आर्टिकल: बाघ सदैव रहें: भारत की सफलता की कहानी और भविष्य की कल्‍पना

आदर्श हिमाचल ब्यूरो

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शिमला। प्रधानमंत्री ने अप्रैल 2023 में “अमृत काल का टाइगर विजन (टाइगर@2047)” की शुरुआत की। इसका आयोजन मैसूर में एक अंतर्राष्ट्रीय स्मरणोत्सव कार्यक्रम के दौरान प्रोजेक्‍ट टाइगर के पांच दशकों की सफलता पर किया गया। जंगल में रहने वाले हमारे बाघ, भविष्य की परिकल्‍पना का रोडमैप हैं और बाघ परिदृश्य निरंतर बदल रहा है।जंगलके हेर-फेर के बीच प्रोजेक्ट टाइगर यात्रा सीखने के लिए एक बेहतरीन अनुभव रही है। केन्‍द्र और अठारह राज्यों द्वारा परिमाण और पैमाने के मामले में, बाघों के लिए विश्व स्तर पर उठाए गए बेजोड़ कदमों ने अनेक परिपाटियों को जन्‍म दिया। ये स्‍तर में सुधार के लिए उपयोगी थे।

बाघ को क्यों बचाएं? प्रोजेक्ट टाइगर के क्या लाभ हैं? क्या यह एक करिश्माई प्रजाति के लिए एक काल्पनिक विचार था? क्या समाज को समग्र रूप से लाभ हुआ? स्थानीय लोगों को कैसे फायदा हुआ? क्या बाघों में केन्‍द्रित एक विशेष दृष्टिकोण उन्‍नति सम्‍बन्‍धी अत्यंत आवश्यक एजेंडे के साथ तालमेल बिठा सकता है? बाघों के संरक्षण के लिए किए गए प्रयास हमारी जलवायु प्रतिबद्धताओं के साथ निश्चित रूप कैसे ले सकते हैं? ये कुछ प्रश्न हैं जो अक्सर पूछे जाते हैं, और यह सही भी है।

बाघ महत्वपूर्ण है। विशेषकर संरक्षण के उद्देश्‍य से एक पारिस्थितिकी तंत्र के प्रतिनिधि के रूप में चुनी हुई प्रजाति, के अस्तित्व के लिए उसे एक ऐसे बड़े शिकार आधार की आवश्यकता होती है, जिसे विशाल जंगलों का सहारा हो। इस प्रकार, बाघों को संरक्षित करने के प्रयासों से पूरे पारिस्थितिकी तंत्र का यथास्थान संरक्षण होता है।

इसलिए, बाघ का एजेंडा एक फोटोग्राफर की ख़ुशी को बढ़ावा देने से कहीं अधिक है!

समाज को इनके असंख्य लाभ हैं-मूर्त और अमूर्त दोनों। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने इनका परिमाण निर्धारित किया है। उदाहरण के तौर पर, कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व से व्यापक लाभ में शामिल हैं: जीन पूल संरक्षण (प्रति वर्ष 10.65 बिलियन रुपये), पानी का प्रावधान (4.05 बिलियन प्रति वर्ष), वन्यजीव आवास और रिफ्यूजिया (जलवायु परिवर्तन से अप्रभावित क्षेत्र) (274 मिलियन रुपये प्रति वर्ष), स्थानीय रोजगार 82 मिलियन रुपये प्रति वर्ष। स्टॉक 261.8अरब रुपये था और प्रवाह 14.7 अरब रुपये प्रति वर्ष था। प्रति वर्ष प्रति हेक्टेयर प्रवाह लाभ 1.14 लाख रुपये था, जबकि प्रबंधन लागत के अनुपात के रूप में प्रवाह लाभ 368 था। अमूर्त वस्तुएं मूर्त से कहीं अधिक थीं।

पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं से न केवल आसपास के परिवेश को लाभ होता है, बल्कि इनका दूरगामी प्रभाव भी पड़ता है। उत्तर प्रदेश के डाउनस्ट्रीम जिलों में पानी का प्रावधान (1.61 बिलियन प्रति वर्ष) और नई दिल्ली शहर के लिए जल शुद्धिकरण सेवाएं (550 मिलियन रु. प्रति वर्ष) सीधे कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से उत्पन्न होती हैं।

बाघ पर निवेश के गुणन प्रभाव बिल्कुल स्पष्ट है।

स्थानीय लोग, बाघ परिदृश्य में प्राथमिक हितधारक होने के नाते, बाघ अभयारण्यों में कार्यबल के रूप में अपनी तैनाती के माध्यम से आजीविका भी प्राप्त करते हैं। वे मनुष्‍य और बाघ से जुड़कर मुद्दों का समाधान करते हुए सतही बफर क्षेत्रों में लाभकारी सामुदायिक प्रबंधन में भी शामिल हैं।

प्रोजेक्ट टाइगर के अंतर्गत बाघों की योजना मूल रूप से पारस्‍परिक रूप से पूरक “विशिष्‍ट” बाघ एजेंडा और सतही बफर तथा उससे परे एक “समावेशी” जन केंद्रित दृष्टिकोण का संयोजन है।

इस संदर्भ में ‘प्रभाव क्षेत्र’ को नज़रअंदाज नहीं किया गया है। ऐसे क्षेत्रों में कॉरिडोर लिंकेज को मैप किया गया है, जो समावेशी प्रोत्‍साहन के लिए कई क्षेत्र संरचनाओं/जिलों को मिलाते हैं।

भारत में जंगल में रहने वाले बाघों के एजेंडे का केन्द्राभिमुखी बनाम अपकेन्‍द्रीय दृष्टिकोण प्रतिष्ठित लुप्तप्राय प्रजातियों को: आजीविका और स्‍थायी विकास, वैश्विक स्‍थायी विकास के साथ समन्वय में पारिस्थितिकी तंत्र की बेहतरी का संकेतक, जैव विविधता संरक्षण और जलवायु लक्ष्य, पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को स्थायी रूप से सुरक्षित करने के लिए हरित निवेश और एक इकोसिस्‍टम सुरक्षित करने का शुभंकर बनने की अपार संभावनाएं प्रदान करता है।

हमारे प्रधानमंत्री द्वारा जारी ‘अमृत काल का टाइगर विजन’ में कई मजबूत कार्यों की परिकल्पना की गई है। मोटे तौर पर, तीन स्तरों अर्थात राष्ट्रीय, राज्य और बाघ अभयारण्य को मान्यता दी गई है।

राष्ट्रीय स्तर की विषय वस्‍तु (बारह) में वन्‍य क्षेत्र और जानवरों की कम आबादी वाले क्षेत्र (कोर और बफर) के लिए बढ़ी हुई केन्‍द्रीय सहायता, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, जलवायु परिवर्तन अनुकूलन से जुड़ना, जलवायु स्मार्ट कार्यों को बढ़ावा देना, सतही क्षेत्रों में आंतरिक कार्बन व्यापार के लिए बाजार संबंधों को मजबूत करना, स्थानीय वन संसाधन निर्भरता की तुलना में बाघ परिदृश्य में वन उत्पादकता में सुधार करना, महामारी बफरिंग को बढ़ावा देना, इकोसिस्‍टम सेवाओं का मूल्यांकन, बाघ प्रबंधन में सुधार, बाघ अभयारण्यों के पास पारंपरिक छोटे शहरों की स्थिरता को बढ़ावा देना और मेजबान समुदाय संचालित इको-पर्यटन शामिल है।

राज्य स्तरीय विषयगत क्षेत्रों में कोर (चौदह) और बफर/सतही क्षेत्र (तेईस) की विषय वस्‍तु है।

टाइगर निवेश के बहुत लाभ हैं। अनुभवजन्य निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि 2020-21 के दौरान प्रोजेक्ट टाइगर के तहत बजटीय आवंटन का एक चौथाई से अधिक हिस्सा जलवायु लाभ के रूप में वापस प्राप्त किया गया था। शायद, माननीय प्रधानमंत्री द्वारा निर्धारित कार्बन नेट जीरो लक्ष्य (वर्ष 2070) तक पहुंचने के लिए बाघ और बाघ वाले जंगल सबसे अधिक किफायती तरीकों में से एक हैं।

बाघों के मामले में भारत के प्रयासों को काफी सराहना मिली है।

इस संदर्भ में वैश्विक नेतृत्व की स्थिति पर कब्जा करते हुए भारत ने कैसे बदलाव किया? इसका श्रेय हमारी संघीय और अठारह राज्य सरकारों, प्रतिबद्ध वन कर्मियों और स्थानीय लोगों की सद्भावना को जाता है। प्रोजेक्ट टाइगर केन्‍द्र और राज्य सरकारों के बीच साझा जिम्मेदारी का एक बड़ा उदाहरण है।

उपलब्धियां अनेक हैं। हमारे राष्ट्रीय कानून में बाघ प्रावधानों को सक्षम करने के अलावा, 2023 में हालिया संशोधनों के साथ, दशक के दौरान पचपन बाघ अभयारण्यों के साथ प्रोजेक्ट टाइगर कवरेज में वृद्धि हुई है। लगभग 43513 वर्ग कि.मी. संरक्षित क्षेत्रों को कोर (वन्‍य क्षेत्र) क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया गया है, जो देश में सतही और जानवरों की कम आबादी वाले क्षेत्र (बफर) 35222.58 वर्ग किमी. से भरपाई करते हैं।

बाघ, सह-शिकारियों, शिकार और प्राकृतिक वास के देश स्तर के मूल्यांकन को अत्याधुनिक, सांख्यिकीय रूप से मजबूत पद्धति का उपयोग करके परिष्कृत किया गया है। अत्यावश्यक स्थितियों से निपटने के लिए कई एसओपी मौजूद हैं। मानव-बाघ टकराव को सक्रिय रूप से प्रबंधित किया जाता है। आकस्मिक स्थितियों से निपटने के लिए सक्रिय प्रबंधन के हिस्से के रूप में, बाघ की गतिविधियों के साथ तालमेल बिठाकर स्थानान्तरण किया जाता है। खुफिया जानकारी आधारित प्रवर्तन के लिए फ्रंटलाइन क्षमता निर्माण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है।

एम-स्ट्राइप्स की दैनिक आधार पर निगरानी अप्रिय घटनाओं पर नज़र रखती है। विशेष बाघ सुरक्षा बल और स्थानीय कार्यबल हमारे बाघ अभयारण्यों की सुरक्षा करते हैं। बाघ संरक्षण योजना के निर्देश के आधार पर प्राकृतिक वास में सुधार, प्राकृतिक वास की जैविक वहन क्षमता के अनुसार किया जाता है।

बाघ अभ्यारण्यों का प्रबंधन प्रभावशीलता मूल्यांकन समय-समय पर सुरक्षा ऑडिटिंग के साथ किया जाता है। टाइगर रिजर्व में अच्छे काम को मान्यता मिलती है। बाघ अभ्यारण्यों को मान्‍यता कंजर्वेशन एश्योर्ड टाइगर स्टैंडर्ड्स (सीए|टीएस) के माध्यम से दी जाती है।

अंतर्राष्ट्रीय मोर्चे पर, बाघ रेंज वाले अनेक देशों यानी बांग्लादेश, भूटान, कंबोडिया, म्यांमार, नेपाल, रूसी संघ और चीन के साथ द्विपक्षीय एवं समझौता ज्ञापन हैं।

विश्व स्तर पर बाघ स्रोत क्षेत्रों के साथ-साथ अब भारत में बाघों की अधिकतम संख्या (3682) है। बाघों की विज्ञान-आधारित निगरानी के लिए इसे गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड में शामिल किया गया है।

बाघों की कल्‍पना के साथ, भारत बाघों को बचाने के लिए एक रोल मॉडल बना रहेगा।

डॉ. राजेश गोपाल, महासचिव, ग्लोबल टाइगर फोरम

मोहनीश कपूर, वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी, ग्लोबल टाइगर फोरम