सिरमौर में कांग्रेस बनी “सिरमौर”, खेला तुरुप का इक्का, भाजपा के माथे पर खींची चिंता की लकीरें

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दिल्ली में भाजपा की तेज-तरार्र नेतररी दयाल प्यारी ने हिमाल प्रभारी राजीव शुक्ला के सामने थामा कांग्रेस का हाथ
दिल्ली में भाजपा की तेज-तरार्र नेतररी दयाल प्यारी ने हिमाल प्रभारी राजीव शुक्ला के सामने थामा कांग्रेस का हाथ

विशेष संवाददाता

नाहन। सिरमौर के पच्छाद में पिछले 15 वर्षों से हाशिये पर चल रही कांग्रेस को आखिर संजीवनी मिल गई है। भाजपा के कद्दावर नेता रही पछाद की पूर्व बीडीसी अध्यक्ष दयाल प्यारी अब कांग्रेस की हो गई है। इस विधानसभा क्षेत्र में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुरेश कश्यप की साख पिछले कुछ अर्से से दयाल प्यारी प्रकरण के बाद लगातार गिरती चली आ रही है। इसका ताजा अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है सुरेश कश्यप कि अपनी पंचायत से उनके द्वारा उतारा गया मैदान मैं प्रत्याशी चुनाव हार गया था। यही नहीं जिन जिन लोगों को पंचायती राज चुनाव में सुरेश कश्यप ने उतारा था वह सभी चुनाव हारे हैं। इस विधानसभा क्षेत्र के लोगों की नाराजगी का सबसे बड़ा कारण बलदेव भंडारी का दयाल प्यारी से विवाद। और इस विवाद में सुरेश कश्यप के बयान ने आग में घी डालने का कार्य किया था। जिसके बाद इस विधानसभा क्षेत्र के गिरी आर और गिरी पार के लोगों में सुरेश कश्यप के प्रति भारी नाराजगी पैदा हो गई थी। दयाल प्यारी संगठन के प्रति काफी ईमानदारी और निष्ठा रखती थी और पूर्व मुख्यमंत्री प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल गुट से संबंध रखती थी।

सुरेश कश्यप के सांसद बनने के बाद इस विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में दयाल प्यारी मजबूत चेहरा थी। मगर सुरेश कश्यप और बलदेव भंडारी के साथ हुए विवाद के बाद दयाल प्यारी को पार्टी से निष्कासित करवा दिया गया। दयाल प्यारी की जगह रीना कश्यप को प्रत्याशी बनाया गया था। यहां यह भी जानना जरूरी है कि इस विधानसभा क्षेत्र का भाजपा मंडल बलदेव कश्यप को मैदान में उतारना चाहता था। तो वही सुरेश कश्यप किसी और की सिफारिश भी कर रहे थे। मगर जिला भाजपा अध्यक्ष कि दूरनदेसी और गिरी पार के मुद्दे को शांत करते हुए रीना कश्यप के नाम पर मोहर लगाई गई थी। इस उपचुनाव में भाजपा से निष्कासित की गई दयाल प्यारी ने आजाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा। उपचुनाव में दयाल प्यारी ने एक अच्छा प्रदर्शन करते हुए अपना कद भी इस विधानसभा क्षेत्र में साबित कर दिया।

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इससे भी बड़ी बात तो यह रही कि पंचायती राज चुनाव में 50-50 के आंकड़े पर रही कांग्रेस भाजपा के सामने एक आजाद उम्मीदवार को भाजपा अपने खेमे में शामिल करने में नाकामयाब रही। यहां भी सुरेश कश्यप प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए अपने ही विधानसभा क्षेत्र में फिसड्डी साबित हुए। दयाल प्यारी आजाद जीत कर आए जिला परिषद सदस्य को कांग्रेस में शामिल करवाने को लेकर कामयाब रही। जिला में भाजपा की करारी किरकिरी होते हुए मोर्चा फिर डॉ राजीव बिंदल ने संभाला। उन्होंने पांवटा साहिब में कांग्रेस की कमजोर कड़ी पर वार करते हुए उनकी जीती हुई प्रत्याशी को भाजपा में शामिल कर लिया। और जिला परिषद पर कब्जा किया।पछाद विधानसभा क्षेत्र में भाजपा खेमे के अधिकतर लोग दयाल प्यारी के समर्थक भी हैं। अब दयाल प्यारी के कांग्रेस में शामिल होते ही इस विधानसभा क्षेत्र के समीकरण तेजी से बदल गए हैं। भाजपा के दो नेताओं को सबक सिखाने के लिए इस क्षेत्र की जनता कि सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया भी बड़ी जबरदस्त चल रही है। सवाल अब यह भी उठता है कि लगातार हारने वाले प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष व पूर्व में विधानसभा अध्यक्ष रहे जीआर मुसाफिर क्या जल्दी से मान जाएंगे। हालांकि जीआर मुसाफिर की मंशा 2022 में फिर से चुनाव में उतरने की है। मगर इस बार कांग्रेस यह रिस्क कतई भी नहीं उठाएगी। ऐसे में जीआर मुसाफिर को संभवत दिल्ली भेजने की तैयारी की जाएगी।

बरहाल दयाल प्यारी के कांग्रेस में शामिल होने के बाद यह तो तय है कि जिला में भाजपा का गढ़ माने जाने वाला पछाद विधानसभा क्षेत्र लगभग लगभग भाजपा के हाथ से निकल गया है। 2022 में रेणुका जी के साथ साथ अब यह विधानसभा क्षेत्र भी कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित हो गया है। वही बलदेव तोमर के चलते हर्षवर्धन चौहान की राहे आसान होंगी।