फांसी की तारीख मुकर्रर हुई। उन्हें मेदिनीपुर जेल में फांसी दे दी गई। कहते हैं फांसी से पहले अंग्रेजों ने उन्हें काफी यातनाएं दी थीं।