आदर्श हिमाचल ब्यूरो
शिमला। कृषि क्षेत्र के लिए, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कृषक समुदाय के सामने आने वाली चुनौतियों के प्रति समझ और जुड़ाव प्रदर्शित करके जमीनी स्तर पर किसानों के साथ संवाद के लिए प्रतिबद्धता दिखाई है। उनके दूरदर्शी नेतृत्व में सतत कृषि को मजबूत करने और देश भर में किसानों की आजीविका को बढ़ाने के उद्देश्य से विभिन्न पहलों की शुरुआत की गयी है।
गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, कृषि ने किसानों के बीच फसल की घटती पैदावार और कम उत्पादकता से जुड़े चिंताजनक मुद्दे की पहचान की। इसके समाधान के लिए, 2004 में कृषि महोत्सव शुरू किया गया था, जिसमें अग्रणी कार्यक्रम ‘नई विस्तार प्रणाली’ की घोषणा की गई थी, जो किसानों को उनके घरों पर व्यक्तिगत मार्गदर्शन प्रदान करती थी। इस पहल में, ‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड’ कार्यक्रम की शुरुआत शामिल थी, जो पोषक तत्वों की कमी की पहचान करने और मिट्टी की उत्पादन क्षमता निर्धारित करने के लिए हर खेत की मिट्टी के परीक्षण की सुविधा प्रदान करता था। इस रणनीतिक कदम ने सतत कृषि का मार्ग प्रशस्त किया, जिससे किसानों को उनकी विशिष्ट मिट्टी की स्थिति के आधार पर फसल चयन के बारे में जानकारी-आधारित निर्णय लेने की सुविधा प्राप्त हुई। इस पहल का अभिन्न अंग था- एक व्यापक जल संचयन कार्यक्रम का कार्यान्वयन, जिसके तहत 100,000 से अधिक चेक-डैम के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया गया और यह सुनिश्चित किया गया कि हर गांव तक बिजली की पहुंच हो। गुजरात, जिसकी 2000 में कृषि विकास दर नकारात्मक थी, में कृषि महोत्सव के तहत उल्लेखनीय सुधार हुए, जिसके परिणामस्वरूप किसानों की आय दोगुनी हो गई और बाद के वर्षों में 11 प्रतिशत की औसत वृद्धि जारी रही।
देश के प्रधानमंत्री के रूप में, मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम के माध्यम से जनता के साथ अपना संवाद जारी रखा। कृषि की लगातार उपेक्षा को स्वीकार करते हुए, उन्होंने 2017 में किसानों की आय दोगुनी करने (डीएफआई)’ के महत्वाकांक्षी दृष्टिकोण की शुरुआत की। पर्याप्त संसाधनों द्वारा समर्थित इस व्यापक कार्यक्रम का उद्देश्य किसानों को प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद अपनी आय बढ़ाने और प्रत्येक पांच साल में इसे दोगुना करने के लिए सशक्त बनाना है।
बहरहाल, यह स्पष्ट हो गया कि ये प्रयास औसत किसान के सामने आने वाली चुनौतियों का पूरी तरह से समाधान नहीं कर पाते हैं। कई लोग फसली मौसम की शुरुआत में खुद को कर्ज में डूबा हुआ पाते हैं और बीज खरीदने हेतु ऋण के लिए साहूकारों व व्यापारियों के पास जाने के लिए मजबूर होते हैं। परिणामस्वरूप, बीज बोने से पहले ही उनकी उपज गिरवी रख ली जाती है, जिससे उनकी वित्तीय परेशानियों में इजाफा हो जाता है। प्रतिकूल मौसम की घटनाएं खेती से जुड़े जोखिमों को और बढ़ा देती हैं, जिससे कुछ लोगों को किसानी छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
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इसके उपाय में, प्रधानमंत्री ने एक साहसिक और अभिनव समाधान- किसानों को सीधे नकदी सहायता- का सूत्रपात किया। वर्ष 2018 में “प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि” योजना के रूप में शुरू की गई। इस पहल के तहत केंद्र सरकार द्वारा पात्र किसानों के खातों में सीधे नकद अंतरण, बिचौलियों को खत्म करना और किसानों के दरवाजे पर निरंतर वित्तीय सहायता प्रदान करना शामिल है। इस योजना के जरिये तीन किस्तों में 6,000 रुपये दिए जाते हैं। यह किस्त दो-दो हजार रुपये की होती है। इसके लिए एक सुव्यवस्थित पंजीकरण प्रक्रिया और एक मजबूत शिकायत निवारण तंत्र आधारित आधुनिक डिजिटल तकनीक का लाभ उठाकर, बड़े पैमाने पर डेटाबेस आसानी से बनाए जाते हैं। दुनिया की सबसे बड़ी व्यक्तिगत लाभार्थी योजनाओं में से एक होने के नाते, इसने किसानों में विश्वास पैदा किया है कि सरकार जलवायु परिवर्तन संकट का सामना करने में उनके साथ खड़ी है। किसानों को इस तरह की वित्तीय सहायता महामारी के दौरान अहम साबित हुई है। इससे कृषि क्षेत्र की बहाली के लिए समायोजन और समर्थन करने में मजबूती मिली। अब तक, 11 करोड़ से अधिक किसानों को 2.80 लाख करोड़ रुपये वितरित किए गए हैं, जो भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद के मद्देनजर एक बड़ा निवेश है।
देश भर के किसान इस प्रत्यक्ष नकद सहायता के परिवर्तनकारी प्रभाव को समझ रहे हैं। गुजरात के भरूच के जम्बूसर के ‘वेदच’ गांव की नानूबेन जाडेजा ने बैंक खाता खोलने और कपास के बीज खरीदने का अपना अनुभव साझा किया। इसी तरह, अमरेली जिले के राजुला के खाड़ी गांव के खिमजीभाई रावल ने प्रत्यक्ष नकद लाभ के लिए आभार व्यक्त करते हुए इसे ऐसे बताया जैसे “ईश्वर ही मदद कर रहा हो।” वे इस निर्बाध प्रक्रिया से अचंभित हैं, जहां किसी भी स्थानीय प्राधिकारी या मध्यस्थ के साथ बातचीत करने की आवश्यकता के बिना धन सीधे उनके खातों में जमा किया जाता है। इस नई वित्तीय सहायता ने उन्हें प्रमाणित बीजों में निवेश करने के लिए सशक्त बनाया है, जो अप्रमाणित बीज प्रदान करने वाले व्यापारियों पर उनकी पिछली निर्भरता में बदलाव का प्रतीक है। भेराई गांव की एक महिला किसान लभुबेन मकवाना ने बताया कि कैसे समयावधि पर 2000 रुपये का लागत ऋण दिया जाता है, जिसके कारण उन्हें प्रारंभिक बीज और समय पर उर्वरक आदि खरीदने में मदद मिली। इस तरह, दूसरे किस्मों की बीजों के बजाए उपयुक्त बीजों के माध्यम से, उनकी कृषि उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई।
इस योजना की सफलता महामारी और जलवायु संबंधी प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद तेज एवं स्थायी बदलावों से गुजर रही भारतीय कृषि की बड़ी कहानी को दर्शाती है। प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण योजना ने मौजूदा अस्थिर माहौल में किसानों के लिए एक ठोस समर्थन के रूप में कार्य किया।
इस योजना की प्रभावकारिता को स्वीकार करते समय, कुछ बदलावों पर विचार करना अहम है। उदाहरण के लिए, अकेले पीएम किसान योजना के जरिए ही किसानों को प्रदान किए जाने वाले समर्थन को सुव्यवस्थित करके और ट्रैक्टरों एवं इसी तरह की अन्य योजनाओं के तहत दी जाने वाली व्यक्तिगत स्तर की सब्सिडी को बंद करके प्रभावशाली स्थानीय हस्तियों को संसाधनों को दूसरी ओर मोड़ने से रोका जा सकता है। इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में अमीर व्यक्तियों को लाभार्थियों की सूची से बाहर करने के लिए पात्रता संबंधी मानदंडो को संशोधित किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष के तौर पर, पीएम किसान योजना के जरिए किसानों को संसाधनों का सीधा हस्तांतरण ग्रामीण अर्थव्यवस्था में एक आदर्श बदलाव का प्रतीक है। सीधे बैंक खातों में राशि जमा करने का यह कदम नकदी पर निर्भर अर्थव्यवस्था से वित्तीय रूप से अपेक्षाकृत अधिक समावेशी प्रणाली में बदलाव को बढ़ावा देता है।
साहूकारों पर घटती निर्भरता से किसानों को उनकी उपज के लिए उचित बाजार मूल्य मिलना सुनिश्चित होता है, जिससे उनकी आय में वृद्धि होती है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस पहल ने सरकार के लिए डूबे हुए कर्ज के बोझ को कम कर दिया है। ग्रामीण क्षेत्रों में नकदी अर्थव्यवस्था को व्यवस्थित करके, इस योजना ने एक गुणात्मक प्रभाव पैदा किया है जिससे वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग और स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसरों का सृजन हुआ है। कुल मिलाकर, प्रत्यक्ष नकद सहायता ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था में किसानों का उत्थान किया है, प्रतिकूल मौसम की घटनाओं एवं महामारी के दबाव में कृषि को संभावित पतन से बचाया है, जिससे किसानों की गरीबी में वृद्धि को रोका जा सका है।
डॉ. किरीट एन.शेलाट, आईएएस (सेवानिवृत्त)
कार्यकारी अध्यक्ष- एनसीसीएसडी