ओपन मार्किट सिस्टम का सेब बागवान कर रहे हैं सर्मथन
विशेषर नेगी
शिमला। हिमाचल के सेब बहुल इलाकों में जब से सेब क्रय करने वाली कंपनियां और बड़े सीए स्टोरेज खुले है उसके बाद सेब बागवानों को अपने उत्पाद के सही दाम मिलने लगे हैं। इससे पहले बागवानों को सेब लेकर दिल्ली व अन्य मंडियों में जाना पड़ता था। जहां उन्हें आढ़ती के रहमो कर्म पर निर्भर रहना पड़ता था। वहां बागवानों को आढ़ती व् लदानी द्वारा फिक्सिंग से तय किये दाम पर सेब बेचना मज़बूरी बन जाता था। लेकिन जब से हिमाचल प्रदेश के सेब बहुल इलाकों तक विभिन्न सेब क्रय करने वाली एजेंसियां पहुंची है या फिर आस-पास में सीए स्टोर खुले हैं उसके बाद बागवान शोषण की चक्की से बहार निकले है। उन के पास अब इच्छनुसार सेब बेचने के विकल्प खुल गए हैं।
हालांकि कई मौकों पर अब भी कुछ सेब क्रेताओं की जुगलबंदी से क्षेत्र में भी सेब बागवानों को सेब के सही दाम नहीं मिलते है। लेकिन कुल मिलाकर पूर्व के वर्षो के मुकाबले बागवानों को लाभ हो रहा है। बागवान हरीश लक्टू ने बताया कि पहले सेब दिल्ली मंडी में ले जाना पड़ता था। इसमें सबसे बड़ी बात यह थी कि 8% कमीशन बागवानों से ली जाती थी और सेब के रेट भी सही नहीं मिलते थे। जबसे हिमाचल में छोटी-छोटी मंडिया स्थापित हुई और बाहर से सेब क्रय करने वाले घर द्वार
पर पहुंच रहे हैं उसके बाद सेब के दाम सही मिल रहे है। जबकि दिल्ली में आढ़ती कमीशन के अलावा बिल में फोन कॉल व् चिट्ठी भेजने के चार्जेस तक जोड़ते थे।
सुरेंदर कुमार ने बताया कि हिमाचल में जब से सीए स्टोर खुले है उस के बाद बागवानों को काफी लाभ हुआ है। इसे बागवानों को अपने सेब का सही दाम मिलने लगे है। पहले दिल्ली मंडी में जब सेब चले गया तो वापस आना पॉसिबल नहीं। आढ़ती बागवान की मज़बूरी का फायदा उठाते हुए अपनी मर्जी से बेचता था। अब विकल्प खुले है बागवान को अपने सेब के सही दाम मिलते है।
प्रेम चौहान किसान ने बताया पंजाब हरियाणा महाराष्ट्र उत्तर प्रदेश महाराष्ट्र का किसान लड़ाई लड़ रहा है। हिमाचल प्रदेश में भी शुरू में सेब की दरें सही होती है, जैसे ही बड़े सेब क्रेता चाहे वह अडानी अंबानी हो या अन्य सेब खरीदना शुरू कर देते हैं तो सेब के दाम एकदम गिर जाते है। इस बार भी देखने को मिला है कि सेब के दाम बहुत
ज्यादा गिराए गए। सीएस स्टोर वाले बड़े लोग किसान से सस्ते में सेब खरीद कर तीन गुना दाम पर आगे बेचते है। इससे किसान को अपने मेहनत का फल नहीं मिल रहा है।
बाइट –डीपी गौतम के गांव का उत्पाद सेब, प्लम, खुमानी दिल्ली , चंडीगड़
मंडियों में ले जाते थे तो वहां आढ़तियों की मनमानी का शिकार होना पढ़ता
था।
हमे टेक्स से ले कर विभिन्न चार्जिज देने पड़ते थे। अब जब से बड़े सीए
स्टोर या घर द्वार पर सेब खरीदने वाले आ रहे है उस से उन्हें लाभ हो रहा
है। अब बागवान अपनी मर्जी से जहाँ दाम सही मिले फसल बेच रहा है।
केवल राम बुशहर निदेशक एपीएमसी ने बताया बागवान क्षेत्र के बागवान है उन्हें जब से सीए स्टोर या फिर सेब खरीददार एजेंसियां घर द्वार पर आई है उस के बाद सेब बागवानों को सेब के सही दाम मिल रहे है। सरकार की ओर प्रयास है की बागवानों के साथ अन्याय ना हो।