सामाजिक विकास और पर्यावरण

0
6

आदर्श हिमाचल ब्यूरो 

शिमला।  प्रकृति और मानव का संबंध सिरकालिक और शाश्वत है। प्रकृति ईश्वर का वह रूप है जिसे हम देख भी सकते हैं और महसूस भी कर सकते हैं। अपने जन्म के साथ ही जब मनुष्य ने अपनी आंखें खोली तो चारों तरफ प्रकृति की छट हरियाली और अद्भुत श्रृंगार को देखकर उसे स्वर्ग की अनुभूति हुई‌। वनवासी बृक्षवासी से भूतल वासी, ग्रामवासी से शहरवासी बनने का सफर तय होता गया। जरूरतें और महत्वाकांक्षाओं अपनी सीमाएं लांगती रही प्रकृति जिसे मां का दर्जा मिला था वह दासी बन गई, वह हमसे रूठ गई। मानव अपने आप को बड़ा मानने लगा और प्रकृति छटपटाने लगी। हम भूल गए थे प्रकृति मानव अस्तित्व की बुनियादी आवश्यकता है। हम भूल गए की प्रकृति  अपने नूर की बहाली चाहती है। स्वच्छ और नीला आकाश धूल और धुएं से ढका रहता है। चांद और सितारे किताबों में ही अधिक चमकते हैं मानव ने अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रकृति का निर्मम शोषण करना शुरू कर दिया। जिससे पर्यावरण संतुलन बिगड़ गया और विनाश की लीला हमारी नजरों के सामने तांडव करने लगी। पर्यावरण चिंताओं की चिता में विकास के सपने अंगारों में बदल गए।

विद्युत परियोजनाओं के रोशन भविष्य ने पर्यावरण के दीपक को पीछे छोड़ दिया। देश की प्रगति कंक्रीट से नापी जा रही है, कंक्रीट को सलाम करता विकास प्रकृति की परिभाषा ढूंढ रहा है। पर्यावरण के उजड़ते मंजर की गवाही देती हमारी करतूतें गुनाहगार है मानव द्वारा फैलाया फैलाए जा रहे प्रदूषण से प्रकृति की आत्मा कराह उठी है‌ आज के युग में बाढ़, सूखाग्रस्त, भूकंप,भूस्खलन और बादल फटना जैसी घटनाएं आम हो गई है। भूमंडलीय तपिकरण की बात की जाए तो अगले 50 सालों में पृथ्वी का तापमान 3 से 5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा इससे बड़ी चिंता का विषय मानव के लिए शायद और कोई नहीं है।

जनसंख्या विस्फोट से उपभोग और उपयोग में असंतुलन के कारण वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण की समस्याएं मानव समाज के लिए खतरनाक चुनौतियां बन गई है‌ ट्रकों बसों कारों तथा गाड़ियों से निकलने वाले धुएं से वायुमंडल द्रुतगति से प्रदूषित हो रहा है सांस लेने के लिए शुद्ध वायु की तलाश में इंसान भटक रहा है। कारखानों से निकलने वाली जहरीली गैसों से वायुमंडल में कार्बन मोनोऑक्साइड की मात्रा बढ़ गई है।

आज हमारे सामने मुख्य सवाल मनुष्य को जीवित रखने और विनाश से बचने का है पर्यावरण चुनौती को स्वीकार करना होगा, हमें पर्यावरण संरक्षण की लड़ाई लड़नी होगी। ही विकास की मौजूदा अवधारणा को दोबारा से परिभाषित करने की आवश्यकता है। हम सबको संकल्प करना होगा कि प्रकृति हमारी पूज्य मां है और इसकी रक्षा करना, इसका सम्मान करना हमारा परम कर्तव्य है।अगर हम आज भी नहीं सुधरे तो हमारा विनाश अवश्यंभावी तय है।