सचिन श्रीधर
अपना राजनीतिक वजूद बनाए रखने के लिये शायद विपक्ष के लिए जरूरी हो गया है कि मोदी सरकार के हर कदम की आलोचना की जाए। केंद्र सरकार को विवादों के कठघरे में खड़ा करने के लगातार प्रयासों की कड़ी में अब नया अध्याय जुड़ गया है, ऐतिहासिक जलियांवाला बाग के शहादत स्मारक का जीर्णोद्धार। दरअसल केंद्र सरकार ने जलियांवाला बाग स्मारक को नया स्वरूप दिया है। जिसका 28 अगस्त को प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी ने उद्घाटन किया था।
अमृतसर स्थित इस ऐतिहासिक स्थल पर कई बदलाव लाए गए हैं. मुख्य स्मारक की मरम्मत की गई है, शहीदी कुएं का जीर्णोद्धार किया गया है, नए चित्र और मूर्तियां लगाई गई हैं और ऑडियो-विजुअल और थ्रीडी तकनीक के जरिए नई गैलरियां बनाई गई हैं। इसके अलावा कमल के फूलों का एक तालाब बनाया गया है और एक लाइट एंड साउंड शो भी शुरू किया गया है। अब सुनिये विरोध क्या है। विरोध यह है कि रंग-बिरंगी रोशनी और तेज संगीत के माहौल से शहीदों की मर्यादा का अपमान हो रहा है। यह कैसा अजीब कुतर्क है।
सोचने वाली बता है कि क्या सरकार ने यह सब गलत किया है। स्मारक के स्वरूप को नवीनता प्रदान करने से शहीदों का अपमान कैसे हो गया। या इससे देश की स्थिरता को कैसे खतरा पहुंच गया। प्रधानमंत्री विरोधी शक्तियों का यह मानसिक दीवालियापन देखिये कि किसी प्राचीन शहीद स्मारक के जीर्णद्धार पर भी चीख पुकार मचा दी है।
याद रहे कि अमृतसर के जलियांवाला बाग में जनरल डायर द्वारा किए गए एक अभूतपूर्व और हिंसक हमले में महिलाओं और बच्चों सहित एक हजार से अधिक भारतीयों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। फिर भी पंजाब में पंजाब के लोगों ने ब्रिटिश राज का विरोध करना बंद नहीं किया। आज हम जिस जमीन पर खड़े हैं, उनके संघर्ष ने उन्हें आजाद कराया है। उनके अभूतपूर्व योगदान, उनके अकल्पनीय बलिदान और औपनिवेशिक बंधनों से मुक्ति पाने के लिए उनके अद्भुत समर्पण को नयी पीढ़ी तक पहुंचाना, दुनिया को अपने शहीदों की बेजोड़ वीरता से परिचित कराना क्या किसी भी देश या समुदाय के लिये पाप के समान है। यह तो किसी भी देश और उसके नागरिकों के लिये गौरव की बात है कि वह अपने शहीदों को निरंतर याद करता रहे।
सरकार के कदम का अंधा विरोध करने वाले क्या आम नागरिकों को बता रहे हैं कि पिछले दशकों में बाग में जो भवन संरचनाएँ बनी थीं, वे प्रमुख रूप से खराब हालत में थीं। तत्कालीन रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने 14 अप्रैल 2010 को उस समय की केंद्रीय सूचना एंव प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी की मौजूदगी में शहीदों को श्रद्धांजलि स्वरूप 52 मिनट की अवधि का साउंड एंड लाइट शो शुरू किया था जो कुछ ही समय बाद पूरी तरह से निष्क्रिय हो गया था।
स्मारक की दो संग्रहालय दीर्घाएं बहुत निराशा की हालत में पहुंच गयी थीं। पहली मंजिल पर थिएटर भी नाम के लिये था। ज्वाला स्मारक और परिसर के आसपास के फव्वारे बेहद खराब दशा को पहुंच चुके थे। शहीदी कुएं की सुपर संरचना जो स्मारक बनने के समय विकसित की गई थी, खराब हो गई थी। कम विकास, खराब पानी के पंप आदि की वजह से वहां के ऐतिहासिक कुएं ने अपनी पवित्रता खो दी थी। बाग के प्रवेश द्वार में पानी की बड़ी समस्या थी और मूल प्रवेश मार्ग पर बनाए गए ढांचे की मरम्मत और बहाली की जरूरत थी। इसलिए जलियांवाला बाग स्मारक के जीर्णोद्धार का निर्णय लिया गया।
ऐसा नहीं है सरकार ने चुपचाप रातों रात यह काम कर दिया हो। इस परियोजना को 8 नवंबर 2018 को गृह मंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय कार्यान्वयन समिति (एनआईसी) द्वारा अनुमोदित किया गया था। एएसआई की अध्यक्षता में इतिहासकारों, विद्वानों और शिक्षाविदों की एक अधिकार प्राप्त समिति का गठन किया गया था। पूरी अवधारणा को एक उच्च स्तरीय समिति द्वारा अनुमोदित किया गया था।
लेकिन नहीं, यह तथ्य नहीं बताए जा रहे हैं क्योंकि फिर विरोध किस बात का करेंगे। लोगों में भ्रम पैदा कर अपने राजनीति लाभ उठाने के फेर में सरकार विरोधी ताकतें पूरी ताकत से शोर मचा रही हैं। सरकार देश के गौरवशाली अतीत को नयीं पीढ़ी तक पहुंचाने के लिये कैसे भी प्रयास कर ले उसका विरोध किये बिना ये शक्तियां रह ही नहीं सकती। मगर सोचने वाली बात यह है कि विपक्षी दलों द्वारा भ्रम फैलाने वाली इस पूरी मुहिम से भारतीय समाज और इस देश का कितना नुकसान हो रहा है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की कैसी छवि बनेगी इस मुद्दे पर भी कोई सोचेगा।