आदर्श हिमाचल ब्यूरो
शिमला। नई दिल्ली में हो रहे जी20 सम्मेलन में शनिवार को अफ्रीकन यूनियन को जी20 में शामिल कर लिया गया। सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने इसका प्रस्ताव रखा, जिसे सभी सदस्य देशों ने स्वीकार कर लिया। शिखर सम्मेलन में अपने संबोधन में पीएम मोदी ने कहा कि ‘आप सभी के समर्थन से, मैं अफ्रीकी संघ को जी20 में शामिल होने के लिए आमंत्रित करता हूं।
इसके बाद विश्व नेताओं की तालियों की गड़गड़ाहट के बीच विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कोमोरोस संघ के राष्ट्रपति और अफ्रीकी संघ के अध्यक्ष अजाली औसमानी को जी20 के सदस्य देशों के साथ आसन पर बिठाया। प्रधानमंत्री मोदी ने भी गले लगकर अफ्रीकी संघ के अध्यक्ष को जी20 में शामिल होने पर बधाई दी। सम्मेलन के शुरू होने से पहले ही अफ्रीकन यूनियन के दिल्ली सम्मेलन में जी20 में शामिल किए जाने की चर्चा थी।
अफ्रीकन यूनियन के सदस्य देशों की संख्या 55 है और इनमें 1.3 अरब जनसंख्या निवास करती है। 2050 तक इस जनसंख्या के दोगुनी होने का अनुमान है, ऐसे में इतने बड़े समूह को जी20 में शामिल करने की मांग लंबे समय से हो रही थी। वैश्विक भू-राजनीति में अफ्रीकन यूनियन की अहमियत लगातार बढ़ रही है। जिसके चलते दुनिया के बड़े देश लगातार अफ्रीका में निवेश कर अपनी पकड़ बनाने की कोशिश कर रहे हैं। चीन, अफ्रीका का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है तो रूस, अफ्रीका का सबसे बड़ा हथियार निर्यातक है। खाड़ी देश, अफ्रीका में सबसे बड़े निवेशक हैं। वहीं तुर्किए का सबसे बड़ा सैन्य अड्डा सोमालिया में है। इस्राइल और ईरान भी अफ्रीका में अपना पहुंच बढ़ा रहे हैं।
यही वजह है कि जी20 में अफ्रीकन यूनियन को शामिल करने की मांग स्वभाविक थी। प्राकृतिक संसाधनों के मामले में अफ्रीकी देश सबसे संपन्न हैं और जलवायु परिवर्तन के सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में भी अफ्रीकी देश शामिल हैं। अफ्रीकी देश कांगो में ही दुनिया के कुल कोबाल्ट का आधा हिस्सा मौजूद है। लीथियम आयन की बैट्रियों में कोबाल्ड बेहद जरूरी तत्व है। ऐसे में कह सकते हैं कि जब दुनिया में इलेक्ट्रिक वाहनों पर निर्भरता लगातार बढ़ रही है तो अफ्रीकी देश बेहद अहम हो जाते हैं। जी20 का गठन वैश्विक अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने और उसे बेहतर करने के लिए किया गया था। इसके चलते भी अफ्रीकन यूनियन की अहमियत है। कर्ज की समस्या से निपटने में भी अफ्रीकी यूनियन को जी20 में शामिल करना जरूरी है।