नगर निगम चुनावों में भाजपा को तगड़ा झटका, चार में से केवल मंडी में मिला बहुमत 

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सांकेतिक फोटो
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विशेष संवाददाता

शिमला। प्रदेश के चार निगमों के परिणामों ने निश्चित तौर पर भाजपा की नींदे उड़ा दी है। खुद को लोकप्रिय सरकार कहलाने वाली भाजपा चार में से केवल एक पर ही बहुमत के साथ कब्जा कर पाई है। वो भी मुख्यमंत्री के गृह जिले मंडी में। इन चुनावों परिणामों ने आने वाले विधानसभा चुनावों की रूपरेखा तैयार कर दी है। अभी तक तस्वीर से गायब दिखने वाली कांग्रेस ने इन चुनावों में अपनी धमक दिखा दी है। पालमपुर में जहां कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत हासिल किया है तो वहीं अपनी जीत सुनिश्चित मान कर चल रही भाजपा से सोलन को हथियाया और धर्मशाला में भी कड़ी टक्कर दी है।

ये चुनाव कांग्रेस को संजीवनी दे जाएंगे। अभी तक भाजपा बिखरी-बिखरी कांग्रेस से खुद को कोई चुनौती महसूस नही कर रही थी। भाजपा को लगता था कि अपने ही वर्चस्व की लड़ाई में उलझे कांग्रेस नेता चुनावों में कोई दम-खम नहीं दिखा पाएंगे। शुरूआत करें धर्मशाला से तो यहां भाजपा का टिकट आवंटन ही गलत रहा। वार्ड नंबर 16 और 17 में भाजपा ने जिन दो लोगों को दरकिनार करके अन्य लोगों को टिकट दिया वही दो लोगों ने आजाद उम्मीदवार के तौर पर यहां जीत हासिल की है। भाजपा इस नगर निगम में भी बहुमत से एक सीट पीछे हैं। हालांकि आजाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े लोगों पर है कि वो टिकट आवंटन में उनको दरकिनार करने वाली नाराजगी को सहेज कर रखते हैं या भाजपा के पाले में वापिस जाते हैं।

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धर्मशाला में अगर भाजपा के प्रभारी राकेश पठानिया ने दिन-रात काम न किया होता तो ये नगर निगम में कांग्रेस के कब्जे में होता। यहां 17 सीटों में से भाजपा के खाते में आठ सीटेें आई हैं जबकि कांग्रेस  ने पांच औऱ चार आजाद उम्मीदवारों ने  जीत हासिल की है। वहीं बात करें सोलन की तो यहां साथ लगते जिले सिरमौर की दयाल प्यारी का कांग्रेस में आना भाजपा के लिए ठीक नही रहा। दयाल प्यारी ने कांग्रेस में आते ही सोलन में धुआंधार प्रचार शुरू कर दिया था। इसी तरह सोलन में भी 17 सीटों में से भाजपा को केवल सात सीटों से संतोष करना पड़ा है जबकि कांग्रेस को यहां नौ सीटें हासिल हुई हैं। एक आजाद उम्मीदवार ने भी जीत हासिल की है।

मुख्यमंत्री के गृह जिले मंडी में हालांकि भाजपा को बड़ा बहुमत मिला है।  मंडी में भाजपा को 11 सीटें हाल हुई हैं जबकि कांग्रेस के खाते में चार गई है। यहां कुल 15 सीटें हैं। यहां आजाद उम्मीवारों को कोई सफलता हासिल नही हुई है।

इसी तरह पालमपुर में भाजपा को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा है। यहां 15 में से भाजपा के खाते में केवल दो सीटें आई हैं। जबकि आजाद उम्मीदवार ने भी दो सीटें हासिल की है। कांग्रेस ने बहुमत हासिल करते हुए यहां 11 सीटें हासिल की है। लोगों का मानना है कि हाल ही में हुआ जिला परिषद चुनाव भी पार्टी सिंबल पर होते तो भाजपा के लिए चिंताजनक स्थिति होती। भाजपा की सबसे बड़ी कमी ये है कि इन छोटे-छोटे चुनावों में भी नो मोदी करिश्मा का इं,तजार करती रहती है। जबकि इन निकाय चुनावों में स्थानीय मुददे हावी रहते हैं।

अब भाजपा को निश्चित तौर पर आने वाले विधानसभा चुनावों के लिए अपनी स्थिति पर गौर करना का समय मिल गया है। कुछ स्थानों पर तो पार्टी के कुछ नेताओं या नेत्रियों ने ही मुश्किलें पैदा कर रखी है, जिसे पार्टी कार्यकर्ताओं की बात सुन दरकिनार कि.या जा सकता हैै। इन चुनावों ने कांग्रेस को भी अपनी स्थिति का आंकलन करने का समय दे दिया है कि अगर  2022 में विधानसभा चुनावों में भाजपा के मिशन रिपिट को रोकना है तो अभी से रणनीती बनानी होगी।

भाजपा जो णअभी तक कांग्रेस को चुनौती ही नहीं मान रही थी और अपनी स्वकथित लोकप्रियता का दंभ भर रही थी, उसे इन चुनावों ने आईना दिखा दिया है। जनता ने साफ कर दिया है कि जो काम नहीं करेगा या जनता के मुद्दों से सरोकार नहीं रखेगा, उसे किसी भी कीमत में बदार्श्त नही किया जाएगा। पहली बार नगर निकाय के चुनाव पार्टी सिंबल पर हुए हैं जिसने दोनों ही पार्टियों के दम-खम की पोल खोल कर रख दी है।

अभी महज चार निगमों के चुनावों ने जिस तरह दोनों ही दलों के सभी नेताओं का पसीना बहाया है उससे साफ है कि दोनों दलों को अभी भी जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए विधानसा चुनावों में इससे अधिक मेहनत करनी होगी। फिर भी भाजपा को इन चुनावों परिणामों के बाद आत्म मंथन की जरूरत है जबकि कांग्रेस के लोगों के लि्ए निश्चित तौर पर ये चुनाव परिणाम मनोबल बढ़ाने वाले हैें।