आर्टिकल: ‘विकसित भारत’ हेतु सार्वजनिक प्रसारण व्यवस्था की नए सिरे से परिकल्पना

आदर्श हिमाचल ब्यूरो

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शिमला। भारतीय सार्वजानिक प्रसारण व्यवस्था में पिछले एक दशक के दौरान हुए सुधारों का आलोचनात्मक मूल्यांकन न केवल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सत्ता संभालने के बाद हुए बदलावों, बल्कि 2047 तक ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में देश की विकासात्मक यात्रा में सार्वजनिक सेवा की मीडिया द्वारा निभाई जाने वाली महत्वपूर्ण भूमिका की दृष्टि से भी जरूरी है।

अगर 2004 से लेकर 2014 तक की अवधि वाले यूपीए के शासनकाल को अक्सर ‘गवां दिए गए दशक’के रूप में निरूपित किया जाता है, तो यह सार्थक सुधारों के प्रति तत्कालीन सरकार की उदासीनता को देखते हुए सार्वजनिक प्रसारण के संदर्भ मेंखासतौर पर सच है।बीसवीं सदी की मानसिकता में लिपटे संगठन के रूप में दूरदर्शन और आकाशवाणी 21वीं सदी की चुनौतियों का सामना करने में असमर्थ होने के कारण यथास्थिति के भंवर में फंसे रहे। हालांकि, 2014 के बादसे, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व के कारण, प्रसार भारती ने सार्वजनिक प्रसारण व्यवस्था में सुधारों की एक अभूतपूर्व यात्रा शुरू की, जिसका सबसे अच्छा प्रभाव कोविड-19 महामारी के समय महसूस हुआ।यह बदलाव केवल तकनीकी उन्नयन तक ही सीमित नहीं था, बल्कि इस दृष्टिकोण पर आधारित था कि इंटरनेट युग की चुनौतियों से निपटने के लिए प्रसारण को किस तरह विकसित किया जाए।

वर्ष 2014 के बाद से आया बदलाव पैमाने और जटिलता, दोनों ही दृष्टि से बेहद चौंका देने वाला है। भारत के सबसे बड़े फ्री-टू-एयर डीटीएच प्लेटफॉर्म डीडी फ्रीडिश का प्रसार दोगुना हो गया है। यह प्लेटफॉर्म 45 मिलियन से अधिक परिवारों को सेवा प्रदान कर रहा है।डीडी फ्रीडिश कोविड-19 महामारी के दौरान देश के कोने-कोने के छात्रों के लिए एक जीवनरेखा बन गई।इसके जरिए 30 से अधिक शैक्षिक चैनलों की उपलब्धता का आशय उन लाखों छात्रों को महत्वपूर्ण रूप से शैक्षिक कंटेंट सुलभ कराने से हुआ जो इंटरनेट संबंधी बाध्यताओंसेपार पाने में समर्थ रहे और जिन्हें दूरस्थ कक्षाओं के लिए कंप्यूटर पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं पड़ी।इन लाखों छात्रों के शैक्षणिक वर्ष को बचाने में फ्रीडिश की भूमिका की दुनियाभर के मीडिया प्रतिष्ठानों ने सराहना की। इन मीडिया प्रतिष्ठानों ने यह देखा कि कैसे भारत ने शैक्षणिक वर्ष को बचाने के लिए सार्वजनिक प्रसारण का प्रभावी तरीके से लाभ उठाया। कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान, महाकाव्य रामायण और महाभारत के प्रसारण के जरिए देश भर के नागरिकों को व्यस्त रखने में दूरदर्शन की भूमिका ने वॉल स्ट्रीट जर्नल जैसे अंतर्राष्ट्रीय मीडिया संस्थान का ध्यान खींचा। रामायण द्वारा स्थापित दर्शकों का रिकॉर्ड आने वाले लंबे समय तक भारतीय टेलीविजन के लिए एक उच्च मानक बना रहेगा।

पिछले दस वर्षों में लोक प्रसारण के क्षेत्र में किया गया सबसे महत्वपूर्ण सुधार 1200 से अधिक अप्रचलित एनालॉग टेरेस्ट्रियल टेलीविजन ट्रांसमीटरों को चरणबद्ध तरीके से हटाया जाना है। यह विडम्बना ही थी कि समूचे भारत में टेलीविजन देखने का चलन केबल और उपग्रह पर स्थानांतरित हो जाने के बावजूद, एक दशक से भी अधिक समय तक इन अप्रचलित ट्रांसमीटरों को हटाने का कोई प्रयास नहीं किया गया, जिनकी दर्शक संख्या लगभग शून्य हो चुकी थी। इनको चरणबद्ध तरीके से हटाए जाने के साथ ही प्रसार भारती ने न केवल बिजली पर होने वाले काफी बड़े खर्च को बचाया है, बल्कि 5जी और ग्रामीण संचार सेवाओं के लिए महत्‍वपूर्ण स्पेक्ट्रम भी उपयोग के लिए उपलब्‍ध कराया है। इन ट्रांसमीटर साइटों पर तैनात जनशक्ति को तेजी से बढ़ते एफएम रेडियो नेटवर्क के प्रबंधन के काम में लगाकर प्रसार भारती ने लंबे समय से अलग-अलग विभागों के तौर पर संचालित होते आ रहे आकाशवाणी और दूरदर्शन के बीच दायरे को खत्‍म करते हुए रेडियो व टेलीविजन संचालनों के बीच काफी अर्से से लंबित सामजंस्य का काम भी किया।

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डीडी किसान जैसे समर्पित चैनलों के आरंभ के साथ वर्ष 2017के23 से बढ़कर वर्ष 2021 में 36 उपग्रह चैनलों तक दूरदर्शन का विस्‍तार, प्रत्‍येक भारतीय की जरूरतों को पूरा करने वाली विविध विषय सामग्री के प्रति उसकी संकल्‍पबद्धता को रेखांकित करता है। इसी तरह, भारत की आवाज़ देश के सुदूर कोनों और उससे आगे तक पहुंचाना सुनिश्चित करते हुए आकाशवाणी का भी उल्लेखनीय रूप से विस्तार किया गया। दूरदर्शन (डीडी) और आकाशवाणी (एआईआर) में डिजिटलीकरण व आईटी प्रणालियों के एकीकरण ने लोक प्रसारण को अधिक सुलभ और समावेशी बना दिया है। प्रमुख आयोजनों के लिए सांकेतिक भाषा में कमेंटरी की शुरुआत तथा अभिलेखीय विषय-वस्तु का डिजिटलीकरण भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुए इसे सभी के लिए सुलभ बनाता है। भारत में नंबर वन अंग्रेजी समाचार चैनल बन चुके डीडी इंडिया चैनल की प्रगति उल्लेखनीय रही है, जो यूट्यूब के अलावा कोरिया में myK, उत्तरी अमेरिका में YuppTVजैसे प्लेटफार्मों के संयोजन के माध्यम से 190 से अधिक देशों में अपनी मौजूदगी का विस्तार कर रहा है। अंतर्राष्ट्रीय स्‍तर पर यह आउटरीच, वैश्विक  मंच पर भारत के दृष्टिकोण और मूल्यों को प्रस्तुत करने की दिशा में महत्वपूर्ण है।

वित्तीय वहनीयता पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है, प्रसार भारती ने वर्ष 2021-2022 में वाणिज्यिक संचालन से 13 प्रतिशत राजस्व वृद्धि हासिल की। तकनीकी प्रगति के साथ इस वित्तीय विवेकशीलता के मेल ने एक आत्मनिर्भर लोक प्रसारण इकोसिस्‍टम का रोडमैप तैयार करने के लिए मजबूत आधार स्थापित किया है। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के लिए मौसम की रिपोर्ट प्रसारित करने जैसे रणनीतिक उपाय और न्यूज ऑन एयरऐप जैसे प्लेटफार्मों के माध्यम से डिजिटल उपस्थिति का विस्तार, राष्ट्रीय हित और वैश्विक आउटरीच के लिए लोक प्रसारण का लाभ उठाने के साहसिक और नवोन्‍मेषी दृष्टिकोण को दर्शाते हैं।

रॉयटर्स इंस्टीट्यूट ऑफ जर्नलिज्म स्टडीज के अपने वार्षिक सर्वेक्षण में दूरदर्शन और आकाशवाणी को भारत में समाचार के सबसे विश्वसनीय व भरोसेमंद स्रोतों के रूप में रैंकिंग दिए जाने से सार्वजनिक प्रसारण में किए गए एक दशक के सुधारों का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। इसके पश्चात भी, ये सुधार समापन नहीं बल्कि शुभारंभ हैं।

प्रधानमंत्री मोदी के 2047 तक ‘विकसित भारत’ के विजन को साकार करने के लिए, सार्वजनिक प्रसारण का विकास निरंतर रूप से जारी रहना चाहिए। इसे शिक्षा, नवाचार और संवाद के एक मंच के रूप में कार्य करना चाहिए, डिजिटल विभाजन को दूर करते हुए यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक भारतीय को, उसकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति के बावजूद, सूचना, शिक्षा और मनोरंजन तक पहुंच प्राप्त हो। यह तब और स्पष्ट हो जाता है जब हम विभिन्न क्षेत्रों में भारत की भाषाओं की विविधता पर विचार करते हैं, हालांकि इनमें से कई को निजी मीडिया द्वारा या तो कम वरीयता दी जाती है या फिर वरीयता दी ही नहीं जाती। सौ से अधिक भाषाओं और बोलियों में प्रसारित की जाने वाली आकाशवाणी की सेवाएं इस बात का स्मरण कराती हैं कि भारत के सुदूर क्षेत्रों तक विकास संबंधी संदेशों को सुसंगत और सटीक रूप में प्रसारित करना कितना चुनौतीपूर्ण है। प्रधानमंत्री मोदी की मन की बात के माध्यम से, आकाशवाणी ने न केवल पूरे भारत में विकासात्मक संदेश को बढ़ाया है, बल्कि भविष्य की प्रौद्योगिकियों में भी योगदान दिया है। आज मन की बात की रिकॉर्डिंग और दूरदर्शन एवं आकाशवाणी के संग्रह का लाभ उठाकर इन भाषाओं और बोलियों के लिए एआई मॉडल तैयार किए जा रहे हैं।

‘सबका साथ, सबका विकास’ से ‘विकसित भारत’ तक की यात्रा लंबी और चुनौतीपूर्ण है, लेकिन सार्वजनिक प्रसारण के रणनीतिक उपयोग के साथ, भारत यह सुनिश्चित करते हुए इस विजन को साकार करने के लिए तैयार है कि हर भारतीय की आवाज़ सुनी जाए, और भारत के विकास की यह गाथा इन अरबों आवाजों के साथ आगे बढ़ते हुए दुनिया के हर कोने तक पहुंचती है।

 

शशि शेखर वेम्पति

प्रसार भारत के पूर्व सीईओ