दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र के देवता को मानाने वाले मलाणा गांव के लोगों को आखिर हिमाचल सरकार ने वैक्सीन के लिए कैसे मनाया ? जानिए

शिमला : हिमाचल प्रदेश सरकार कोविड-19 वैक्सीन की पहली डोज के 100% के लक्ष्य तक पहुंचने की कगार पर थी. लेकिन, कुल्लू जिले में पार्वती घाटी में स्थित एक छोटा सा खूबसूरत गांव मलाणा सबसे बड़ी अड़चन बनकर खड़ा था. इस गांव में करीब 1,000 व्यसकों की आबादी है, लेकिन अपने गांव को दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र मानने वाले यहां के लोग कोविड-19 वैक्सीन लगवाने के लिए तैयार नहीं हो रहे थे. वह तभी तैयार होते जब उन्हें उनके जमलू देवता इसकी अनुमति देते. गांव के लोग बिना अपने देवता से अनुमति लिए कतई वैक्सीन नहीं लगवाएंगे, यह सरकार को भी पता था. क्योंकि, वह पहले कई बार इस चुनौती का सामना कर चुकी थी. लेकिन, इसबार बात विकास योजनाओं को गांव में अंजाम देने की नहीं थी. सभी व्यस्कों को टीके लगवाने की थी. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था, अब कैसे संभव था. लेकिन, सरकार ने हार नहीं मानी और बहुत ही नाटकीय अंदाज में, लेकिन आस्था का सम्मान करते हुए जमलू देवता का ‘आशीर्वाद’ प्राप्त कर लिया.

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मलाणा के लोगों के लिए जमलू देवता का आशीर्वाद कितना महत्वपूर्ण है, इसके बारे में कुल्लू जिले के डिप्टी कमिश्नर आशुतोष गर्ग ने न्यूज18 डॉट कॉम को बताया. वे बोले, ‘स्थानीय देवता जमलू ऋषि की अनुमति लेकर ही विभाग कोई भी विकास कार्य जैसे कि स्कूल भवन, सड़क आदि का निर्माण शुरू करता है.’ खैर कोरोना वैक्सीन की पहली डोज लगाने में देश में सबसे आगे रहने के लिए हिमाचल सरकार के अधिकारी भी तीन घंटे तक ट्रेकिंग करके किसी तरह मलाणा पहुंचे थे. लेकिन, इस गांव में कोई भी फैसला आखिरकार करदारों या जमलू देवता के प्रतिनिधियों पर ही निर्भर है. हालांकि, हिमाचल के सरकारी अफसरों को मालूम है कि यहां सिर्फ शिमला से आदेश मिलने से काम नहीं होता, जमलू देवता की इजाजत सबसे ज्यादा जरूरी है. लेकिन, इसबार वैक्सीन का काम पहले के कार्यों के मुकाबले बहुत ही ज्यादा मुश्किल था.

स्वास्थ्य अधिकारियों ने 11 सदस्यीय पुजारियों की एक समिति (देवता के प्रतिनिधि) से इस मसले को लेकर बातचीत शुरू की. ढाई घंटे की इस बातचीत में उनके सवालों ने अधिकारियों के पसीने छुड़ा दिए. क्योंकि, यहां के लोग मानते हैं कि जमलू ऋषि ही उनके गांव की रक्षा करते हैं. हमारे लिए यह बात समझ के बाहर हो सकती है कि वह अपने देवता से मिले आदेशों और उनकी सहमति को कैसे समझ पाते हैं? लेकिन, यह पूरी तरह से उनकी आस्था से जुड़ा विषय है. उन्होंने जो पहली चिंता जाहिर की वह ये कि वैक्सीन लगाने से वे ‘अपवित्र’ हो जाएंगे. ये पुजारी आपस में क्या बातें कर रहे थे, उसे बाहर का कोई व्यक्ति नहीं समझ पा रहा था. गर्ग के मुताबिक, ‘हमारे साथ तो वे हिंदी में बात करते हैं. लेकिन, उनकी स्थानीय भाषा कानाशी है, जो कि दुनिया में और कहीं नहीं बोली जाती. वे आपस में क्या बोल रहे हैं, आप नहीं समझ सकते.’ उनकी दूसरी चिंता ये थी कि वैक्सीन से कहीं विकलांगता न आ जाए, क्योंकि अपने वंश की हिफाजत के लिए वे बहुत ही ज्यादा प्रोटेक्टिव रहते हैं. उन्होंने कहा कि वे बाहरी लोगों की बनाई चीजों का इस्तेमाल नहीं करना चाहते.

कुल्लू जिले के डिप्टी कमिश्नर के मुताबिक अधिकारियों को आधी कामयाबी तो इसी बात से मिल गई कि टीम में शामिल सभी वरिष्ठ अफसरों ने खुद पूरी डोज लगवा रखी थी. इससे उनपर एक सकारात्मक असर पड़ा. फिर उन्होंने सारे आंकड़े और रिसर्च पेपर के जरिए उन्हें समझाया कि कोविड-19 वैक्सीन कितनी फायदेमंद है. यही नहीं, उन्होंने बताया कि, ‘हमने उनसे कहा कि वैक्सीन सुरक्षित है और इसका कोई भी गंभीर साइड-इफेक्ट नहीं है. और अगर कल को भारत सरकार कुछ लाभ सिर्फ उन्हीं लोगों को देना शुरू कर दे, जिन्होंने कोरोना वैक्सीन लगवाई है, तो वे पछताएंगे. इस तरह के फायदों में किसी स्थान पर एंट्री, कहीं भी आजादी से घूमने और सरकारी योजनाओं के फायदे भी हो सकते हैं.’

सबसे काम की बात शायद यह साबित हुई कि वैक्सीन गांव वालों और पर्यटकों दोनों की सुरक्षा के लिए जरूरी है. गर्ग बोले कि ‘मलाणा को पर्यटन से काफी कमाई होती है.’ और उनकी आजीविका भी काफी हद तक सैलानियों पर निर्भर है. कोरोना की पहली लहर में जब केस निकले थे तो उन्होंने खुद ही गांव को बंद कर दिया था. ‘हमने उनसे कहा कि वैक्सीन लगवाने के बाद वे विदेशियों को आने दे सकते हैं. न तो टूरिस्ट हिचकिचाएंगे और नहीं ही उन्हें विदेशियों से कोविड होने का डर रहेगा.’ आखिरकार अधिकारियों को वैक्सीनेशन की अनुमति मिल गई और तीन दिन में ही यह काम पूरा हो गया. करीब 200 लोगों को तो दूसरी डोज भी लगाई जा चुकी है.