आदर्श हिमाचल ब्यूरो
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की ताज़ा रिपोर्ट रिलीज़ हो चुकी है और यह रिपोर्ट बेहद खास है। ख़ास इसलिए क्योंकि इसमें साफ़ तौर पर वैश्विक स्तर पर बढ़ते कार्बन एमिशन और उसकी वजह से बदलती जलवायु का मानवता पर हो रहे असर का ज़िक्र है।
रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत के कुछ शहर, जैसे सूरत, भुवनेश्वर और इंदौर शहरी स्तर पर एडाप्टेशन योजना बना चुके हैं। लेकिन उनका एडाप्टेशन प्लान एक ही खतरे पर केंद्रित हैं।
उदाहरण के लिए इंदौर केवल पानी की कमी को देखता है। उन्हें हाइब्रिड और मल्टी सेक्टोरिअल यानी एक नहीं अनेक पहलूओं पर केन्द्रित करने की ज़रूरत है। रिपोर्ट के लेखकों में से एक, डॉ अरोमर रेवी के अनुसार भारत और बांग्लादेश जैसे देशों के लिए इस दिशा में परिवर्तन लाने के लिए एक छोटा सा मौका है जिसका अगर वक़्त रहते फायदा नहीं उठाया तो दोनों ही देशों कि जलवायु समस्या बढ़ेगी।
उदाहरण के लिए वो कहते हैं
कि हमें उड़ीसा में तूफानों के प्रति प्रतिरोधी साफ़ बिजली प्रणालियों की आवश्यकता है। जो तूफ़ान आने पर घंटो बिजली बंद रहने के बजे तूफ़ान के फौरन बाद बिजली की सप्लाई चालू कर दें।
इस रिपोर्ट में भारत को लेकर कुछ बेहद चिंताजनक बातें कहीं गयी हैं।
- कार्बन उत्सर्जन में कटौती के बिना, आने वाले निकट भविष्य में गर्मी और उमस मानव सहनशीलता की सीमा को पार कर जाएगी।
रिपोर्ट के चैप्टर 10 और पेज 57 पर साफ़ कहा गया है कि भारत उन स्थानों में से है जो इन असहनीय परिस्थितियों का अनुभव करेगा। रिपोर्ट के लेखकों में से एक, अंजल प्रकाश बताते हैं कि बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग के कारण भारत के उच्च ऊंचाई वाले हिमालयी क्षेत्र में डेंगू और मलेरिया फैल रहा है।
रिपोर्ट की एक अन्य लेचांदनी सिंह के अनुसार हिमालय की नाजुक प्रणाली ग्लोबल वार्मिंग के कारण बहुत जल्द ख़तरे में आती है, और यहाँ फिर से चमोली जैसी और भी आपदाएं हो सकती हैं।
रिपोर्ट वेट-बल्ब तापमान का ज़िक्र किया गया है, जो मूल रूप से तापमान रीडिंग की गणना करते समय गर्मी और उमस को भी जोड़ कर देखता है। एक आम इंसान के लिए, 31 डिग्री सेल्सियस का वेट-बल्ब तापमान बेहद खतरनाक है। 35 डिग्री सेल्सियस में तो छाया में आराम कर रहे किसी स्वस्थ वयस्क के लिए भी लगभग 6 घंटे से अधिक समय तक जीवित रहना मुश्किल हो जाएगा।
रिपोर्ट के चैप्टर 10 और पेज 43 पर बताया गया है कि फिलहाल भारत में वेट-बल्ब का तापमान शायद ही कभी 31°C से अधिक होता है, और भारत कि अधिकांश जगहों में अधिकतम वेट-बल्ब तापमान 25-30°C ही होता है। अध्ययन बताता है कि अगर उत्सर्जन में वर्तमान में किए वादों के मुताबिक भी कटौती की जाती है, तब भी उत्तरी और तटीय भारत के कई हिस्से सदी के अंत तक 31 डिग्री सेल्सियस से अधिक के बेहद खतरनाक वेट-बल्ब तापमान अनुभव करेंगे।
यदि उत्सर्जन में ऐसी ही वृद्धि जारी रहती है, तो भारत के अधिकांश हिस्सों में वेट-बल्ब तापमान 35 डिग्री सेल्सियस के खतरनाक स्तर तक पहुंच जाएगा।
जो बात हैरान करने वाली है वो ये है कि रिपोर्ट में साफ़ तौर पर बताया गया है कि अगर उत्सर्जन में वृद्धि जारी रही तो लखनऊ और पटना 35 डिग्री सेल्सियस के वेट बल्ब तापमान तक पहुंच जाएंगे। इसके बाद भुवनेश्वर, चेन्नई, मुंबई, इंदौर और अहमदाबाद में वेट बल्ब तापमान 32-34 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने का अनुमान है।
कुल मिलाकर, असम, मेघालय, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब सबसे अधिक प्रभावित होंगे।
- समुद्र के स्तर में वृद्धि से भारत में लोगों, कृषि और बुनियादी ढांचे को होगा खतरा
रिपोर्रिट के लेखिका बेगम रोशन आरा कहती हैं कि – भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान में ग्लोबल वार्मिंग से तटीय शहरों में बुनियादी ढांचे का नुकसान हो सकता है। इनके तटीय शहरों में हीट वेव और भारी वर्षा के कारण आने वाली बाढ़े गंभीर होंगी । जो भारत और बांग्लादेश में बहुत से लोगों को अपने घर छोड़ने के लिए मजबूर करेंगी ।
पोर्ट के चैप्टर 3 पेज 50 पर ज़िक्र हुआ है कि अगर सरकारें अपने मौजूदा उत्सर्जन-कटौती के वादों को पूरा करती हैं तो इस सदी में वैश्विक स्तर पर समुद्र का स्तर 44-76 सेंटीमीटर तक बढ़ जाएगा। लेकिन तेज़ी से उत्सर्जन में कटौती के साथ, वृद्धि 28-55 सेमी तक सीमित की जा सकती है। जैसे-जैसे समुद्र का स्तर बढ़ता है, खारे पानी की घुसपैठ के कारण अधिक भूमि जलमग्न हो जाएगी, नियमित रूप से बाढ़ आ जाएगी, और ज़मीन कृषि के लिए अनुपयुक्त हो जाएगी।
इसी चैप्टर मेन आगे पेज 58 पर साफ किया गया है की भारत अपनी जनसंख्या की वजह से समुद्र स्तर में वृद्धि से प्रभावित होने वाले देशों मेन सबसे कमजोर है।
सदी के मध्य तक, भारत में लगभग 35 मिलियन लोगों को वार्षिक तटीय बाढ़ का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही, चैप्टर 3 पेज 126 में बताया गया है कि सदी के अंत तक 45-50 मिलियन लोग जोखिम में होंगे।
भारत के लिए समुद्र के स्तर में वृद्धि और नदी की बाढ़ की आर्थिक लागत भी दुनिया में सबसे ज्यादा होगी। इस बात का खुलासा होता है चैप्टर 10 के पेज 59 पर जहां एक अन्य अध्ययन के अनुसार बताया गया है की यदि उत्सर्जन में केवल उतनी ही तेजी से कटौती की जाती है जितनी कि वर्तमान में वादा किया गया था तो प्रत्यक्ष क्षति का अनुमान $24 बिलियन के बीच है, और यदि उत्सर्जन अधिक है और बर्फ की चादरें अस्थिर हैं, तो यह आंकड़ा $36 बिलियन पहुंचेगा। यदि उत्सर्जन में वृद्धि जारी रही तो अकेले मुंबई में समुद्र के स्तर में वृद्धि से नुकसान 2050 तक 162 अरब डॉलर प्रति वर्ष तक हो सकता है।
- खाद्य उत्पादन भी होगा प्रभावित
विश्व स्तर पर, उच्च तापमान और चरम मौसम की घटनाएं, जैसे कि सूखा, गर्मी की लहरें और बाढ़, फसलों को नुकसान पहुंचा रही हैं और अगर तापमान में वृद्धि जारी रहती है तो फसल उत्पादन में तेजी से कमी आएगी। रिपोर्ट के चैप्टर 5 के पेज 14-15 पर इन बातों का उल्लेख है कि जलवायु परिवर्तन और बढ़ती मांग का मतलब है कि भारत में लगभग 40% लोग 2050 तक पानी की कमी के साथ जीएंगे, जबकि अब यह 33% है। गंगा और ब्रह्मपुत्र दोनों नदी घाटियों में भी जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप बाढ़ में वृद्धि देखी जाएगी, खासकर अगर वार्मिंग 1.5 डिग्री सेल्सियस से गुजरती है। इस बात का ज़िक्र चैप्टर 10 पेज 40 पर है।