मन के सेनापति बनें (लघुकथा)

 

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आदर्श  हिमाचल ब्यूरो,

विदुषी प्रवर महिला थी। उसके जीवन के अपने आदर्श, सपनें और उड़ान थी। ज़्यादातर समय जहाँ लोग मौन रखकर हाँ में हाँ मिलाना पसंद करते थे वह हमेशा निर्भीक रूप से सच के लिए लड़ने को तैयार रहती थी। वह कभी भी दुश्मन बनाने से डरती नहीं थी, क्योंकि वह यह जानती थी की ज़्यादातर मित्रता तभी होती है जब हम बोलने की जगह भी चुप रहना पसंद करते है। उसकी खासियत थी की वह दूसरों के जीवन के विश्लेषण से दूर कुछ बेहतर, नवीन और स्वविश्लेषण पर बल देती थी। मध्यमवर्गीय परिवार की होकर भी वह सपनों से बहुत अमीर थी। जब लोगों ने विवाह के लिए उसे पढ़ाई छोडने के लिए प्रेरित किया तब उसने पूरी पढ़ाई कर नौकरी को प्राथमिकता दी। विवाह भी देर से ही किया पर जीवनसाथी के गुणों का पूर्ण विश्लेषण किया।

जब नियति ने संतान प्राप्ति में बाधा दिखाई तो एक लड़की को गोद लेकर उसे ही काबिल बनाने के लिए कृतसंकल्पित हो गई। परिवार और रिश्तेदारों ने उसके इस निर्णय का खंडन किया, पर वह अपने निर्णय पर दृढ़ थी। कोरोना की मार में पति की नौकरी चली गई तो पति को दूर स्थान पर भेजकर नौकरी करने को प्रेरित किया। बच्चे के लालन-पालन की ज़िम्मेदारी स्वयं ने उठाई। जब पति दूर स्थान पर चले गए और ससुरालवालों का अपेक्षित सहयोग नहीं मिला तो माता-पिता के घर में रहकर ही बेटी के सुनहरे भविष्य की नींव रख दी। अपने किसी भी निर्णय में उसने दुनिया की कभी भी परवाह नहीं की। स्वहित में स्वयं के निर्णय को प्राथमिकता दी। समाज के अपने तर्क थे कि गोद ली हुई बेटी के लिए भला कौन इतना संघर्ष करता है, पर उसने अपने पति से भी उसकी अच्छी पढ़ाई-लिखाई के लिए मेहनत कर धन संग्रह करने को कहा। दोनों की मजबूत सोच ने परिस्थितियों की विषमता में कभी भी उनका आत्मबल कम नहीं होने दिया। राधा सदैव अपने मन की सुनती थी और उसी के अनुरूप कार्य को परिणाम में परिवर्तित करती थी।

भविष्य में वहीं बेटी आई.ए.एस. बन एक ऊँची उड़ान भरने को प्रेरित हुई और अन्य लड़कियों को शिक्षित करने का बीड़ा उढ़ाया। इस तरीके से राधा ने मुस्कुराकर अपनी जीवन यात्रा को तय किया और बेटी को भी खुशहाल जिंदगी और उन्नत सोच दी। इस लघु कथा से यह शिक्षा मिलती है कि हमें सदैव अपने मन का सेनापति बनना चाहिए नकि उसका सैनिक अर्थात अपने मजबूत निर्णय के आगे समाज के औछे प्रश्नचिन्हों को महत्व नहीं देना चाहिए। हमारी जिंदगी अपने तरीके से जीने के लिए है नकि लोगो के तय किए पैमानों से काटने को।
                                                                                    डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका