कविता
बैठ गई धूप आकर पीपल की छांव में
आ रही है ठंड बैठ बादलों की नाव में
शीश पर पर्वतों के बाल श्वेत उगने लगे
चुभने को है बर्फ अब हवाओं के पांव में
दीप ले घर-घर में आने को दीपावली
आया समय पंख लिए चीटियों के गांव में
खूब बरखा ने तो मनचाहा खेल खेला
आखिर वह उलझ ही गई शरद के दांव में
रेनकोट-छाते अपने-अपने देश गए
तैयार हैं स्वेटर-मुफलर अपने ठांव में!
डॉ एम डी सिंह
महाराजगंज गाजीपुर उत्तर प्रदेश